दोषसिद्धि या अपराध सिद्धि पर रोक लगाने के मामले में लागू होने वाले सिद्धांत के आधार पर सजा पर रोक लगाने की मांग को नहीं किया जा सकता है खारिज: SC [निर्णय पढ़े ]

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6 May 2019 6:42 AM GMT

  • दोषसिद्धि या अपराध सिद्धि पर रोक लगाने के मामले में लागू होने वाले सिद्धांत के आधार पर सजा पर रोक लगाने की मांग को नहीं किया जा सकता है खारिज: SC  [निर्णय पढ़े ]

    सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है,जिसमें हाईकोर्ट ने दोषसिद्धि या अपराध सिद्धि पर रोक लगाने के मामले में लागू होने वाले प्रिंसीपल को आधार बनाते हुए सजा या कैद पर रोक लगाने की मांग वाली अर्जी को खारिज कर दिया था।

    एन.रामामूर्थी को निचली अदालत ने भारतीय दंड संहिता व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दोषी करार दिया था। अभियोजन पक्ष का आरोप था कि रामामूर्थी ने आपराधिक षड्यंत्र रचा और विश्वासघात,जालसाजी,फर्जीवाड़ा,
    खातों में छेड़छाड़ व फंडों का दुरूपयोग किया था। निचली अदालत ने पाया कि उसने कई ग्राहक के फर्जी हस्ताक्षर किए। उसने गलत भावना के साथ पैसा निकालने की स्लिप बनाई और बहुत सारे जमाकर्ताओं के खातों से पैसों का गबन किया।
    उसने इस सजा के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील दायर की ओर एक अन्य अर्जी दायर कर उसको दी गई सजा या कैद पर रोक लगाने की मांग की। हाईकोर्ट ने उसकी अपील को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया परंतु सजा पर रोक लगाने की मांग वाली अर्जी को इस आधार पर खारिज कर दिया कि '' अगर सभी सजाओं को एक साथ रख दिया जाए तो वह 45 साल की कैद बन जाएगी (अगर सभी साबित हुए अपराध को एकसाथ रख दिया जाए)। कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्दू बनाम पंजाब सरकार मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अपीलेट कोर्ट सिर्फ तभी दोषसिद्धि पर रोक लगा सकती है,जब अभियुक्त विशेषतौर पर वह परिणाम बताए जो दोषसिद्धि पर रोक न लगाने के बाद होने वाले है।
    शीर्ष कोर्ट की पीठ के जस्टिस अभय मनोहर सापरे व जस्टिस दिनेश महेश्वरी ने कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी सजाओं को जोड़कर 45 साल बताने के मामले में गलती की है। पीठ ने कहा कि निचली अदालत ने इस मामले में सभी सजाओं को एक साथ चलने का आदेश दिया था। ऐसे में अधिक्तम सजा सात साल कैद थी। बाकी कैद वो थी जो जुर्माना न देने की सूरत में काटनी पड़ती।
    पीठ ने यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने इस मामले में गलत तरीके से विचार करते हुए उस प्रिंसीपल को आधार बना लिया,जो दोषसिद्धि पर रोक लगाने से संबंधित है। दोषसिद्धि पर रोक या निलंबन सिर्फ दुर्लभ या अपवाद के मामलों में या विशेष कारण से ही होता है।
    ''आदर के साथ यह कहा जा रहा है कि ऐसा लग रहा है कि हाईकोर्ट ने मामले के तथ्यों पर ठीक से विचार नहीं किया। मामले में याचिकाकर्ता ने सिर्फ सजा पर रोक लगाने की मांग की थी। उसने दोषसिद्धि के आदेश पर रोक लगाने की मांग नहीं की थी। इसलिए नवजोत सिंह सिद्दू मामले में दिया गया फैसला इस मामले के तथ्यों पर लागू नहीं होता है।''
    के.सी सरीन बनाम सीबीआई,चंडीगढ़ मामले में दिए गए फैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि आमतौर पर बड़ी या अपीलेट कोर्ट को भ्रष्टाचार के मामलों में सजा पर रोक लगा देनी चाहिए बशर्ते अपील दायर होने के बाद तुरंत उस पर सुनवाई शुरू न हुई हो।
    पीठ ने इस मामले को फिर से हाईकोर्ट के पास भेजते हुए कहा है िकवह इस पर नए सिरे से विचार करे।

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