सुप्रीम कोर्ट ने PCPNDT एक्ट की धारा 23 को संवैधानिक ठहराया, फॉर्म F को भरना अनिवार्य [निर्णय पढ़े]

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5 May 2019 1:47 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने PCPNDT एक्ट की धारा 23 को संवैधानिक ठहराया, फॉर्म F को भरना अनिवार्य   [निर्णय पढ़े]

    "रिकॉर्ड का गैर-रखरखाव भ्रूणहत्या के अपराध का सूचक है ना कि सिर्फ लिपिकीय त्रुटि।"

    सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व-गर्भाधान और प्रसव पूर्व निदान तकनीक (लिंग चयन पर रोक) अधिनियम, 1994 (PCPNDT) [Pre-conception and Pre-natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) Act, 1994] की धारा 23 (1) और 23 (2) की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा है।

    कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 का किया जिक्र
    फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गाइनोकोलॉजिकल सोसाइटीज़ ऑफ इंडिया (FOGSI) द्वारा दायर एक रिट याचिका को खारिज करते हुए, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने कहा कि अगर उक्त अधिनियम या उसके प्रावधानों या नियमों को हलका किया गया तो ये ना केवल कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए अधिनियम के उद्देश्य को पराजित करेंगे बल्कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बालिकाओं के जीवन के अधिकार को औपचारिकता के लिए लागू करेंगे। अदालत ने यह भी कहा कि फॉर्म 'एफ' ,की पूरी सामग्री अनिवार्य है।

    फेडरेशन ने सुप्रीम कोर्ट में कागजी कार्रवाई/रिकॉर्ड रखने/लिपिकीय त्रुटियों में विसंगतियों के लिए अधिनियम के प्रावधानों को कम करने की मांग की थी और इसे संविधान के अनुच्छेद 14, 19 (1) (जी) और 21 का उल्लंघन माना था।

    "अधिनियम में दंड का प्रावधान है उचित"

    इस संबंध में पीठ ने कहा कि, "अधिनियम की धारा 23, जो अपराधों के दंड का प्रावधान करती है, अधिनियम के अन्य अनुभागों की सहायता के लिए उचित है। यह किसी भी चिकित्सा आनुवंशिकीविद्, स्त्री रोग विशेषज्ञ, पंजीकृत चिकित्सक के लिए या ऐसा व्यक्ति जो जेनेटिक काउंसलिंग सेंटर, जेनेटिक क्लिनिक या जेनेटिक लैबोरेटरी का मालिक हो और वह अपनी पेशेवर या तकनीकी सेवाओं का प्रतिपादन करता हो या उक्त स्थान पर हो, चाहे मानदेय के आधार पर या अन्यथा एक्ट के किसी भी प्रावधान या नियमों का उल्लंघन करता हो तो सजा का प्रावधान करता है।"

    फेडरेशन अनिवार्य रूप से धारा 23 के साथ समान रूप से परेशान थी और उसका कहना था यह प्रावधान लिंग निर्धारण के वास्तविक अपराध के साथ 'लिपिकीय त्रुटियों' को एक ही पायदान पर रखते हैं।

    उनके अनुसार, अधिनियम आपराधिक अपराधों और अधूरे कागजातों में विसंगतियों के बीच अंतर नहीं करता है, जैसे अधूरा 'एफ-फॉर्म, लिपिक गलतियां जैसे एनए या अधूरा पता, तारीख का उल्लेख नहीं, सोनोग्राफी रूम में राधा कृष्ण की आपत्तिजनक तस्वीरें, अधूरा फॉर्म 'एफ' भरना, सोनोग्राफी के लिए संकेत नहीं लिखा गया, धुंधला नोटिस बोर्ड और सुपाठ्य नहीं है, फॉर्म 'एफ' आदि में विवरण संबंधी खामियां। यहां तक ​​कि कागजी कार्रवाई में सबसे छोटी विसंगति जो वास्तव में अनजाने में की गई त्रुटि है, ने प्रसूतिविदों और स्त्रीरोग विशेषज्ञों को पूरे देश में प्राधिकरणों द्वारा अभियोजन के लिए असुरक्षित बना दिया है।

    फॉर्म 'एफ' लिपिक परीक्षण के लिए है एक शर्त

    इस फैसले में पीठ ने कहा कि, "फॉर्म 'एफ' लिपिक आवश्यकता नहीं है बल्कि परीक्षण के लिए एक शर्त है। फॉर्म 'एफ' में सामग्री का जिक्र करते हुए, यह कहा गया कि यदि फॉर्म में किसी भी जानकारी से बचा जाता है तो यह धारा 4 के प्रावधानों का उल्लंघन होगा और इसका वह परिणाम हो सकता है जो धारा 6 के तहत निषिद्ध है। यह कहा गया है कि, 'यदि मामले में संकेत और जानकारी को सुसज्जित नहीं किया जाता है, जैसा कि फॉर्म 'एफ' में प्रदान किया गया है तो परीक्षा/प्रक्रिया शुरू करने से पहले की स्थिति अनुपस्थित होगी।

    डायग्नोस्टिक टेस्ट/प्रक्रिया क्यों की गई, यह पता लगाने के लिए फॉर्म 'एफ' के अलावा कोई अन्य पैरमीटर नहीं है। ऐसे में इस तरह की एक महत्वपूर्ण जानकारी को अस्पष्ट या फॉर्म से गायब रखा जाता है तो यह अधिनियम के मुख्य उद्देश्य और सुरक्षा उपायों को पराजित करेगा। इसके कारण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन की जाँच करना असंभव हो जाएगा। यह फॉर्म भरना केवल लिपिक का काम नहीं है, बल्कि यह परीक्षण/प्रक्रिया के लिए एक पूर्व शर्त है।"

    अदालत ने आगे कहा कि, फॉर्म 'एफ' भरना उस व्यक्ति की जिम्मेदारी है जो इस तरह के परीक्षण का कार्य कर रहा है, अर्थात, आवश्यक जानकारी भरने के लिए स्त्री रोग विशेषज्ञ/मेडिकल जेनेटिकलिस्ट/रेडियोलॉजिस्ट/बाल रोग विशेषज्ञ/क्लिनिक/केंद्र/प्रयोगशाला के निदेशक इसके लिए जिम्मेदार हैं।

    कोर्ट ने आगे जारी रखते हुए कहा, "अगर वह इसे अस्पष्ट रखता है तो वह पूरी तरह से जानता है कि वह अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा है और पूर्ववर्ती स्थितियों के अस्तित्व के बिना परीक्षण का संचालन कर रहा है। वह फॉर्म में ऐसी जानकारी को भरे बिना परीक्षण/प्रक्रिया नहीं कर सकता। यह सुनिश्चित करने के लिए कोई अन्य तरीका नहीं है कि निर्धारित शर्तों की पूर्ति पर परीक्षण किया गया है।

    इसके अलावा और कुछ नहीं है जिसके तहत रिकॉर्ड बनाए रखा जा सके और जिसके आधार पर काउंटर-चेक बनाया जा सके। अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन का पता लगाने के लिए कोई अन्य पैरामीटर या मापदंड नहीं है।

    नियम 9 (4) में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक जेनेटिक क्लिनिक को फॉर्म 'एफ' भरना होगा, जिसमें रोगी के विवरण के संबंध में जानकारी, रोगी के संकेत पत्र और मरीज के केस पेपर हों। उन्हें भरने और संरक्षित करने की आवश्यकता है। दरअसल फॉर्म 'एफ' गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासोनोग्राफी आयोजित करने के लिए सांकेतिक सूची देता है।


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