मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 32 के तहत समाप्त हो चुकी मध्यस्था की कार्यवाही की नहीं हो सकती है वापसी-सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
Live Law Hindi
21 May 2019 11:01 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 32(2)सी के तहत मध्यस्थ द्वारा मध्यस्थता की कार्यवाही को समाप्त करने के उसे फिर से शुरू नहीं किया जा सकता है या उसकी वापसी नहीं हो सकती है।
इस मामले में,एकमात्र मध्यस्थ ने 32(2)सी के तहत कार्यवाही को इस आधार पर समाप्त कर दिया कि कार्यवाही को जारी रखना अनावश्यक या असंभव बन गया है। बाद में,उन्होंने एक पक्ष द्वारा दायर उस अर्जी को स्वीकार कर लिया,जिसमें कार्यवाही समाप्त करने कके आदेश को वापिस लेने की मांग की गई थी। कर्नाटक हाईकोर्ट ने मध्यस्थ के इस 'रिकाॅल यानि वापसी' के आदेश के खिलाफ दायर अर्जी को खारिज कर दिया।
अपील पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की पीठ के जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस विनित सरन ने एसआरईआई इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड बनाम टफ ड्रिलिंग प्राइवेट लिमिटेड में दिए गए फैसले का उल्लेख किया। पीठ ने कहा कि-
''यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय द्वारा 32 के तहत आदेश से समाप्त करने और धारा 25 के तहत कार्यवाही समाप्त होने के बीच के अंतर स्थापित किया गया है।इस न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा है कि धारा 32(3) के तहत आने वाले केस में कार्यवाही वापिस लेने की मांग वाले आवेदन का कोई अस्तित्व नहीं होगा।''
एसआरईआई इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड केस में इस मुद्दे को शामिल किया गया था कि क्या मध्यस्थ न्यायाधिकरण,जिसने धारा 25(ए) के तहत कार्यवाही को इसलिए समाप्त कर दिया था क्योंकि दावेदार ने द्वावा दायर नहीं किया था,को दावेदार की उस अर्जी पर विचार करने का अधिकार है,जिसमें पर्याप्त कारण बताते हुए कार्यवाही समाप्त करने के आदेश को वापिस लेने की मांग की गई हो? इस आदेश में माना गया था कि न्यायाधिकरण को धारा 25(ए) के तहत समाप्त की गई कार्यवाही के आदेश को वापिस लेने का अधिकार है। एसआरईआई इंफ्रास्ट्रक्चर फाइनेंस लिमिटेड में दिए गए निम्नलिखित अवलोकन को पीठ ने वर्तमान मामले में पुनःप्रस्तुत करते हुए कहा कि धारा 32 के तहत समाप्त की गई कार्यवाही के आदेश को वापिस नहीं लिया जा सकता है।
''धारा 32 में एक शीर्षक है ''कार्यवाही की समाप्ति''। उपधारा(1) प्रदान करती है कि मध्यस्थ कार्यवाही अंतिम तौर पर कैसे समाप्त की जाएगी-एक सिविल अपील नंबर 4956/2019 (एसएलपी(सी)नंबर 20641/2017 )मध्यस्थ निर्णय या उपधारा (2) के तहत मध्यस्थ न्यायाधिकरण के आदेश के तहत। उपधारा (2) उप परिस्थितियों को बताता है,जब मध्यस्थ्य या पंचायती न्यायाधिकरण मध्यस्थ कार्यवाही की समाप्ति केक लिए आदेश जारी करेगा। धारा 32 (2)(ए) और धारा 32 (2)(बी) के तहत जिन परिस्थितियों को जिक्र किया गया है वह इस केस पर लागू नहीं होती है। क्या यह माना जा सकता है कि इस केस में कार्यवाही को समाप्त करना धारा 32 (2)(सी) के तहत आता है? यह एक सवाल है जिस पर विचार किया जाना चाहिए। खंड(सी) के तहत समाप्त करने के दो आधार दिए गए है-(1) मध्यस्थ या पंचायती न्यायाधिकरण को यह पता चल जाता है कि किसी अन्य कारण से कार्यवाही को जारी रखना अनावश्यक हो गया है या (2)-असंभव हो जाता है। धारा 32 के तहत दी गई संभावनाएं तभी लागू होती है,जब दावे को धारा 25(ए) के तहत समाप्त नहीं किया गया है और आगे बढ़ता है।
धारा 32(2) के खंड(सी) में प्रयुक्त शब्द ''अनावश्यक'' या '' असंभव'' को ऐसी स्थिति को कवर नहीं करते है,जहां दावेदार के डिफाॅल्ट के कारण कार्यवाही समाप्त की जाती है। ''अनावश्यक'' या '' असंभव'' शब्दों को उपयोग अलग-अलग संदर्भ में किया जाता है,जो धारा 25(ए) के तहत बताए गए डिफाॅल्ट या स्वेच्छा से अलग है। धारा 32 की उपधारा (3)में यह प्रावधान किया गया है कि मध्यस्थ न्यायाधिकरण का मध्यस्था कार्यवाही को समाप्त करने का आदेश धारा 33 व धारा 34 की उपधारा (4) के तहत आता है या उसका विषय है। धारा 33 मध्यस्थ न्यायाधिकरण की शक्ति है,जो किसी अभी अभिकलन त्रुटि,किसी भी लिपिक या टाइपोग्राफिक त्रुटि या समान प्रकृति को ठीक कर सकती है या किसी विशिष्ट बिंदु या किसी आदेश की व्याख्या दे सकती है। धारा 34 (4) कोर्ट को यह अधिकार देती है िकवह मामले की सुनवाई टाल दे ताकि मध्यस्थ या पंचायती न्यायाधिकरण को यह मौका मिल सके िकवह फिर से अपनी मध्यस्थता कार्यवाही को शुरू कर सके या उसकी राय में ऐसी अन्य उचित कार्यवाही कर सके। धारा 32(2) और धारा 33(1) के तहत कार्यवाही को समाप्त करने के बाद धारा 33(3) मध्यस्थ न्यायाधिकरण के कार्यवाही समाप्ति के आदेेश के इरादे के बारे में बताता है,जबकि धारा 25 के तहत यह शब्द गायब है या नहीं है।जब विधायिका ने धारा 32(3) के तहत वाक्यांश ''मध्यस्थ या पंचाट न्यायाधिकरण के शासनादेश को समाप्त किया जाएगा''का प्रयोग किया है,जबकि धारा 25(ए) के तहत ऐसे किसी वाक्यांश का प्रयोग नहीं किया गया है,ऐसा किया किसी इरादे व उद्देश्य से किया गया है। ऐसा करने का इरादा व उद्देश्य केवल यह है कि अगर दावेदार पर्याप्त कारण दर्शाता है तो कार्यवाही को फिर से शुरू किया जा सकता है।''
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