गुवहाटी हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति के नागरिकता के दावे को खारिज कर दिया,जिसने 1965 में भारत में प्रवेश की बात कही थी [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

18 Jun 2019 12:25 PM IST

  • गुवहाटी हाईकोर्ट ने उस व्यक्ति के नागरिकता के दावे को खारिज कर दिया,जिसने 1965 में भारत में प्रवेश की बात कही थी [निर्णय पढ़े]

    गुवहाटी हाईकोर्ट ने असम में स्थित विदेशी ट्रिब्यूनल के एक व्यक्ति के खिलाफ दिए विष्कर्ष परिणाम को सही ठहराया है। इस व्यक्ति ने वर्ष 1965 में भारत में प्रवेश करने का दावा किया था।

    पिछले सितम्बर में बरपेटा में स्थित ट्रिब्यूनल ने एक अनिल बर्मन नामक व्यक्ति को विदेशी घोषित कर दिया था। बर्मन को इस आधार पर विदेशी घोषित किया गया था क्योंकि वह इस बात का कोई सबूत पेश नहीं कर पाया था कि वह असम में वर्ष 1971 से पहले से रह रहा है।
    हाईकोर्ट में याचिका दायर कर ट्रिब्यूनल के विष्कर्ष परिणाम को चुनौती दी गई थी। बर्मन ने एक राहत पात्रता प्रमाण पत्र का भी हवाला दिया था। जिसके अनुसार एक अनिल बर्मन,उम्र 14 साल ने 9 अप्रैल 1965 को भारत में प्रवेश किया था। उसने वर्ष 1989 की मतदाता सूची का भी हवाला दिया,जिसमें उसका नाम शामिल था।
    हालांकि जस्टिस मनोजीत भुइंया और जस्टिस प्रंशात कुमार डेका की खंडपीठ ने कहा कि मतदाता सूची में उसके पिता का नाम उमेश लिखा गया है,जबकि राहत पात्रता प्रमाण पत्र में उसके पिता के नाम का उल्लेख नहीं है। वहीं वर्ष 1989 से पहले की किसी भी मतदाता सूची में उसका नाम नहीं है। जबकि वर्ष 1975 में उसकी वोट देने की उम्र हो गई थी। पीठ ने कहा कि-
    ''इस दावे के संबंध में कोई कागजात नहीं है कि याचिकाकर्ता साधारण तौर से असम में वर्ष 1965 से रह रहा है,जैसा कि उसने दावा किया है। जबकि यह तथ्य महत्वपूर्ण है क्योंकि प्रवेश की तारीख के बाद से असम का निवासी होना,नागरिकता अधिनियम 1955 की धारा 6ए के तहत एक शर्त है।''
    हालांकि याचिकाकर्ता सेल डीड और जमाबंदी की प्रति भी पेश की ताकि अपने नागरिकता के दावे को साबित कर सके,परंतु कोर्ट ने कहा कि इन कागजातों की भी न तो मूल प्रति पेश की गई और न ही इनके कानूनी सरंक्षक के बयान करवाए गए।
    कोर्ट ने माना कि याचिकाकर्ता ट्रिब्यूनल के विष्कर्ष परिणाम में कोई दोष या गलती साबित नहीं कर पाया,इसलिए उसकी रिट याचिका को खारिज किया जाता है। पीठ ने कहा कि-
    ''हम इस बात से संतुष्ट है कि ट्रिब्यूनल का आदेश या विचार मामले के सभी तथ्यों,सबूतों व कागजातों को ध्यान में रखने के बाद दिया गया है। इसलिए ट्रिब्यूनल के विष्कर्ष परिणाम व विचार में कोई दुर्बलता या कमी नहीं है। हमने देखा है कि रिट कोर्ट का उत्प्रेषण क्षेत्राधिकार पर्यवेक्षी है,न कि अपीलेट। इसलिए यह न्यायालय ट्रिब्यूनल द्वारा पहुंचे तथ्यों के निष्कर्षो की समीक्षा करने से बचना चाहेगा।''

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