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ई-काॅमर्स प्लेटफार्म को प्रत्यक्ष बिक्री में संलग्र कंपनियों के उत्पाद बेचने से किया वर्जित-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
17 July 2019 8:45 AM GMT
ई-काॅमर्स प्लेटफार्म को प्रत्यक्ष बिक्री में संलग्र कंपनियों के उत्पाद बेचने से किया वर्जित-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने ई-कॉमर्स वेबसाइटों को उन कंपनियों के उत्पादों को बेचने से रोक दिया है जो प्रत्यक्ष बिक्री में लगे हुए हैं। अदालत ने यह कहा कि उत्पादों को अनधिकृत चैनलों के माध्यम से प्राप्त किया जा रहा है और उनसे छेड़छाड़ की जा रही व उन्हें खराब किया जा रहा है। जिससे ट्रेडमार्क अधिनियम के तहत याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है

न्यायालय को निम्नलिखित मुद्दों पर फैसला देना था
1. क्या डायरेक्ट सेलिंग गाइडलाइंस, 2016 या प्रत्यक्ष बिक्री दिशा-निर्देश वैध हैं और क्या ये प्रतिवादियों के लिए बाध्यकारी हैं और यदि हां, तो किस हद तक?

2. क्या ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर वादी के उत्पादों की बिक्री वादी के ट्रेडमार्क अधिकारों का उल्लंघन करती है या मिथ्या प्रस्तुति का गठन करती है, जो पास भी हो जाती है और परिणामों को हलका कर देती है। जिससे वादी के 'ब्रांड' की ख्याति और प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है?

3. क्या ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म 'मध्यवर्ती संस्थाएं' है और क्या वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 और मध्यवर्ती दिशा-निर्देश 2011 के तहत सुरक्षित आश्रय प्रावधान के संरक्षण के हकदार है?

4. क्या ई-काॅमर्स प्लेटफाॅर्म जैसे ऐमजॉन, स्नेपडील, फ्लिपकार्ट, आईएमजी और हेल्थकार्ट वादी के अपने वितरकों या प्रत्यक्ष विक्रेताओं के साथ किए गए अनुबंधात्मक संबंधों में अनुचित हस्तक्षेप की दोषी है?

पहला प्रश्न
पहले मामले में जवाब देते हुए, अदालत ने यह कहा कि 'प्रत्यक्ष बिक्री' दिशानिर्देश कानून हैं। जबकि प्रतिवादी प्लेटफॉर्म और विक्रेता अपने अनुच्छेद 19 (1) (जी) के अधिकारों को खतरे में होने की बात पर जोर ड़ाल रहे है। इस बात पर ध्यान नहीं दिया जाता है कि इस तथ्य से वादी के 'व्यवसाय चलाने का अधिकार' प्रभावित हो रहा है।

इसके अलावा, वास्तविक उपभोक्ताओं के अधिकार प्रभावित हो रहे हैै, जैसा कि विभिन्न टिप्पणियों से स्पष्ट भी है, जो उपभोक्ताओं ने वादी के उत्पादों को खरीदने के बाद इन प्लेटफार्मों पर की है।

दूसरा प्रश्न
दूसरे मुद्दे के तहत, अदालत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि विज्ञापन, प्रचार के लिए वादी के मार्क या निशान का प्रयोग करने और वेबसाइट पर उत्पादों के स्रोत के रूप में वादी को चित्रित करने के लिए उत्पाद का वास्तविक होना, बिना छेड़छाड़ किए और वादी की सहमति जरूरी है। उस की अनुपस्थिति में, वादी के ट्रेडमार्क का स्पष्ट उल्लंघन होता है और शून्यीकरण का सिद्धांत (doctrine of exhaustion) प्रतिवादियों की सहायता के लिए नहीं आता है।

इसके अलावा अदालत के परीक्षण में यह भी पाया गया कि कोई भी विक्रेता यह प्रदर्शित नहीं कर पाया कि वादी ने उनके प्लेटफाॅर्म पर अपने उत्पादों की बिक्री के सहमति दी थी। विक्रेता वास्तव में अपनी पहचान छिपाने के लिए रास्ते से बाहर या दूसरे रास्ते पर जा रहे हैं। जिस तरह से वादी के उत्पादों को वेबसाइटों पर चित्रित किया है, वह भी गलत बयानी है।

कोर्ट ने कहा कि अगर मालिक ने सहमति नहीं दी है तो विक्रेताओं को कोई अधिकार नहीं है। इसलिए, विक्रेताओं और प्लेटफाॅर्मों द्वारा मार्क या निशान का उपयोग करना वादी के ट्रेडमार्क अधिकारों का उल्लंघन है और प्रतिवादी धारा 30 के तहत रक्षा के हकदार नहीं होंगे। ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों पर बिक्री का तरीका भी बहकाने वाला है और वादी के निशान, उत्पादों और व्यवसायों को कलंकित कर रहा है या खराब कर रहा है।

तीसरा प्रश्न
तीसरे मुद्दे के तहत अदालत ने कहा कि आईटी अधिनियम की धारा 79 (2) (सी) के अनुसार, मध्यवर्तियों द्वारा तत्परता से आईपीआर संरक्षण के लिए के उचित नीति बनानी चाहिए और मध्यवर्ती दिशा-निर्देश 2011 के तहत आपत्तिजनक सामग्री को हटाया जाना चाहिए। अदालत ने माइस्पेस इंक और श्रेया सिंघल के मामले में निर्धारित अनुपात (ratio) पर भरोसा करते हुए कहा कि यदि प्लेटफाॅर्म अपने मध्यवर्ती (intermediary) के दर्जे का आनंद जारी रखना चाहते है तो, मुकदमे में न्यायिक फैसले के अधीन रहते हुए, प्लेटफ़ॉर्म की अपनी नीतियों और मध्यवर्ती दिशानिर्देशों 2011 के अनुसार, सावधानी की आवश्यकताओं को पूरा और उनका पालन करना होगा। अगर वे प्लेटफाॅर्म की अपनी नीतियों का पालन नहीं करेंगे तो यह उनको सुरक्षित आश्रय के दायरे से बाहर ले जाएगा।

चौथा प्रश्न
चौथे मुद्दे के तहत, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने यह तर्क दिया कि वे इन उत्पादों की बिक्री में सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं और वे स्वयं विक्रेता हैं, जो अपने प्लेटफॉर्म पर वादी के उत्पादों को प्रदर्शित, पेश और बेच रहे हैं, क्योंकि वे केवल मध्यवर्ती है।
हालांकि, अदालत ने आसिया इंडस्ट्रियल टेक्नोलॉजी केके मामले पर भरोसा करके इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि यह जरूरी नहीं है कि अनुबंधात्मक रिश्तों के साथ हस्तक्षेप केवल सीधे तौर पर ही हो,बल्कि यह अप्रत्यक्ष भी हो सकता है।

अदालत ने यह माना कि ई-कॉमर्स वेबसाइट केवल निष्क्रिय नॉन-इंटरफेरिंग प्लेटफॉर्म नहीं हैं, बल्कि उपभोक्ताओं और उपयोगकर्ताओं को बड़ी संख्या में मूल्य वर्धित सेवाएं प्रदान करती हैं। उनके प्लेटफाॅर्म पर अनधिकृत बिक्री के संबंध में वादी द्वारा सूचित किए जाने के बाद यह उनका कर्तव्य बनता है कि वे यह सुनिश्चित करे कि उनके व्यवसाय के द्वारा वादी के अनुबंधात्मक रिश्तों में कोई अनचाहा हस्तक्षेप न हो रहा हो।


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