Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

जेल का दौरा करने वाले पैनल में शामिल होने वाले एडवोकेट को चुने जाने के लिए 3 साल का अनुभव आवश्यक नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Rashid MA
15 Jan 2019 10:08 AM GMT
जेल का दौरा करने वाले पैनल में शामिल होने वाले एडवोकेट को चुने जाने के लिए 3 साल का अनुभव आवश्यक नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
x

दिल्ली हाइकोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि ऐसे क़ानूनी प्रैक्टिस करने वाले लोग जिनके पास बार में तीन साल से काम का अनुभव है, उन्हें भी दिल्ली हाईकोर्ट की विधिक सेवा समिति में जेलों का दौरा करने वाले दस्ते में शामिल किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति विभू बखरू ने यह फ़ैसला सुनाते हुए राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (मुफ़्त एवं सक्षम) विनियमन के विनियम 8(3) का हवाला दिया। इसमें कहा गया है कि कोई भी क़ानूनी प्रैक्टिस करने वाला व्यक्ति जिसे बार में तीन साल से काम का अनुभव है उसे इस दस्ते में शामिल नहीं किया जा सकता है।

कोर्ट ने कहा कि नियम में साफ़ कहा गया है कि बार में तीन साल का अनुभव आवश्यक नहीं है। कोर्ट ने कहा कि शब्द "साधारणताया" का अर्थ यह है कि विशेष स्थिति में ऐसे लोग जिनके पास तीन साल से काम का अनुभव है, उन्हें भी इसमें शामिल किया जा सकता है।

"यद्यपि, पूर्व न्यायिक अधिकारियों के पास हो सकता है कि तीन साल का बार में अनुभव नहीं हो पर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि वे काफ़ी सक्षम होते हैं और इस वजह से इस दस्ते में वे शामिल किए जा सकते हैं।

एडवोकेट विभास कुमार झा ने एक याचिका दायर कर दिल्ली हाईकोर्ट के दिल्ली विधिक सेवा समिति में रखे जाने वाले लोगों के चयन को चुनौती दी थी।

उन्होंने इस दस्ते में एक वक़ील के रूप में शामिल किए जाने के लिए आवेदन दिया था पर उनको शामिल नहीं किया गया। अपनी याचिका में उन्होंने तीन आधार पर इस चयन प्रक्रिया का विरोध किया था जिसमें उन्होंने कहा कि एक वाक़या ऐसा है जिसमें चार उम्मीदवारों को चुन लिया गया जबकि जेलों का दौरा करने वाले दस्ते में शामिल होने के लिए उन्होंने आवेदन भी नहीं किया था।

कोर्ट ने हालाँकि कहा कि समिति ने हाल में ऐसे एडवोकेट को साक्षात्कार के लिए बुलाने का निर्णय लिया जिसे पहले राउंड में साक्षात्कार में बैठने से छूट दे दी थी जिस वजह से भ्रम पैदा हुआ।

दूसरी आपत्ति के बारे में कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ तीन उम्मीदवारों को इंटर्व्यू में बैठने से छूट दी गई थी और ऐसा उनके अनुभव और उनकी स्थिति को देखकर किया गया था और ऐसा करना ग़लत नहीं था।

याचिकाकर्ता ने यह भी कहा था कि तीन उम्मीदवारों ने आपराधिक पैनल में शामिल किए जाने के लिए आवेदन किया था पर उन्हें जेल का दौरा करने वाले दस्ते में शामिल किया गया।

कोर्ट ने इस आपत्ति को सही ठहराया और कहा, "समिति में शामिल किए जाने के लिए जो आवेदन मँगाए गए थे उसमें साफ़ कहा गया था कि उम्मीदवार को सिर्फ़ एक ही पैनल में रखा जाएगा। इसलिए अगर किसी उम्मीदवार ने आपराधिक मामले को देखने के लिए आवेदन किया था तो उसको दूसरे पैनल में नहीं लिया जा सकता। और इस तरह से समिति का ऐसा करना सही नहीं था।

हालाँकि, कोर्ट ने कहा कि इसका परिणाम यही हो सकता है जिन तीन लोगों को जेल का दौरा करने के लिए पैनल में डाला गया है उनके चयन को रद्द किया जा सकता। पर कोर्ट ने कहा कि पर वह बारे में कोई आदेश नहीं देगा क्योंकि ये उम्मीदवार इस मामले में पक्ष नहीं हैं। ऐसा कहते हुए कोर्ट ने याचिका को ख़ारिज कर दिया।


Next Story