इंडियन फाॅरेस्ट एक्ट के तहत अधिकृत अधिकारी द्वारा जब्त किए गए वाहन को सीआरपीसी की धारा 451 के तहत नहीं रिलीज कर सकता है मैजिस्ट्रेट [निर्णय पढ़े]

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31 March 2019 3:19 PM GMT

  • इंडियन फाॅरेस्ट एक्ट के तहत अधिकृत अधिकारी द्वारा जब्त किए गए वाहन को सीआरपीसी की धारा 451 के तहत नहीं रिलीज कर सकता है मैजिस्ट्रेट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मैजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 451 के तहत नहीं है ऐसा करने का अधिकार

    ''सालों से चला आ रहा इंसान का लोभ प्राकृतिक पर्यावरण को क्षीण कर रहा है। जिस कारण मौसम के बदलते मिजाज के परिणाम हमारा प्रतिदिन का जीवन वहन कर रहा है।''

    पर्यावरण पर प्रतिदिन होने वाले हमलों के मामलों में वैधानिक विश्लेषण को जरूरी तौर पर जागरूक रहना होगा। यह टिप्पणी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया है। इस मामले में हाईकोर्ट ने अपने आदेश में मैजिस्ट्रेट को निर्देश दिया था कि वह उस वाहन को अंतरिम तौर पर रिलीज कर दे,जिसे चंबल नदी से अवैध रेती खनन के मामले में सीज किया गया था।

    जस्टिस डी.वाई चंद्राचूड व जस्टिस हेमंत गुप्ता की खंडपीठ ने कहा कि जब एक बार अधिकृत अधिकारी ने द्वारा कुर्की की कार्रवाई शुरू कर दी जाती है तो उसके बाद सीआरपीसी की धारा 451 के तहत मैजिस्ट्रेट को इस मामले में सुनवाई का अधिकार नहीं रहता है।

    इस मामले में मध्य प्रदेश राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि इंडियन फाॅरेस्ट एक्ट के सेक्शन 52(3) (संशोधित एमपी एक्ट 25 वर्ष 1983) के तहत कुर्की की कार्रवाई शुरू कर दी गई है। इसलिए अब पूरी प्रक्रिया सेक्शन 52 व 52ए के तहत आती है। ऐसे में सीआरपीसी की धारा 451 के तहत मैजिस्ट्रेट को सुनवाई करने का अधिकार नहीं रहता हैं।

    खंडपीठ ने वैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए बताया कि फाॅरेस्ट एक्ट के तहत किसी वाहन को कैसे सीज किया जा सकता है,जो निम्नलिखित है-

    • 52(1) के तहत वाहन सीज करने के बाद,ऐसा करने वाले अधिकारी को या तो इस वाहन को अधिकृत अधिकारी के समक्ष पेश करना होेता है या फिर सेक्शन 52 के सब-सेक्शन 2 के तहत सीजर रिपोर्ट तैयार करनी होती हैं।
    • अगर एक बार इस बात से संतुष्ट हो जाए कि फाॅरेस्ट अपराध हुआ है तो अधिकृत अधिकारी के पास यह अधिकार है कि वह अपराध में प्रयोग किए गए टूल,वाहन,बोट या अन्य सामान को जब्त कर सके।
    • सब-सेक्शन (3) के तहत किसी संपत्ति की कुर्की करने से पहले अधिकृत अधिकारी को इस संबंध में संबंधित मैजिस्ट्रेट,जिसके अधिकार क्षेत्र में अपराध आता है,को इसकी सूचना भेजनी होगी।
    • जिन मामलों में यह लगे कि तुरंत आपराधिक केस की कार्रवाई शुरू की जानी है,उन मामलों में सीजर की रिपोर्ट संबंधित मैजिस्ट्रेट के पास भेज दी जानी चाहिए।
    • 52(3) के तहत जब्त करने के आदेश के खिलाफ 52-ए के तहत अपील दायर की जा सकती है ओर 52-बी के तहत पुनविचार अर्जी दायर हो सकती है। सेक्शन 52-बी के सब-सेक्शन (5) के तहत सेशन कोर्ट द्वारा पुनविचार अर्जी में दिए गए आदेश को अंतिम रूप मिल जाता है। इस आदेश पर फिर किसी कोर्ट के समक्ष चुनौती नहीं दी जा सकती है।
    • सेक्शन 52-सी के अनुसार एक बार जब मैजिस्ट्रेट को सेक्शन 52 के सब-सेक्शन (4) के तहत किसी संपत्ति के कुर्क करने सूचना मिल जाती है,उसके बाद कोई कोर्ट, ट्रिब्यूनल या अॅथारिटी को जब्त संपत्ति से संबंधित किसी भी तरह का आदेश देने का अधिकार नहीं रहता है। ऐसा होने के बाद सिर्फ उस संपत्ति के संबंध में अधिकृत अधिकारी,अपीलेट अॅथारिटी या सेशन कोर्ट कोई फैसला दे सकती है।

    खंडपीठ ने यह भी कहा कि मैजिस्ट्रेट को जब कुर्की की सूचना सेक्शन 52 के सब-सेक्शन(4)(ए) के तहत मिल जाती है तो उसके बाद सेक्शन 52-सी के सब-सेक्शन(1) के तहत अधिकारक्षेत्र पर लगी रोक भी अपने आप जुड़ जाती है। इस मामले में हाईकोर्ट ने जो आदेश दिया है वह इंडियन फाॅरेस्ट एक्ट 1927 में किए गए संशोधन के बाद मध्यप्रदेश राज्य के संबंध में एकदम कानून के विपरीत है। ज्ञात हो कि हाईकोर्ट ने सीआरपीसी के सेक्शन 482 के तहत दायर पैटिशन पर सुनवाई करते हुए मैजिस्ट्रेट को निर्देश दिया था कि वह अंतरिम तौर पर वाहन को रिलीज कर दे।

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