आईपीएबी में तकनीकी सदस्यों की जगह का ख़ाली रहना दुखद, दिल्ली हाईकोर्ट ने आवश्यकता के सिद्धांत का दिया हवाला, सुझाए तरीक़े [निर्णय पढ़े]

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21 July 2019 11:21 AM GMT

  • आईपीएबी में तकनीकी सदस्यों की जगह का ख़ाली रहना दुखद, दिल्ली हाईकोर्ट ने आवश्यकता के सिद्धांत का दिया हवाला, सुझाए तरीक़े [निर्णय पढ़े]

    आईपीएबी ने तकनीकी सदस्यों के अभाव में 2003 में अपनी स्थापना के बाद से आज तक कॉपीरायट के एक भी मामले की सुनवाई नहीं की

    दिल्ली हाईकोर्ट ने इस बात पर बेहद दुःख जताया है कि 2003 में अपनी स्थापना के बाद से बौद्धिक सम्पदा अपीली बोर्ड (आईपीएबी) ने तकनीकी सदस्यों के बोर्ड में नहीं रहने के कारण उसने एक भी मामले की सुनवाई नहीं की है। यह बोर्डपेटेंट अधिनियम से और पौधों की प्रजातियों के संरक्षण किसानों के अधिकारों से संबंधित अधिनियम से जुड़े तकनीकी मुद्दों पर फ़ैसला लेने के लिए बना था पर बोर्ड में कॉपीरायट से संबंधित तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति में सरकार के विफलरहने के कारण बोर्ड आज तक किसी मामले की सुनवाई नहीं कर पाया है।

    "कोर्ट को यह जानकर काफ़ी दुःख हुआ है कि आज तक बोर्ड में तकनीकी सदस्य (कॉपीरायट) की नियुक्ति नहीं हुई है। बोर्ड में तकनीकी सदस्य (पेटेंट) का पद भी 4 मई 2016 से ख़ाली है जबकि तकनीकी सदस्य (ट्रेड मार्क) का पैड 5दिसंबर 2018 से ख़ाली है। आईपीएबी में सिर्फ़ पौध प्रजाति संरक्षण का एक सदस्य है।

    "आईपीएबी के सभी पीठों को मिलाकर कुल लगभग 3935 मामले लंबित हैं। हालाँकि, ट्रेडमार्क्स, कॉपीरायट्स और पेटेंट्स के मामले की कोई सुनवाई नहीं हो रही है क्योंकि इनके तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति ही नहीं हुई है। किसी पेटेंट कीअवधि मात्र 20 साल होती है और कोरम के अभाव में कई पेटेंट की समय सीमा भी बीत चुकी है, ये मामले निष्फल हो चुके हैं और पक्षकारों के अधिकार इससे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं," यह कहना था न्यायमूर्ति मिधा का।

    न्यायमूर्ति जेआर मिधा को आईपीएबी में इस भारी संकट का पता तब लगा जब वे माइलैन लेबोरेटरीज की एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे जिसने पैटेंट और डिज़ाइन के उपनियंत्रक के आदेश को चुनौती दी है। यह आदेश 14 मार्च को दियागया जिसमें "पेप्टायड मिश्रण के आँकलन के तरीक़े" का पेटेंट किसी अन्य पक्ष को दे दिया गया है।

    माइलैन ने आईपीएबी में अपील की थी पर बाद में उसने शीघ्र सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में अर्ज़ी दी क्योंकि आईपीएबी तकनीकी सदस्य के अभाव में 4 मई 2016 से काम नहीं कर रहा है।

    इसके बाद अदालत ने आईपीएबी के रजिस्ट्रार से एक रिपोर्ट तलब किया और उसे आईपीएबी में तकनीकी पदों के ख़ाली रहने को लेकर स्थिति रिपोर्ट पेश करने को कहा। अदालत ने कहा कि स्थिति रिपोर्ट से जो कुछ तथ्य उभरे हैं वे इस तरहसे हैं -

    a. आईपीएबी के सभी पीठों में कुल 3935 मामले लंबित हैं।

    b. आईपीएबी के अध्यक्ष का पद बोर्ड के 2003 में गठन के बाद लगभग तीन साल तक ख़ाली रहा।

    c. आईपीएबी के उपाध्यक्ष का पद लगभग 7 सालों तक ख़ाली रहा और अब फिर यह पिछले 5 सालों से ख़ाली है।

    d. बोर्ड में ट्रेड मार्क्स के तकनीकी सदस्य का पैड पिछले 6 माह से ख़ाली है।

    पीठ ने कहा कि 2016 में न्यायमूर्ति केएन बाशा के रिटायर होने के बाद आईपीएबी अध्यक्ष का पद ख़ाली रहा और 01.01.2018 को न्यायमूर्ति मनमोहन सिंह की नियुक्ति तक किसी मामले की सुनवाई नहीं हुई। सिंह की नियुक्ति के बादट्रेड्मार्क पीठ को पुनर्गठित किया गया और 01.01.2018 से 04.12.2018 के बीच 720 मामलों का निस्तारन किया गया।

    याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिधा ने कहा कि अन्य तकनीकी सदस्यों की नियुक्ति होने तक आईपीएबी के अध्यक्ष और तकनीकी सदस्य (पौध विविधता संरक्षण) पैटेंट, ट्रेड मार्क और कॉपीरायट के ज़रूरी मामलों की सुनवाई करनेमें सक्षम हैं और उनका फ़ैसला कोरम के अभाव के अमान्य नहीं होगा।

    न्यायमूर्ति मिधा ने कहा, "यह स्पष्ट है कि संघ सरकार ने आईपीएबी में रिक्त पदों को भरने का कोई प्रयास नहीं किया …इस वजह से भारी संख्या में मुक़दमादारों को त्वरित सुनवाई के लिए हाईकोर्ट आना पड़ रहा है। वर्तमान मामले जैसे कईमामलों में मुक़दमादारों द्वारा दायर मामले पर नम्बर तक नहीं अंकित किए जा रहे हैं। यह संविधान की धारा 21 के तहत न्याय तक पहुँच के अधिकार का पूरी तरह उल्लंघन है…"

    यह पहला मामला नहीं

    अदालत ने कहा कि यह पहला मौक़ा नहीं है जब किसी अधिकरण में इस तरह का संकट उठा है। अधिकरणों में ख़ाली पदों पर नियुक्ति नहीं होने की वजह से इस तरह के संकट उठते रहे हैं। इस तरह के संकटों को दूर करने के लिए कोईअल्पकालिक क़दम नहीं उठाया जाना चाहिए बल्कि ऐसा प्रयास हो कि यह संकट सदा के लिए दूर हो जाए।

    न्यायमूर्ति मिधा ने कहा, "आईपीएबी के निष्क्रिय रहने का स्थाई और उचित समाधान सिर्फ़ यह नहीं होगा कि रिक्त पदों की नियुक्ति शीघ्र की जाए बल्कि ट्रेड मार्क्स अधिनियम को संशोधित कर ऐसे प्रावधान बनाए जाएँ कि आईपीएबी में दो-सदस्यीय पीठ के अलावा एकल पीठ भी मामलों की सुनवाई कर सके…"

    उन्होंने सुझाव दिया कि उपभोक्ता संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2001 से सबक़ लेते हुए आईपीएबी में भी संशोधन किया जाना चाहिए। इसमें संशोधन कर इसके राज्य आयोग/राष्ट्रीय आयोग के अध्यक्ष को एक या इससे अधिक सदस्यों वालीपीठ के गठन की इजाज़त दे दी गई। ऐसा मामलों के त्वरित निस्तारन के लिए किया गया।

    तदर्थ आधार पर विशेषज्ञों को रखा जाए

    उन्होंने सुझाव दिया कि जब तक तकनीकी सदस्य की नियुक्ति होती है तब तक के लिए अधिनियम के तहत तदर्थ सदस्यों की नियुक्ति की जाए ताकि अधिकरण में काम हो सके।

    आवश्यकता का सिद्धांत

    वर्तमान मामले में अदालत ने अंततः आवश्यकता के सिद्धांत का हवाला दिया ताकि पक्षकारों के अधिकारों पर कोई प्रभाव न पड़े।

    पीठ ने इस बारे में क्वालिटी रेस्तराँ एंड आइस क्रीम कं. बनाम आयुक्त, वैट मामले में दिए गए फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें अदालत ने कहा था कि अगर पूर्ण कोरम उपलब्ध नहीं है तो अपीली अधिकरण दो सदस्यों के साथ भी अपील केनिस्तारन के पक्ष में फ़ैसला दिया था।

    "ट्रेड मार्क्स अधिनियम की धारा 84(2) में प्रावधान है कि आईपीएबी पीठ में एक न्यायिक सदस्य और एक तकनीकी सदस्य होगा। पर नियम इस बारे में चुप है कि अगर तकनीकी सदस्य का सीट ख़ाली है या अगर है भी तो वह इसमें भाग नहींले सकता उस स्थिति में क्या किया जाए।

    "इस अदालत का यह मत है कि वर्तमान परिस्थिति में आवश्यकता के सिद्धांत को लागू किया जाना चाहिए। वैधानिक मंशा इस संस्थान के चलते रहने की है, पदों के रिक्त रहने के कारण इसके रुकने की नहीं। अगर तकनीकी सदस्य का पदख़ाली है, आईपीएबी ज़रूरी मामलों की सुनवाई कर सकता है और वह जो आदेश देगा वह कोरम पूरा नहीं होने के कारण अमान्य नहीं होगा," न्यायमूर्ति मिधा ने कहा।

    अदालत ने आगे कहा कि अगर तकनीकी सदस्य (पौध विविधता संरक्षण) किसी कारण से मामले की सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं है या ख़ुद को मामले से अलग कर लिया है, आईपीएबी का अध्यक्ष इस मामले की सुनवाई कर सकता है औरअध्यक्ष पेटेंट अधिनियम की धारा 115 के तहत अधिसूचित वैज्ञानिक सलाहकारों से विशेषज्ञ राय ले सकते हैं।

    "आईपीएबी के अध्यक्ष और तकनीकी सदस्य (पौध विविधता संरक्षण) को निर्देश दिया जाता है कि वे याचिकाकर्ता के लंबित मामले की इस आदेश के संदर्भ में सुनवाई करें और छह सप्ताह के भीतर इस पर निर्णय सुनाएँ।

    पीठ ने आगे कहा कि अध्यक्ष और तकनीकी सदस्य (पौध विविधता संरक्षण) पेटेंट, ट्रेड मार्क्स और कॉपीरायट के अन्य मामलों की सुनवाई करने केली भी स्वतंत्र हैं।


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