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कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस दंडाधिकारी को किया बहाल,जो अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त थे,खुद पर लगाया एक लाख रुपए हर्जाना [निर्णय पढ़े]
![कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस दंडाधिकारी को किया बहाल,जो अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त थे,खुद पर लगाया एक लाख रुपए हर्जाना [निर्णय पढ़े] कलकत्ता हाईकोर्ट ने उस दंडाधिकारी को किया बहाल,जो अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त थे,खुद पर लगाया एक लाख रुपए हर्जाना [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/images/calcutta-high-courtjpg.jpg)
अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त एक न्यायिक अधिकारी को फिर से नौकरी पर रखते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने हाईकोर्ट को यह निर्देश दिया है कि वह इस अधिकारी को 1 लाख रुपए मुआवजे के तौर पर दे।
रेलवे दंडाधिकारी की कोर्ट के समक्ष पी. के. सिंह नामक एक कर्मचारी के साथ रेलवे के कुछ कर्मचारी नारेबाजी कर रहे थे और रेलवे दंडाधिकारी के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग कर रहे थे। इतना ही नहीं उन्होंने कोर्ट के कामकाज को भी प्रभावित किया। इसलिए आर. के. सिंह को हिरासत में ले लिया गया और उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 228 के तहत केस शुरू कर दिया गया।
यह अपीलकर्ता के पक्ष में गलत हो सकता है कि उसने अपने न्यायिक कार्यालय का उपयोग उसे सही करने के लिए किया जो सार्वजनिक रूप में गलत था। वास्तव में अधिकांश भारतीय ऐसे मामलों को दूसरे तरीके से देखते है, यहां तक कि जब उनकी उपस्थिति में अपराध किया जाता है या कोई गलत काम किया जाता है, कि ऐसा न हो कि कहीं वे भी किसी परिहार्य अदालती कार्यवाही में घसीटे जाएं। इस नासमझ न्यायिक अधिकारी ने सोचा कि वह अकेले तस्कर माफिया से निपट लेगा।''
''रेलवे दंडाधिकारी की कोर्ट में रेलवे कर्मियों द्वारा की गई बेइज्जती और मिली धमकी के लिए हाईकोर्ट से इस न्यायिक अधिकारी को संरक्षण तो मिला नहीं, जबकि यह रेलवे दंडाधिकारी था जो सार्वजनिक तौर पर हो रहे गलत कार्य को ठीक करने के प्रयास में खुद पीड़ित बन गया। किसी स्तर पर याचिकाकर्ता ने हो सकता है अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर काम किया हो, परंतु प्राथमिक रिपोर्ट से भी पता चलता है कि याचिकाकर्ता का कोई गलत इरादा नहीं था या उसकी कोई गलत भावना नहीं थी। प्राथमिक रिपोर्ट में इस बारे में सबकुछ साफ है। जांच की रिपोर्ट इसी प्राथमिक रिपोर्ट का समर्थन करती है। इतना ही नहीं अनुशासनात्मक अधिकारी को भी इस बारे में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं मिला कि याचिकाकर्ता ने दुर्भावना के चलते ऐसा किया था।''