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किसी विशेष उद्देश्य के लिए मुक़दमा दायर करने में देरी राहत से इंकार का आधार नहीं हो सकता अगर इसे निर्धारित समय सीमा के अंदर दायर किया गया : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
![किसी विशेष उद्देश्य के लिए मुक़दमा दायर करने में देरी राहत से इंकार का आधार नहीं हो सकता अगर इसे निर्धारित समय सीमा के अंदर दायर किया गया : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े] किसी विशेष उद्देश्य के लिए मुक़दमा दायर करने में देरी राहत से इंकार का आधार नहीं हो सकता अगर इसे निर्धारित समय सीमा के अंदर दायर किया गया : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/07/28362399-justice-rf-nariman-justice-surya-kantjpg.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी विशेष उद्देश्य के लिए मुक़दमा दायर करने में अगर देरी होती है तो इसे आधार बनाकर उस व्यक्ति को राहत देने से इंकार नहीं किया जा सकता बशर्ते मुक़दमा तय समय सीमा के अंदर दायर किया गया है।
आलोचय मामले में समझौते की अवधि 22.09.2002 है और मुक़दमा दायर किया गया 11.02.2005 को। इस मामले को ख़ारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था :
"वादी ने बताया है कि उसे 11.02.2005 तक क्यों प्रतीक्षा करनी है क्योंकि प्रतिवादी ने नोटिस को Ex. A7 मार्क करके भेजे जाने के बावजूद इसका कोई ख़याल नहीं किया। इसका मतलब यह हुआ कि वादी अपना वादा पूरा करने का इच्छुक या इसके लिए अभी तैयार नहीं है। इसका मतलब यह हुआ कि प्रतिवादी से वादी को Ex. A8 की प्राप्ति के बाद भी तत्काल अपील किए जाने को लेकर ज़्यादा उत्साह नहीं दिखाया। दूसरी ओर, लगभग दो साल के बाद उसने मामला दायर किया और विशेष उद्देश्य से राहत की माँग की। उक्त दो वर्ष की अवधि के लिए वादी ने शायद ही कोई तथ्य पेश किया है जिससे यह पता चलता हो कि वह अपने हिस्से के क़रार को पूरा करना चाहता है"।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और सूर्य कांत ने कहा कि मुक़दमा दायर करने में कुछ समय की देरी को हाईकोर्ट ने यह कहने के लिए वह इसका इच्छुक नहीं है, इसे वादी के ख़िलाफ़ मानकर ग़लत किया। अदालत ने कहा,
भारत में यह एक निर्धारित तथ्य है कि इंग्लैंड में समानता का जो नियम है वह यहाँ लागू नहीं होता और अगर किसी विशेष उद्देश्य के लिए कोई मुक़दमा निर्धारित समय सीमा के तहत दायर किया गया है तो देरी के लिए वादी को दोष नहीं दिया जा सकता।
पीठ ने इस बारे में मदेमसेट्टी सत्यनारायण बनाम जी येलोजी राव मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का ज़िक्र किया जिसमें अंग्रेज़ी और भारतीय पद्धतियों में मौलिक अंतर का उल्लेख किया। अदालत ने कहा,
इंग्लैंड में विशेष उद्देश्य का मामला समानता के तहत आता है; भारत में, यह वैधानिक क़ानून के तहत आता है। इंग्लैंड में उक्त राहत के लिए मुक़दमा दायर करने की कोई अवधि निर्धारित नहीं है और इसलिए देरी, जो परिस्थितियों पर निर्भर करता है, अपने आप में ही राहत देने से मना करने के लिए पर्याप्त है; लेकिन भारत में महज़ देरी होना राहत से इंकार का आधार नहीं हो सकता क्योंकि क़ानून में इसकी सीमा निर्धारित है। अगर मुक़दमा समय पर दायर किया गया है तो देरी की क़ानून के तहत इजाज़त है; अगर यह समय के बाद दायर किया गया है तो मुक़दमा ख़ारिज हो जाएगा क्योंकि इस पर समय सीमा की पाबंदी है; दोनों ही स्थितियों में समानता का सवाल ही नहीं उठता"।