40 वर्षीय व्यक्ति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर किया मुकदमा, कथित जैविक मां से मांगा 1.5 करोड़ का हर्जाना

LiveLaw News Network

15 Jan 2020 3:30 AM GMT

  • 40 वर्षीय व्यक्ति ने बॉम्बे हाईकोर्ट में दायर किया मुकदमा, कथित जैविक मां से मांगा 1.5 करोड़ का हर्जाना

    एक 40 वर्षीय व्यक्ति ने बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक मुकदमा दायर किया है, जिसमें उसने कथित तौर पर अपनी जैविक मां आरती म्हैसकर से हर्जाने के रूप में 1.5 करोड़ रुपये की मांग की है।

    वादी श्रीकांत सबनीस, जो एक मेकअप आर्टिस्ट के रूप में काम करता है, ने आरोप लगाया है कि " एक उदय म्हैसकर नामक आदमी से अवैध रूप से शादी करने के लिए, उसकी मां आरती ने उसे छोड़ने के लिए एक साजिश रची और अपने ही बेटे को पीछे छोड़ते हुए उदय के पास चली गई। जबकि उसे बेहद अमानवीय और निर्मम तरीके से जीवित रहने और रिश्तेदारों की दया पर एक भयानक जीवन जीने के लिए छोड़ दिया गया।''

    केस का आधार

    आरती ने बिना किसी को बताए श्रीकांत के साथ अपने वैवाहिक घर को छोड़ दिया था, श्रीकांत उस समय 2.5 साल का था। वह मुंबई से पुणे जाने के लिए एक यात्री ट्रेन में सवार हुई और पुणे में उतर गई, जिसके बाद श्रीकांत को अकेले छोड़ दिया। क्रूर और अमानवीय इरादे से वादी को छोड़ने के लिए, जो प्रासंगिक समय में केवल 2.5 वर्ष की आयु का था।

    तत्पश्चात, वादी पैंट्री कार से एक रेलवे वेटर को रोते हुए मिला था, जिसने एक रेलवे पुलिस कांस्टेबल, गुरुनाथ चव्हाण को छोड़े हुए इस बच्चे को सौंप दिया था, जो उस समय पुणे रेलवे स्टेशन पर ड्यूटी पर तैनात था। जब कोई भी अपने बच्चे के रूप में वादी का दावा करने के लिए आगे नहीं आया तो कांस्टेबल चव्हाण ने अपनी मानवता के चलते उसे अपने पास रखने की बात कही।

    हालात तब जटिल हो गए जब एक राजस्थानी व्यवसायी भंवरीलाल वैष्णव ने 2 मार्च 1981 को अपने दो वर्षीय बेटे की गुमशुदगी दर्ज कराई। उक्त दंपति पुणे पहुंचा और वादी को अपना लापता बेटा बताते हुए उसकी कस्टडी की मांग की।

    साथ ही ''लापता बच्चे की गैरकानूनी हिरासत'' के लिए कांस्टेबल चव्हाण के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज करा दी गई थी।

    इन सबको देखने के बाद, पुणे में मजिस्ट्रेट कोर्ट ने दस्तावेजों से संतुष्ट होने के बाद और ब्लड रिपोर्ट की प्रतीक्षा किए बिना, उक्त वादी की हिरासत को उनके लापता बच्चे के तौर पर भंवरीलाल वैष्णव को सौंप दिया। मजिस्ट्रेट ने यह भी देखा था कि बच्चा भंवरीलाल की पत्नी कमला को देखकर रोने लगा था।

    हालांकि, जब कॉन्स्टेबल चव्हाण ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पुणे के समक्ष अपील दायर की तो अदालत ने भंवरीलाल के खिलाफ समन जारी किया और उन्हें व्यक्तिगत रूप से पेश होने को कहा। जब वह पेश होने में विफल रहा तो पुलिस अधिकारियों की एक टीम राजस्थान गई और श्रीकांत को अपने साथ वापस ले आई।

    वादपत्र में कहा गया है कि -

    ''38 वर्षों के एक विशाल भावनात्मक संघर्ष के बाद वादी अपनी मां से मिलने के लिए बहुत खुश था, लेकिन उसकी यह खुशी अल्पकालिक थी क्योंकि उसने वादी को अपने बेटे के रूप में दुनिया के सामने स्वीकार करने से इनकार कर दिया, लेकिन उसे गोपनीय तरीके से स्वीकार कर लिया। उसने विनम्रतापूर्वक प्रस्तुत किया कि एक मां को जन्म देने का अधिकार है, यह पितृत्व के लिए मनाया गया मानव अधिकार है लेकिन कोई भी मां इस तरह के क्रूर तरीके से बच्चे को छोड़ने की हकदार नहीं है।

    दोहराव के डर से, वादी ने कहा कि यह प्रतिवादी नंबर एक की व्यक्तिगत पसंद थी कि वह प्रतिवादी नंबर दो के साथ रहना चाहती थी, जबकि यह गैरकानूनी था क्योंकि वह वादी के पिता की कानूनी रूप से पत्नी थी। हालांकि, प्रतिवादी नंबर 1 और 2, दोनों को दो साल और छह महीने की उम्र में वादी को सड़क पर फेंकने का कोई अधिकार नहीं था।''

    इस प्रकार, क्षतिपूर्ति के अलावा, सूट में यह भी मांग की गई है कि आरती म्हैसकर को डीएनए और किसी भी अन्य वैज्ञानिक परीक्षण से गुजरने का निर्देश दिया जाए, जिसे भी न्यायालय यह स्थापित करने के लिए फिट और उचित समझता है कि वह वादी की मां है। मामले की सुनवाई जस्टिस ए.के मेनन करेंगे।

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