दिल्ली हाईकोर्ट ने दूरदर्शन के खिलाफ डिश टीवी को निषेधाज्ञा या आदेश प्रदान करते हुए दूरदर्शन को उसकी सेवाओं के लिए 'डिश' शब्द का प्रयोग करने से रोक दिया है। जस्टिस सहाय एंडलाॅ की 1 सदस्यीय पीठ ने हालांकि प्रतिवादी के सार्वजनिक क्षेत्राधिकारी के दावे को स्वीकार करने से इंकार करते हुए यह कहा कि इस तरह के शब्द का प्रयोग प्रथम दृष्टया उल्लंघन का केस बनता है।
दलील दी गयी कि 'डिश' शब्द है डिश टीवी का ट्रेडमार्क
इस मामले में वादी ने स्थाई निषेधाज्ञा (permanent injunction) के लिए सूट या केस दायर किया था ताकि प्रतिवादी को उनके ट्रेडमार्क 'डिश टीवी' का उल्लंघन करने से रोका जा सके। वादी की तरफ से यह दलील दी गई कि 'डिश' शब्द का प्रयोग सबसे पहले उन्होंने गढ़ा था,जो अब उनके ट्रेडमार्क का अभिन्न व विशिष्ट तत्व है। इतना ही नहीं प्रतिवादी एक 'लोगो या चिन्ह' का प्रयोग कर रहा है,जो वादी के चिन्ह जैसा ही है।
प्रतिवादी (दूरदर्शन) की ओर से दी गयी दलील
दूसरी तरफ प्रतिवादी की तरफ से किसी तरह की चालाकी या धूर्तता की बात से इंकार किया गया था और यह दलील दी गई कि 'डिश' सार्वजनिक क्षेत्राधिकार है और इस पर कोई अपने व्यक्तिगत अधिकार या एकल अधिकार का दावा नहीं कर सकता है।
इसके अलावा यह कहा गया कि ट्रेडमार्क एक्ट 1999 या व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 17 के तहत ट्रेडमार्क का पंजीकरण मार्क के अधिकारों को एक पूरे के रूप में चिन्हित करता है और भाग के या निशान के टुकड़े में नहीं, वादी ने अपने उत्पाद के ब्रांड या छाप के लिए व्यापक शब्द 'डिश' को चुना है। बाजार में प्रवेश करने वाले किसी अन्य व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह अपने उत्पाद की पहचान करने के लिए उक्त शब्द का प्रयोग कर सके। वादी अगर वांछित नहीं है तो उसे चाहिए कि वह एक अद्वितीय नाम के साथ अपने उत्पाद की ब्रांडिंग या छाप करे।
अदालत द्वारा दिया गया निर्णय के पीछे का तर्क
कोर्ट ने यह माना कि जब प्रतिवादी खुद से इस योग्य था कि उसने अपनी सेवा बिना 'डिश' शब्द का प्रयोग किए वर्ष 2004 से 2014 तक उपलब्ध करा दी थी। वहीं अन्य भी बिना 'डिश' शब्द का प्रयोग किए वहीं सेवा प्रदान कर रहे है जो वादी व प्रतिवादी दे रहे है तो प्रतिवादी यह नहीं कह सकता है कि 'डिश' शब्द का प्रयोग उनके द्वारा दी जा रही सेवा का मात्र एक प्रकार या विशेषता है। ऐसे में व्यापार चिन्ह अधिनियम की धारा 30 के तहत के तहत प्रतिवादी के पास कोई बचाव या दलील उपलब्ध नहीं है।
"दर्शकों/उपभोक्ताओ के मन मे आएगा भ्रम"
कोर्ट ने प्रतिवादी के सार्वजनिक क्षेत्राधिकार वाले दावे को भी खारिज करते हुए यह कहा कि 'डिश' शब्द डीटीएच सेवाओं के लिए कोई व्यापक या साधारण शब्द नहीं है। अंत में कोर्ट ने यूनाइटेड बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड एंड लक्ष्मीकांत बनाम पटेल के मामले में में निर्धारित अनुपात पर भरोसा किया, जो वादी के पंजीकृत ट्रेडमार्क के एक प्रमुख हिस्से को प्रतिवादी द्वारा उपयोग करने के मामले में लागू किया गया था। इस मामले में यह माना गया था कि प्रतिवादी द्वारा चिन्ह का प्रयोग करना प्रथम दृष्टया उल्लंघन का मामला है। इससे उपभोक्ता/ग्राहकों में एक राय बन जाएगी कि वादी, दूरदर्शन के साथ मिलकर कुछ निश्चित चैनल मुफ्त में उपलब्ध करा रहा है और इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता/ग्राहक वादी के पेड यानि पैसे के बदले दिखाए जाने वाले चैनलों को भी मुफ्त में दिखाए जाने की मांग करेंगे।
अदालत ने प्रतिवादी (दूरदर्शन) की आलोचना भी की
वादी को निषेधाज्ञा प्रदान करते हुए कोर्ट ने वादी द्वारा बार-बार की गई शिकायतों के बावजूद कोई कार्यवाही करने में देरी करने के लिए प्रतिवादी की आलोचना भी की। अदालत ने कहा कि यह निराशाजनक है कि प्रतिवादी, एक सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम, ने दूसरे के ट्रेडमार्क का उपयोग किया और वादी द्वारा आपत्ति दर्ज कराए जाने के बावजूद यथोचित कार्य करने से इंकार कर दिया। सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम से ऐसी उम्मीद नहीं की जाती है जिसे सरकार की घोषित मुकदमेबाजी नीति के अनुसार ऐसे कार्य में संलिप्त नहीं होना चाहिए।