सीआरपीसी की धारा 319 के तहत अतिरिक्त आरोपी बनाने के लिए सिर्फ संभावना नहीं बल्कि जरूरत है पक्के सबूतों की-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

23 March 2019 9:19 PM IST

  • सीआरपीसी की धारा 319 के तहत अतिरिक्त आरोपी बनाने के लिए सिर्फ संभावना नहीं बल्कि जरूरत है पक्के सबूतों की-सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपनी बात को दोहराते हुए कहा कि सीआरपीसी की धारा 319 के तहत किसी व्यक्ति को अतिरिक्त आरोपी बनाए जाने के लिए पक्के सबूतों की जरूरत होती है,न कि संभावना के आधार पर किसी को आरोपी बना दिया जाए।

    जस्टिस अभय मनोहर सपरे व जस्टिस दिनेश महेश्वरी की बेंच ने इस मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की है।

    संविधान बेंच के एक आदेश का हवाला देते हुए कहा कि बेंच ने कहा कि इस प्रावधान का मुख्य उद्देश्य यह है कि असली आरोपी बच न पाए। इसलिए कोर्ट को यह अधिकार दिया गया है कि वह उस व्यक्ति के खिलाफ केस चला सकती है,जिसको मामले में आरोपी नहीं बनाया गया हो। अगर कोर्ट को मामले के सबूत देखकर यह लग रहा हो कि उस व्यक्ति ने भी अपराध किया है और बाकी आरोपियों के साथ ऐसे व्यक्ति के खिलाफ भी केस चलाना जरूरी है। बेंच ने इस मामले में एक संक्षिप्त टेस्ट का भी जिक्र किया है,जिसका इस तरह के मामलों में प्रयोग किया जाना चाहिए।

    ''सीआरपीसी की धारा 319 के तहत बनाए गए प्रावधान यह अनुमति देते है कि पेश रिकार्ड के आधार किसी व्यक्ति को समन जारी किया जा सकता है। परंतु यह भी सच है कि यह एक विशेष अधिकार है और असाधारण भी है,जिसका प्रयोग संयम से तभी किया जाना चाहिए जब पुख्ता सबूत मौजूद हो। इस अधिकार का प्रयोग करते हुए प्रथम द्रष्टया विचार तभी बनाया जाए तब पुख्ता सबूत हो,न की संभावना के आधार पर। इस मामले में अप्लाई किया जाने वाला टेस्ट यह है कि आरोप तय करने समय बनने वाला प्रथम द्रष्टया केस ज्यादा मजबूत है और अगर उन सबूतों का कोई विवाद या खंडन नहीं हुआ तो आरोपी को सजा हो सकती है।

    बेंच ने इस मामले में निचली अदालत व हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इस मामले में निचली अदालत व हाईकोर्ट ने नौ आरोपियों के खिलाफ केस चलाने का आदेश दिया है,जबकि उनके खिलाफ केस साबित करने के लिए अभियोजन को अमोघ या अपरिहार्य केस पेश करना होगा। ऐसे में पेश सबूतों के आधार पर केस चलाने की मांग स्वीकार करना स्पष्ट तौर पर एक गलत धारणा है। साथ ही निचली अदालत को निर्देश दिया है कि वह अभियोजन पक्ष की उस मांग पर फिर से विचार करे,जिसमें इन अतिरिक्त आरोपियों के खिलाफ केस चलाने की मांग की गई है।


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