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असंज्ञेय अपराधों की जांच पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने निर्देश जारी किए

किसी थाने के एसएचओ जब किसी असंज्ञेय अपराध के बारे में जांच करने की अनुमति मांगती है तो उस संदर्भ में न्यायिक मजिस्ट्रेट को किस तरह से आदेश देना चाहिए इसको लेकर कर्नाटक हाईकोर्ट ने दिशानिर्देश जारी किया है।
न्यायमूर्ति पीजीएम पाटिल ने कहा,
"सीआरपीसी की धारा 155 की उपधारा 2 में स्पष्ट कहा गया है कि मजिस्ट्रेट ऐसा आदेश देगा जो तर्कसंगत है। दूसरी ओर कई मामलों में में मजिस्ट्रेट पुलिस की इस तरह की अर्ज़ी पर सिर्फ़ एक शब्द लिख देते हैं "अनुमति है" और यह धारा 155(2) की शर्तों को पूरा नहीं करता और इसे 'आदेश'नहीं कहा जा सकता।"
अदालत ने जो निर्देश जारी किए तो इस तरह से हैं :
i) न्यायिक मजिस्ट्रेट अब पुलिस के ही आवेदन पर 'अनुमति है' नहीं लिखेगी। सीआरपी की धारा 155 (2) के तहत इस तरह का समर्थन कानून की नजर में आदेश नहीं है जैसा कि अनिवार्य है।
ii) जब मजिस्ट्रेट के समक्ष इस तरह का आवेदन आता है, तो उसे इस पर यह लिखना चाहिए कि यह कैसे प्राप्त हुआ - डाक से या मुद्दम से और उसे चाहिए कि वह कार्यालय को एक अलग आदेश पत्र के साथ उसे उसके सामने रखने का निर्देश दे। उस अर्ज़ी पर ही कोई आदेश नहीं दिया जाना चाहिए। इसी आदेश पत्र को इस मामले में आगे बढ़ाना चाहिए।
iii) जब इस तरह की अर्ज़ी मजिस्ट्रेट के पास रखी जाती है, उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पुलिस थाने के एसएचओ ने इस तरह की अनुमति पत्र को उनके समक्ष पेश किया है कि नहीं।
iv) न्यायिक मजिस्ट्रेट को अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए आवश्यक सामग्री की जांच करनी चाहिए और यह दर्ज करना चाहिए कि क्या इसकी जाँच की जा सकती है या नहीं, अगर मजिस्ट्रेट को पता चलता है कि यह जांच करने के लिए फिट मामला नहीं है, तो वह इसे अस्वीकार कर देगा। आवेदन की व्यक्तिपरक संतुष्टि के बाद ही पुलिस अधिकारी को जांच करने की अनुमति देने का कोई आधार है, और वह यह लिखेगा कि इस गैर-संज्ञेय अपराध को जांच के लिए उपयुक्त पाए जाने पर इसकी अनुमति दी है।
v) यदि मजिस्ट्रेट जांच की अनुमति देने वाले आदेशों को पारित करता है, तो वह मामले की जांच करने वाले पुलिस अधिकारी के पद और पदनाम को निर्दिष्ट करेगा।
वगेप्पा गुरुलिंगा जंगलिगी (जंगलागी) की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया गया जिसमें कर्नाटक पुलिस अधिनियम के तहत कार्यवाही को निरस्त करने की माँग की गई थी।
अदालत ने कहा, "कागवाड़ पुलिस स्टेशन के एसएचओ को 23/9/2019 को PSI से शिकायत मिली और एसएचओ ने IV अतिरिक्त जेएमएफसी, अथानी को एक अनुरोध प्रस्तुत किया, जिसमें कर्नाटक पुलिस अधिनियम की धारा 87 के तहत अपराध की जांच करने की अनुमति मांगी गई। मजिस्ट्रेट ने इस अनुरोध पत्र पर जो लिखा वह इस तरह से था -'अनुरोध पत्र को पढ़ा गया। अनुमति है'। इससे स्पष्ट है कि पुलिस जाँच की अनुमति देने से पहले असंज्ञेयअपराध की जाँच के इस मामले में न्यायिक विवेक का कोई उपयोग नहीं किया गया। इन परिस्थितियों में अतिरिक्त सिविल जज और जेएमएफसी, अथानी ने याचिकाकर्ता के ख़िलाफ़ जो कार्यवाही शुरू की है उसे निरस्त की जा सकती है।"
आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें