किसी बाल गवाह की क्षमता का निर्धारण कैसे हो : सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया [निर्णय पढ़े]

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28 July 2019 9:45 AM GMT

  • किसी बाल गवाह की क्षमता का निर्धारण कैसे हो : सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि एक आपराधिक मामले में बाल गवाहों को केवल इसलिए अक्षम नहीं कहा जा सकता क्योंकि वे उस व्यक्ति की पहचान करने में असमर्थ हैं जिसके सामने वो गवाही दे रहे हैं यानी वो जज और वकीलों को नहीं जानते हैं।

    क्या था यह पूरा मामला ?

    दरसअल पी. रमेश बनाम राज्य मामले में हत्या के एक मामले में अभियोजन पक्ष के 2 गवाह आरोपी और मृतका के नाबालिग बच्चे थे। ट्रायल जज ने इस आधार पर उनके सबूतों को दर्ज नहीं किया कि वे उस व्यक्ति की पहचान करने में असमर्थ थे, जिसके सामने वो बयान दे रहे थे। वो जज और वकीलों को नहीं जानते थे। हालांकि बाल गवाहों ने यह कहा था कि वो अपनी माँ की मृत्यु के लिए होने वाली परिस्थितियों के बारे में साक्ष्य के रूप में बयान देने आए थे। ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड के अन्य साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 और 498 ए के तहत दोषी ठहराया था।

    HC का इस मामले में रुख

    उच्च न्यायालय ने अभियुक्तों द्वारा दायर की गई अपील पर यह पाया कि बाल गवाहों की क्षमता को जानने के लिए ट्रायल कोर्ट ने जो सवाल पूछे और जिनके आधार पर साक्ष्य की रिकॉर्डिंग की अनुमति नहीं दी, वो गलत थे।

    "बाल गवाहों की क्षमता का आकलन सही नहीं हुआ"

    न्यायमूर्ति धनंजय वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की शीर्ष अदालत की पीठ ने उच्च न्यायालय के इस दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की और यह कहा कि बाल गवाहों के साक्ष्य दर्ज करने के लिए ट्रायल जज ने उनकी क्षमता का जो आकलन किया वो गलत था और इसके परिणामस्वरूप परिणाम न्याय की विफलता होगी।

    अदालत ने रखा अपना मत:
    "उन्होंने ट्रायल जज के समक्ष कहा कि वो अपनी माँ की मृत्यु से संबंधित परिस्थितियों के संबंध में साक्ष्य के लिए अदालत में आए हैं। जज को यह निर्धारित करने की आवश्यकता थी कि क्या बच्चे योग्य और सक्षम मनोस्थिति में हैं? इस अवसर पर कोर्ट में उपस्थित रहने के उद्देश्य को समझने में सक्षम हैं? बाल गवाह के साक्ष्य की रिकॉर्डिंग से पहले ट्रायल कोर्ट को तर्कसंगत उत्तर पाने के लिए बाल गवाह की क्षमता निर्धारित करने के लिए प्रासंगिक प्रश्न प्रस्तुत करने का अभ्यास करना चाहिए। यह अभ्यास अदालत को यह निर्धारित करने की अनुमति देगा कि क्या बच्चे के पास उक्त अपराध की घटनाओं को याद करने और बताने के लिए बौद्धिक और संज्ञानात्मक कौशल है ?"

    इस विषय पर कुछ पहले के निर्णयों का उल्लेख करते हुए पीठ ने किसी बाल गवाह की योग्यता निर्धारित करने की प्रक्रिया को समझाया। न्यायालय ने यह कहा :

    "बाल गवाह की योग्यता का निर्धारण करने के लिए न्यायाधीश को अपनी एक राय बनानी होगी। न्यायाधीश बच्चे की गवाह की क्षमता का परीक्षण करने की स्वतंत्रता में है और कोई भी सटीक नियम बाल गवाह के विवेक और ज्ञान को निर्धारित करने के लिए नहीं बनाया जा सकता। बाल गवाह की योग्यता, गवाह को समझने और अदालत के सामने सच बोलने की क्षमता का पता उससे सवाल पूछकर लगाया जा सकता है।

    किसी भी उम्र का व्यक्ति अदालत में गवाही देने के लिए सक्षम है यदि वह

    (i) एक गवाह के रूप में रखे गए प्रश्नों को समझने में सक्षम है, और

    (ii) ऐसे प्रश्नों के उत्तर देता है जिन्हें समझा जा सकता है।

    कम आयु के एक बच्चे को भी गवाही देने की अनुमति दी जा सकती है यदि उसके पास प्रश्नों को समझने और तर्कसंगत उत्तर देने के लिए बौद्धिक क्षमता है। बच्चा केवल तभी अक्षम हो सकता है, जब अदालत यह मानती है कि बच्चा प्रश्नों को समझने और उनका सुसंगत जवाब देने में असमर्थ है। यदि बच्चा किए गए प्रश्नों को समझता है और उन सवालों के तर्कसंगत जवाब देता है तो यह माना जा सकता है कि वह एक सक्षम गवाह है जिसकी अदालत द्वारा जांच की जा सकती है।"

    अपील को खारिज करते हुए पीठ ने हाल ही में गवाहों के बयानों के सीमित बिंदु पर पुनर्विचार के आदेश को बरकरार रखने के लिए राजस्थान के आत्माराम बनाम राज्य के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का भी उल्लेख किया।


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