पक्षद्रोही गवाह के साक्ष्य का ऐसा हिस्सा, जो विश्वसनीय पाया जाता है, उस पर अदालत विचार कर सकती है, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

LiveLaw News Network

25 Aug 2019 11:13 AM IST

  • पक्षद्रोही गवाह के साक्ष्य का ऐसा हिस्सा, जो विश्वसनीय पाया जाता है, उस पर अदालत विचार कर सकती है, पढ़िए सुप्रीम कोर्ट का फैसला

    सुप्रीम कोर्ट के एक ताज़ा फैसले में यह स्पष्ट हुआ है कि पक्षद्रोही गवाह (hostile witness) के साक्ष्य का ऐसा हिस्सा, जो विश्वसनीय पाया जाता है, उसपर अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है और यह जरुरी नहीं कि उसके पूरे साक्ष्य को त्याग दिया जाए।

    उच्चतम न्यायालय ने यह देखा कि यदि आरोपी द्वारा धारा 313 CrPC के तहत अपने बयान में अस्पष्ट या गलत स्पष्टीकरण/झूठी व्याख्या दी गयी है तो उसे आरोपी के अपराध को स्थापित करने हेतु, परिस्थितियों की श्रृंखला पूरी करने के लिए एक परिस्थिति के रूप में विचार में नहीं लिया जा सकता है।

    हालांकि, इस मामले में, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और बी. आर. गवई की पीठ ने अभियुक्त द्वारा दी गई झूठी व्याख्या/गलत स्पष्टीकरण को ध्यान में रखते हुए यह उल्लेख किया कि मामले में दोषसिद्धि अन्य परिस्थितियों के आधार पर पहले ही दर्ज की जा चुकी है।

    सुदरू बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में, CrPC की धारा 313 के अंतर्गत दिए अपने बयान में अभियुक्त ने, जिस पर अपने बेटे की हत्या का आरोप था, ट्रायल कोर्ट के सामने यह कहा था कि उसके बेटे की मृत्यु बीमारी से हुई थी। हालांकि, डॉक्टर ने यह दर्शाया था कि मृतक के सिर पर फ्रैक्चर था और मृतक की मौत गला घोंटने के कारण हुई होगी और मृतक की गर्दन पर उंगलियों के निशान भी पाए गए थे। इस संदर्भ में पीठ ने कहा:

    इसमें कोई संदेह नहीं है, कि अपीलार्थी द्वारा गैर-स्पष्टीकरण या गलत स्पष्टीकरण/झूठी व्याख्या को अपीलकर्ता के अपराध को स्थापित करने हेतु परिस्थितियों की श्रृंखला को पूरा करने के लिए एक परिस्थिति के रूप में विचार में नहीं लिया जा सकता है। हालांकि, झूठी व्याख्या/गलत स्पष्टीकरण को हमेशा अन्य परिस्थितियों के आधार पर पहले से दर्ज दोषसिद्धि को मजबूत करने के लिए विचार में लिया जा सकता है।

    पीठ ने त्रिमुख मारोती किरकान बनाम महाराष्ट्र राज्य में किए गए अवलोकन का हवाला दिया कि जब अभियुक्त के समक्ष एक अभियोगात्मक परिस्थिति (incriminating circumstance) उत्पन्न होती है और उक्त अभियुक्त द्वारा या तो उस सम्बन्ध में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है या वह जो स्पष्टीकरण प्रस्तुत करता है वो असत्य पाया जाता है, तो वही पहलू परिस्थितियों की श्रृंखला को पूरा करने के लिए एक अतिरिक्त लिंक हो जाता है। अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि शरद बिरदीचंद सरदा बनाम महाराष्ट्र राज्य के मामले में, यह माना गया है कि अदालत द्वारा झूठी दलील या झूठे बचाव को विचार में लिया जा सकता है।

    इस मामले में एक और महत्वपूर्ण पहलू यह था कि अभियुक्त की पत्नी सहित कई गवाह पक्षद्रोही गवाह (hostile witness) हो गए थे। लेकिन अदालत ने देखा कि पक्षद्रोही गवाह (hostile witness) के साक्ष्य का ऐसा हिस्सा, जो विश्वसनीय पाया जाता है, उस पर अदालत द्वारा विचार किया जा सकता है और यह जरुरी नहीं कि उसके पूरे साक्ष्य को त्याग दिया जाए। इस संबंध में, पीठ ने भज्जू बनाम राज्य के फैसले को संदर्भित किया।

    उसकी पत्नी के साक्ष्य को देखते हुए, पीठ ने यह कहा कि, यह उचित रूप से तय किया जा सकता है कि उसके और उसकी पत्नी के बीच झगड़ा हुआ था और झगड़े के बाद उसकी पत्नी 2 छोटे बच्चों के साथ अपने जीजा के घर चली गई और मृतक को उसके (पति) साथ अकेला छोड़ दिया गया था और अगले दिन सुबह वह (मृतक) मृत पाया गया था। बेंच ने आगे देखा:

    अभियोजन पक्ष द्वारा उपरोक्त तथ्य को स्थापित करने के बाद, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 106 के तहत सबूत का भार, अपीलकर्ता पर स्थानांतरित हो जाएगा। एक बार अभियोजन पक्ष यह साबित कर देता है कि यह मृतक और अपीलकर्ता हैं, जो उस कमरे में अकेले थे और अगले दिन सुबह मृतक का शव मिला था, तो यह समझाना अपीलकर्ता की जिम्मेदारी हो जाती है कि उस रात क्या हुआ था और मृतक की मृत्यु कैसे हुई।



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