बाॅम्बे हाईकोर्ट ने दी वकीलों को एकसाथ राहत,सीबीआई से कहा न उठाए कोई प्रतिरोधी या अवपीड़क कदम

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31 July 2019 5:21 PM GMT

  • बाॅम्बे हाईकोर्ट ने दी वकीलों को एकसाथ राहत,सीबीआई से कहा न उठाए कोई प्रतिरोधी या अवपीड़क कदम

    बाॅम्बे हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को उन वकीलों को एक साथ राहत दे दी है,जो वरिष्ठ वकील इंद्रा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के निर्देशन में आए थे। हाईकोर्ट ने सीबीआई को निर्देश दिया है कि वह इन सभी वकीलों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के मामले में कोई 19 अगस्त तक प्रतिरोधी या अवपीड़क कदम न उठाए।

    जस्टिस रणजीत मोर और जस्टिस भारती डांगरे की पीठ उस अर्जी पर सुनवाई कर रही थी जो इन वकीलों की तरफ से एक साथ दायर की गई थी। इस अर्जी में उस प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई है,जो उस एनजीओ के खिलाफ दर्ज की गई है,जो मानव अधिकारों के संबंध में काम करती है।
    इस मामले में प्राथमिकी पिछले महीने गृह मंत्रालय (एमएचए) में कार्यरत अंडर सेक्रेटरी अनिल कुमार धस्माना की शिकायत पर दर्ज की गई थी। यह प्राथमिकी 15 मई 2019 को दर्ज हुई है,जिसमें आरोप लगाया गया है कि एनजीओ ने विदेशों से मिले दान को उस काम में लगा दिए,जो उनके एसोसिएशन के उद्देश्य में शामिल नहीं है। इतना ही नहीं फंड का उपयोग व्यक्तिगत खर्चों के लिए भी किया गया है,जिनका इन उद्देश्यों से कोई लेना-देना नहीं है।
    प्राथमिकी में धोखाधड़ी,फर्जीवाड़े,आपराधिक षड्यंत्र और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम के उल्लंघन के आरोप लगाए गए है।
    इन सभी आरोपों के चलते वकीलों का एकसाथ या सामूहिक एफसीआरए लाइसेंस वर्ष 2016 में रद्द कर दिया गया था। एनजीओ ने इस ''अवैध ओर मनमाना'' बताते हुए कहा था कि यह सरकार के खिलाफ संवेदनशील मामलों को उठाने के चलते प्रतिशोधी तरीका या बदला लेने वाला तरीका है। उस रद्द करने के आदेश को भी बाॅम्बे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी जा चुकी है।
    पहले भी जस्टिस एम.एस सोनक वकीलों की तरफ से एक साथ दायर उस याचिका पर सुनवाई कर चुके है,जिसमें केंद्र सरकार के 27 मई 2016 के आदेश को चुनौती दी गई थी। विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम 2010 की धारा 14 के तहत जारी इस आदेश में एनजीओ के पंजीकरण का सर्टिफिकेट रद्द कर दिया गया था।
    अपने अंतरिम आदेश में जस्टिस सोनक ने माना था कि केंद्र सरकार के यह आरोप कि ''विदेशी दान को घरेलू फंड'' के साथ मिला दिया गया है ''
    अस्पष्ट व बिना तर्क'
    ' के है। इसके बाद कोर्ट ने सभी वकीलों के घरेलू खातों को खोलने या डिफ्रीज करने का आदेश दिया था।
    सीबीआई की प्राथमिकी के अनुसार ''एनजीओ का पंजीकरण सामाजिक गतिविधि करने के लिए करवाया गया था। जिसे वर्ष 2006-07 से 2014-15 के बीच में 32.39 करोड़ रूपए विदेशी फंड मिला है। परंतु इस पैसे को राजनीतिक काम के लिए प्रयोग किया गया है।''
    सीबीआई को यह भी निर्देश दिया गया है कि वकीलों की तरफ से एक साथ दायर उस अर्जी पर अपना जवाब दायर करे,जिसमें उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की गई है।

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