Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

सीरपीसी की धारा 456: अगर निचली अदालत ने संपत्ति को सौंपे जाने को लेकर आदेश दिया है तो 30 दिनों की समय सीमा लागू नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
18 Feb 2019 6:50 AM GMT
सीरपीसी की धारा 456: अगर निचली अदालत ने संपत्ति को सौंपे जाने को लेकर आदेश दिया है तो 30 दिनों की समय सीमा लागू नहीं होगी : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
x

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर सीआरपीसी की धारा 456 के तहत कोई अर्ज़ी स्वीकार की गई है जिसमें अचल सम्पत्ति को वापस करने की माँग की गई है और अगर निचली अदालत ने इस बारे में आरोपी को क़सूरवार ठहराते हुए कोई आदेश पास किया है तो 30 दिनों की समय सीमा इस पर लागू नहीं होगी।

इस मामले में, किरायेदार के ख़िलाफ़ मकान मालिक के मामले में फ़ैसला सुनाया गया और मकान मालिक को मकान का क़ब्ज़ा दिला दिया गया। उसी दिन किरायेदार उस मकान में घुसा और दुबारा उस मकान पर क़ब्ज़ा कर लिया। मकान मालिक ने दुबारा शिकायत की और किरायेदार को आईपीसी की धारा 448 के तहत सज़ा दी गई। कोर्ट ने किरायेदार को यह मकान शिकायतकर्ता को वापस सौंपने का आदेश भी दिया।

बाद में जब हाईकोर्ट ने इस मामले को ख़ारिज कर दिया, शिकायतकर्ता ने सीआरपीसी की धारा 456 के तहत मामला दायर कर मकान को सौंपे जाने के माँग की। निचली अदालत ने इस याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि याचिका अपीली अदालत के आदेश के 30 दिन की समय सीमा के बाद दायर की गई है। हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया।

Mahesh Dube v. Shivbodh Dube के इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा कि निचली अदालत सम्पत्ति को लौटाए जाने का आदेश पास कर सकती है। पीठ ने कहा कि अगर इस मामले की सुनवाई करने वाली अदालत ने इस तरह का कोई आदेश नहीं दिया है तो अपीली अदालत भी ऐसा आदेश दे सकती है और ऊँची अदालत के लिए इस तरह की किसी समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है।

पीठ ने कहा कि इस मामले में 30 दिनों की समय सीमा लागू नहीं होगी क्योंकि निचली अदालत ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए इस तरह का आदेश पहले ही दे चुकी है। पीठ ने कहा,

"वर्तमान मामले में, प्रतिवादी और उसके बेटे की याचिका को ख़ारिज किए जाने के बाद वर्तमान याचिकाकर्ता के पिता ने याचिका दायर कर निचली अदालत के फ़ैसले के तहत इस परिसंपत्ति को सौंपे जाने के लिए याचिका दायर की।निचली अदालत ने इस मामले में प्रतिवादी और उसके बेटे को सज़ा भी सुनाई थी और इस मामले में 30 दिनों की समय सीमा लागू नहीं होगी। यह तभी लागू होती अगर निचली अदालत ने लोगों को सज़ा सुनाते वक़्त परिसंपत्ति को सौंपे जाने के बारे में आदेश नहीं दिया होता।


Next Story