सेक्शन 26 एवीडेंस एक्ट-कार्यकारी मैजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया बयान है स्वीकार योग्य-पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

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26 March 2019 8:14 AM GMT

  • सेक्शन 26 एवीडेंस एक्ट-कार्यकारी मैजिस्ट्रेट के समक्ष दिया गया बयान है स्वीकार योग्य-पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

    पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने माना है कि एवीडेंस एक्ट के सेक्शन 26 के तहत प्रयोग किए एक्सप्रेशन मैजिस्ट्रेट शब्द में कार्यकारी मैजिस्ट्रेट भी शामिल है।

    यह मानते हुए जस्टिस ए.बी चैधरी व जस्टिस सुरेंद्र गुप्ता की खंडपीठ ने गुवहाटी हाईकोर्ट के एक फुल बेंच के फैसले से असहमति जताई है। गुवहाटी हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि एक्सप्रेशन का मतलब सिर्फ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट से है।

    एवीडेंस एक्ट के सेक्शन 26 के तहत अगर किसी व्यक्ति ने पुलिस हिरासत के दौरान पुलिस के समक्ष कोई इकबालिया बयान दिया है तो उस बयान को उसके खिलाफ प्रयोग नहीं किया जा सकता है,बशर्ते वह बयान किसी मैजिस्ट्रेट की मौजूदगी में न दिया गया हो।

    इस मामले में एक व्यक्ति द्वारा पुलिस हिरासत के दौरान नायब तहसीलदार,जो कि कार्यकारी मैजिस्ट्रेट है,के समक्ष दिए गए बयान पर सवाल उठाया गया था। एवीडेंस एक्ट के सेक्शन 26 के तहत प्रयोग किए गए एक्सप्रेशन मैजिस्ट्रेट शब्द में क्या सिर्फ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट शामिल है या कार्यकारी मैजिस्ट्रेट को भी शामिल किया गया है। आरोपी की तरफ से दायर की गई आपराधिक अपील में इसी कानूनी सवाल पर विचार किया जाना था।

    बेंच ने कहा कि गुवहाटी कोर्ट की फुलबेंच ने कार्तिक चकराबोर्ती एंड अदर्स बनाम स्टेट आॅफ असम के मामले में जो फैसला दिया है,हम उससे सहमत नहीं है। बेंच ने कहा-कि अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए तो एवीडेंस एक्ट के सेक्शन 26 में जानबूझकर ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट की बजाय एक्सप्रेशन मैजिस्ट्रेट शब्द का प्रयोग किया गया है। अगर यह पाॅवर सिर्फ ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट को देनी होती तो संसद कभी भी मैजिस्ट्रेट शब्द के साथ ज्यूडिशियल शब्द का प्रयोग न करने की भूल नहीं करता। इसलिए एक्सप्रेशन मैजिस्ट्रेट शब्द के तहत ज्यूडिशियल व कार्यकारी,दोनों तरह के मैजिस्ट्रेट शब्द शामिल हैं।

    वहीं मद्रास हाईकोर्ट द्वारा वेलू बनाम स्टेट के मामले में दिए गए फैसले के बारे में बेंच ने कहा कि उस मामले में क्रिमनल रूल आॅफ प्रैक्टिस एंड सर्कुलर आर्डरस्,1958 के रूल 72 व 73 को आधार बनाया गया है। रूल 73 के तहत साफ कहा गया है कि वेतन प्राप्त फस्ट या सेकेंड क्लास मैजिस्ट्रेट के समक्ष इकबालिया बयान दिया जाना चाहिए।इस मामले में कोई इस तरह का रूल लागू नहीं हो रहा है। इस अपील में बेंच ने साफ कर दिया है कि इकबालिया बयान स्वीकार योग्य है,परंतु यही बयान अकेला पर्याप्त नहीं है।

    गुवहाटी कोर्ट का फैसला

    शुरूआत में यह प्रावधन कोड आॅफ क्रिमनल प्रोसिजर 1861 के तहत आता था परंतु बाद में एवीडेंस एक्ट 1872 बनाया गया। जिसके तहत कार्यकारी व ज्यूडिशियरी के पाॅवर का बंटवारा किया गया। इसलिए यह कहा जा सकता है कि एवीडेंस एक्ट के सेक्शन 26 के तहत प्रयोग गए शब्द का सिर्फ मतलब मैजिस्ट्रेट से है।

    कोड आॅफ क्रिमनल प्रोसिजर 1861 के सेक्शन 3 के तहत साफ कहा गया है कि अगर बिना स्पष्ट किए गए मैजिस्ट्रेट शब्द का प्रयोग किया गया है तो इसका मतलब ज्यूडिशियल मैजिस्ट्रेट से है,अगर वह एरिया मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट के इलाके में नहीं आता है और अगर कोई इलाका मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट के तहत आता है तो वहां इसका अर्थ मेट्रोपोलिटन मैजिस्ट्रेट है।


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