अपराध में शामिल हथियार की बरामदगी के समय कोई आम गवाह उपलब्ध नहीं है तो इस वजह से पुलिस गवाह के बयान की सत्यता पर शक नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

26 July 2019 7:00 AM GMT

  • अपराध में शामिल हथियार की बरामदगी के समय कोई आम गवाह उपलब्ध नहीं है तो इस वजह से पुलिस गवाह के बयान की सत्यता पर शक नहीं किया जा सकता : दिल्ली हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि सिर्फ़ इस वजह से कि हथियार की बरामदगी के समय कोई आम गवाह नहीं था, पुलिस गवाह के बयान की सत्यता पर शक नहीं किया जा सकता या उसकी गवाही को परे नहीं रखा जा सकता।

    एक लंबित याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हिमा कोहली और मनोज कुमार ओहरी की पीठ ने यह कहा। याचिका में सत्र अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसने आईपीसी की धारा 302/34 के तहत अपीलकर्ता को दोषी ठहराया था। पीठ ने कहा कि यह मामला आईपीसी की धारा 302 और आईपीसी की धारा 304 भाग II तक इसमें नरमी बरते जाने का है।

    अपीलकर्ता को चंदू नामक एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में दोषी ठहराया गया था जिसने श्याम की बहन को छेड़ने का प्रयास किया था जो इस मामले में एक अपीलकर्ता है। अदालत ने कहा कि मृतक को जिस तरह का आघात लगा था, इस अपराध में जो हथियार प्रयुक्त हुआ और परिस्थिति पर ग़ौर करने से पता चलता है कि अपीलकर्ता मृतक को मारने के लिए तैयार होकर नहीं आया था। उसने जब मृतक को अपनी बहन के साथ दुर्व्यवहार करते हुए पाया तो ग़ुस्से में उस पर आक्रमण किया।

    "पीडब्ल्यू-2 के बयान के आधार पर एक बार जब रुक्का और बाद में एफआईआर में आरोपी का नाम दर्ज कर लिया गया तो इस गवाह के मुकरने के बावजूद अपीलकर्ता यह नहीं कह सकता कि अभियोजन ने उसे फँसाने का प्रयास किया है या ग़लत बरामदगी दिखाई है"।

    अदालत ने कहा कि मुकर चुके गवाह के अलावा भी अन्य आम गवाह थे। अदालत ने कहा कि अदालत के पास पुलिस ने जो बरामदगी दिखाई है उस पर सिर्फ़ इसलिए अविश्वास करने का कोई अच्छा कारण नहीं है कि वे लोग पुलिस अधिकारी हैं।

    कई सारे मामलों में आए फ़ैसलों का ज़िक्र करते हुए अदालत ने कहा कि सिर्फ़ इस वजह से कि अपराध में प्रयुक्त हथियार की बरामदगी दिखाने के समय कोई आम गवाह मौजूद नहीं था, पुलिस गवाहों के बयानों को ग़लत नहीं ठहराया जा सकता।

    अदालत ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया और अपीलकर्ता की सज़ा को कम करते हुए इसे सात साल का सश्रम कारावास कर दिया।


    Tags
    Next Story