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अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम के तहत वयस्क पीड़िता को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सुधार गृह में नहीं भेजा जा सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
19 July 2019 3:11 PM GMT
अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम के तहत वयस्क पीड़िता को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सुधार गृह में नहीं भेजा जा सकता : बॉम्बे हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
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एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम के तहत किसी बालिग़ पीड़िता को उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सुधार गृह में नहीं भेजा जा सकता।

न्यायमूर्ति एसएस शिंदे ने पुणे की रहने वाली 34 वर्षीया असिया शेख़ की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। असिया ने दावा किया था कि उसने पीड़िता का उस समय से पालन-पोषण किया है जब वह एक बच्ची थी हालाँकि वह उसकी अपनी बेटी नहीं है।

पृष्ठभूमि

पीड़िता को पंढरपुर के नज़दीक एक लॉज से एक छापे के दौरान छुड़ाया गया था। इसके बाद पंढरपुर के तालुक़ा पुलिस थाने में इस मामले में 11 लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई गई। पीड़िता को छुड़ाने के बाद उसे एक सामाजिक कार्यकर्ता के संरक्षण में थोड़े समय के लिए रखा गया।

इसके बाद पुलिस ने पंढरपुर के जेएमएफसी को आवेदन दिया कि पीड़िता को किसी सुधार संस्थान जैसे महिला सुधार गृह, सोलापुर में रखा जाए ताकि उसका ख़याल रखा जा सके और सुरक्षा दी जा सके।

हालाँकि पीड़िता की "माँ" होने का दावा करने वाली एक महिला ने याचिका दायर कर उसे उसके हवाले करने की माँग की। वैसे अभियोजन का दावा था कि याचिकाकर्ता महिला ने ही उसे वेश्यावृत्ति में धकेला।

जेएमएफसी ने जाँच अधिकारी को अनैतिक व्यापार रोकथाम अधिनियम की धारा 17(2) के तहत मामले की जान करने को कहा जिसकी रिपोर्ट के आधार परजेएमएफसी ने दोनों ही आवेदनों को ख़ारिज कर 23 जनवरी 2019 को आदेश ज़ारिकर पीड़िता को शासकीय महिला राज्य गृह, प्रेरणा महिला वास्ति गृह, बारामती, ज़िला पुणे में एक साल तक रखने का आदेश दिया।

अतिरिक्त सत्र जज के समक्ष इस आदेश को चुनौती दी गई पर इसे ख़ारिज कर दिया गया जिसके बाद वर्तमान याचिका दायर की गई।

फ़ैसला

याचिकाकर्ता के वक़ील सत्यव्रत जोशी और एएपी एआर पाटिल ने राज्य सरकार की पैरवी की।

जोशी ने कहा कि पीड़िता ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि याचिकाकर्ता ने उसे वेश्यावृत्ति में धकेला अपर दोनों ही अदालतों ने उसे इस बात का दोषी मानने की ग़लती की है। फिर, जाँच अधिकारी ने विभिन्न बातों पर ग़ौर करते हुए यह राय ज़ाहिर की थी कि पीड़िता को आवेदक को सौंप दिया जाए पर दोनों ही अदालतों ने इस बात को नज़रंदाज़ किया है।

अदालत ने दोनों ही पक्षों से पेश की गई दलील पर ग़ौर किया और कहा,

"ऐसा लगता है कि आवेदक ने ख़ुद को पीड़िता की माँ के रूप में पेश किया और जेएमएफसी के समक्ष यह दावा किया गया कि पीड़िता उसकी बेटी है। पर जेएमएफसी की जब आवेदक से बात हुई तब उसने बताया कि उसने पीड़िता को जन्म नहीं दिया है…पर वह उसका छुटपन से ही देखभाल कर रही है। अतिरिक्त सत्र जज ने अपने आदेश में आवेदक के व्यवहार पर भी ग़ौर किया और अपने फ़ैसले के पैराग्राफ़ 12 में इसका ज़िक्र किया है"।

कोर्ट ने आगे कहा,

"पीड़िता बालिग़ है और सिलिए उसे उसकी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ सुधार गृह में नहीं भेजा जा सकता। प्रतिवादी नंबर-2 के वक़ील का कहना है कि पीड़िता को उस जगह पर रहने का अधिकार है जिस जगह पर वह रहना चाहती है ताकि वह स्वतंत्र रूप से देश भर में जहाँ चाहे जाए और जैसा काम करना चाहे करे। यह सच है कि हर नागरिक को देश के संविधान के मौलिक अधिकारों के तहत अपना पेशा चुनने और जहाँ जाना चाहे, जाने का अधिकार है"।

पीठ ने यह कहते हुए आवेदक को पीड़िता का संरक्षण सौंपने की अर्ज़ी ख़ारिज कर दी कि वह बालिग़ है और कहा कि वह जहाँ जाना चाहे, उसे जाने का अधिकार है।

अदालत ने कहा,

"जाँच अधिकारी की रिपोर्ट पर ग़ौर करते हुए और यह समझते हुए कि पीड़िता ने सुधार गृह में छह माह से अधिक समय गुज़ारा है…निर्देश दिया जाता है कि पीड़िता को सुधार गृह से जाने दिया जाए"।

इस तरह पीड़िता को अदालत ने उसकी मर्ज़ी के अनुरूप आज़ाद कर दिया और याचिका का निस्तारन कर दिया।


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