मध्यस्थता फ़ैसले के स्थगन आवेदन पर ग़ौर करने के दौरान सरकार को विशिष्ट तरजीह नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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21 July 2019 11:00 AM GMT

  • मध्यस्थता फ़ैसले के स्थगन आवेदन पर ग़ौर करने के दौरान सरकार को विशिष्ट तरजीह नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत फ़ैसले पर धारा 36 के तहत अगर सरकार ने स्थगन के लिए आवेदन किया है तो उसको इस मामले में विशेष तरजीह नहीं दिया जा सकता।

    न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने इस संबंध में कलकत्ता हाईकोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने सरकार के ख़िलाफ़ दिए गए फ़ैसले को बिनाशर्त अनिश्चित काल तक लिए स्थगित कर दिया था। कलकत्ता हाईकोर्ट ने इसके लिए CPC के आदेश XXVII के नियम 8A पर भरोसा किया।

    धारा 36 कहता है कि अगर इसके तहत स्थगन का आग्रह किया गया है तो अदालत को स्थगन देने का विशेषाधिकार है और इसे वह जैसा भी उचित समझे, सशर्त बना सकता है। पर इस प्रावधान में यह भी कहा गया है कि स्थगन की अनुमति देते हुए अदालत को सीपीसी के प्रावधानों का ख़याल रखना होगा।

    सीपीसी का आदेश XXVII नियम 8A कहता है कि अगर सरकार के ख़िलाफ़ रुपए का कोई आदेश जारी किया गया है तो सरकार को स्थगन आदेश प्राप्त करने के लिए किसी तरह की सुरक्षित राशि जमा करने की ज़रूरत नहीं होगी।

    यह मामला है पाम डेवलपमेंट प्राइवेट लिमिटेड बनाम पश्चिम बंगाल राज्य का।

    पीठ ने कहा कि "उचित ध्यान देने" का मतलब यह है कि सीपीसी के प्रावधानों पर ग़ौर किया जाना चाहिए और इसका मतलब यह नहीं है कि यह ज़रूरी है।

    "हमारी राय में, वर्तमान संदर्भ में सीपीसी के प्रावधानों के संदर्भ में जिस वाक्य का प्रयोग किया गया है वह "ध्यान में रखते हुए" का है न कि "के अनुसार" का…सीपीसी के प्रावधानों पर दिशानिर्देश के रूप में अमल होना चाहिए जबकि मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधानों को सबसे पहले लागू करने की ज़रूरत है। चूँकि मध्यस्थता अधिनियम अपने आप में ही एकपूर्ण अधिनियम है, सीपीसी के प्रावधान तभी लागू होंगे जब वे मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधानों की भावना और उसके प्रावधानों के अनुरूप नहीं होंगे"।

    सरकार को विशेष तरजीह नहीं

    पीठ ने कहा,

    "मध्यस्थता की प्रक्रिया आवश्यक रूप से विवाद के शीघ्र निपटारे की एक वैकल्पिक व्यवस्था है…और अगर आदेश पैसे चुकाने को लेकर है - जैसा कि सरकार के ख़िलाफ़ मध्यस्थ ने सुनाया है, और अगर इसे स्वतः ही स्थगित किए जाने की अनुमति दी जाती है तो विवाद के शीघ्र निपटारे का उद्देश्य ही पराजित हो जाएगा…सिर्फ़ अधिनियम की धारा 34 के तहतमहज़ एक आपत्ति दायर कर जिसके समर्थन में फ़ैसला दिया गया है उसको इससे वंचित किया जा सकता है। मध्यस्थता अधिनियम एक विशेष अधिनियम है…जिसकी धारा 18 में कहा गया है कि हर पक्ष के साथ समानता का व्यवहार होगा। एक बार जब अधिनियम यह बात कहता है तो सरकार को एक पक्षकार के रूप में विशेष तरजीह नहीं दिया जासकता…मध्यस्थता अधिनियम की धारा 36 में सीपीसी का संदर्भ सिर्फ़ अदालत को यह निर्देश देना है कि वह कौन सी शर्तें लगा सकता है और इन्हें मध्यस्थता अधिनियम के अनुरूप होना चाहिए"।

    सरकार पैसे जमा करने से छूट नहीं है

    अदालत ने 1977 में हुए सीपीसी संशोधन के संदर्भ में आदेश XXVII नियम 8A की व्याख्या में कहा कि इसके तहत सरकार को राशि को जमा कराने से छूट नहीं है और अदालत को सीपीसी के आदेश XLI नियम 5(5) के तहत अब इसका निर्देश देने का अधिकार है।

    अदालत ने कहा, "सीपीसी का नियम 5 और 6 के अनुसार स्थगन आदेश पर ग़ौर करने के दौरान सरकार से सुरक्षित राशि जमा करने को नहीं कहा जा सकता है। पर उसमें यह नहीं कहा गया है कि रुपए जमा करने के फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील करने के क्रम में फ़ैसले की राशि जमा नहीं करनी है।"

    पुराने नियम अब नहीं लागू हो सकते

    अदालत ने कहा कि आदेश XXVII नियम 8A ब्रिटिश शासन के दौरान 1937 में बना जिसमें सरकार (जो उस समय ब्रिटिश सम्राट था) को सुरक्षा प्रदान की गई थी पर आज की तारीख़ में जब देश में एक लोकतांत्रिक सरकार है, यह लागू नहीं हो सकता।


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