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देखभाल का कर्त्तव्य सर्जरी के साथ समाप्त नहीं होता है-एनसीडीआरसी ने दिया बाॅम्बे के अस्पताल व डाॅक्टरों को मृतक मरीज के परिवार को 31 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश [आर्डर पढ़े]
![देखभाल का कर्त्तव्य सर्जरी के साथ समाप्त नहीं होता है-एनसीडीआरसी ने दिया बाॅम्बे के अस्पताल व डाॅक्टरों को मृतक मरीज के परिवार को 31 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश [आर्डर पढ़े] देखभाल का कर्त्तव्य सर्जरी के साथ समाप्त नहीं होता है-एनसीडीआरसी ने दिया बाॅम्बे के अस्पताल व डाॅक्टरों को मृतक मरीज के परिवार को 31 लाख रुपए का भुगतान करने का आदेश [आर्डर पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/07/19361509-doctorjpg.jpg)
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने दक्षिण मुम्बई में स्थित बाॅम्बे के एक अस्पताल को यह निर्देश दिया है कि अस्पताल द्वारा बरती गई लापरवाही के लिए एक मृतक मरीज के परिजनों को 30 लाख रुपए बतौर मुआवजा दिया जाए।
फिजिशयन डाॅक्टर संजय वागले ने मरीज की पूरी हिस्ट्री को देखा था कि उसे क्या-क्या बीमारी है ओर किन-किन बीमारियों के लिए वह कौन-कौन सी दवाईयां ले रहा है। जिनमें क्रोनिक डिप्रेशन, आंख में मोतियाबिंद आदि भी शामिल था, जिनके लिए वह 20 साल से दवाईयां ले रहा था।
डाॅक्टर वागले ने मरीज की सभी दवाईयों और नुस्खों को देखा और उसको सर्जरी के लिए फिट करार दिया था। 28 जून 2004 को डाॅक्टर देसाई ने सर्जरी की थी। सर्जरी के बाद मरीज व उसके परिजनों को डाॅक्टर देसाई ने यह बताया था कि सर्जरी सफल रही है और मरीज को वार्ड में शिफ्ट कर दिया जाएगा।
शिकायकर्ता के अनुसार जब मरीज और उसके परिजन, उसको वार्ड में शिफ्ट करने का इंतजार कर रहे थे, तभी उनको यह जानकर धक्का लगा कि मरीज को आईसीयू में शिफ्ट कर दिया गया है। जो अस्पताल के तीसरे तल पर था।
शिकायतकर्ता पंकज तोरपानी व उसके परिजनों को यह बताया गया कि मरीज के निरीक्षण के लिए उसे शिफ्ट किया गया है। मरीज को उस समय होश आया हुआ था और वह मानसिक तौर पर परेशान था। उसने सवाल किया कि उसे यहां क्यूं लाया गया है।
अगले दिन मरीज ने नींद न आने की शिकायत की और बताया कि उसके पेट के निचले हिस्से में और गले में दर्द है। उसको सांस लेने में दिक्कत हो रही है। जब मरीज के परिजन आईसीयू के बाहर उसका इंतजार कर रहे थे, तभी उन्होंने आईसीयू के अंदर हुए शोर के चलते झांक कर देखा तो पाया कि मरीज को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और उसे कृत्रिम सांस दी जा रही है। डाॅॅक्टर देसाई की सहायक डाक्टर उस समय मरीज की देखरेख में थी। उसने मरीज के परिजनों को बताया कि मरीज को हार्ट अटैक आया है और उनको पुनर्जीवित किया गया है। जिसके बाद मरीज को वेंटिलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया।
उस समय डाॅक्टर वागले वहां उपस्थित नहीं थे और इस घटना के लगभग 2.5 घंटे बाद यह निर्देश दिए गए कि मरीज को 12वें फ्लोर पर स्थित आईसीयू में शिफ्ट कर दिया जाए। परंतु वेंटिलेटर पर रखने के बाद मरीज को फिर होश नहीं आया।
वह 14 फरवरी 2.15 तक लगभग 8 महीने अस्पताल में रहा। जिसके बाद उसे घर ले आया गया और आक्सिजन के सहयोग पर रखा गया परंतु वह उस समय भी कोमा में था। जब परिजनों को डिस्चार्ज सारांश दिया गया तो उसमें भी लिखा था कि 'मरीज होश में नहीं है और निष्क्रियता की स्थिति में है'।
फैसले में यह कहा गया था कि अगर इनमें से कोई भी ड्यूटी वह पूरी नहीं करता है तो उसके खिलाफ मरीज के प्रति लापरवाही बरतने की कार्यवाही की जा सकती है।
''इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मरीज 8 महीने तक अस्पताल में रहा था और लगभग 3 साल तक कोमा में रहा। उसके इलाज के खर्च के बिल के अनुसार 16,93,010 रुपए खर्च आया, जिसमें मेडि-क्लेम से मिले 3,75,000 रुपए शामिल नहीं है। जबकि डिस्चार्ज किए जाने के बाद भी खर्च हुआ है, जब मरीज कोमा में था। वहीं मरीज के परिजनों को मानसिक पीड़ा से गुजरना पड़ा। मरीज की उम्र व अन्य तथ्यों को देखते हुए, हमारा यह मानना है कि अस्पताल 30 लाख रुपए मरीज के परिजनों को देना होगा, ताकि उनको न्याय मिल सके। इसके अलावा दोनों डाॅक्टर को मिलकर 1लाख रुपए का हर्जाना देना होगा क्योंकि आयोग का यह मानना है कि देखभाल की ड्यूटी सर्जरी के साथ खत्म नहीं होती है।"