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भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में मालिक को वैकल्पिक जगह या फ्लैट देने का कोई नियम नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
3 July 2019 5:19 AM GMT
भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में मालिक को वैकल्पिक जगह या फ्लैट देने का कोई नियम नहीं : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
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सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा है कि ऐसा कोई नियम नहीं है कि भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में भूमि मालिक को वैकल्पिक जगह या फ्लैट दिया जाना चाहिए।

क्या था यह पूरा मामला ?

दरअसल एमआरटीएस (रेलवे) की एक परियोजना के लिए अधिग्रहण से संबंधित एक रिट याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार और तमिलनाडु हाउसिंग बोर्ड को भूमि मालिकों को विस्थापितों की एक विशेष श्रेणी के रूप में वैकल्पिक भूमि प्रदान करने के लिए निर्देश जारी किया था।

अपील में राज्य की दलील [तमिलनाडु राज्य बनाम डॉ वासंती वीरसेकरन] यह थी कि उच्च न्यायालय का आदेश वर्ष 1894 अधिनियम के तहत अधिग्रहित भूमि के बदले में वैकल्पिक स्थल के आवंटन के माध्यम से राज्य पर इस तरह का कोई कानूनी दायित्व अतिरिक्त-कानूनी रियायत देने की प्रकृति में है क्योंकि एमआरटीएस (रेलवे) की परियोजना से संबंधित कोई भी नीति भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा लागू की जाएगी।

स्थानांतरण योजना के अभाव में HC राज्य को ऐसा आदेश नहीं कर सकता है

इस दलील से सहमत होकर न्यायमूर्ति ए. एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने यह कहा कि इस तरह की योजना के अभाव में उच्च न्यायालय राज्य को ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता था।

पीठ ने कहा:

"इस तरह के एक निर्देश को कानून में नहीं माना जा सकता। यह न्यू रिवेरिया कॉप हाउसिंग सोसाइटी और अन्य बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी और अन्य के मामले में अंतर्निहित सिद्धांत से तय है। उक्त निर्णय के पैरा 9 में न्यायालय ने यह कहा कि यह एक अलग मामला है यदि राज्य वैकल्पिक जगह प्रदान करने के प्रस्ताव के साथ आगे आए लेकिन उस सिद्धांत को भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में एक शर्त के रूप में विस्तारित नहीं किया जा सकता कि मालिक को एक वैकल्पिक जगह या फ्लैट दी जानी चाहिए।"

"वैकल्पिक जगह प्रदान किये बगैर अधिग्रहण मूल अधिकार का उल्लंघन नहीं"

न्यायालय ने इस अधिग्रहण से प्रभावित व्यक्तियों के इस तर्क को अस्वीकार कर दिया कि बिना वैकल्पिक जगह प्रदान किए उनकी भूमि का अधिग्रहण भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीने के अधिकार का उल्लंघन होगा।

अदालत ने दिया अपने पूर्व के फैसले का संदर्भ

उच्च न्यायालय के फैसले को रद्द करते हुए पीठ ने इस तरह का निर्देश जारी करने के लिए उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए अपने पहले के कुछ फैसलों को बताया। उदाहरण के लिए अदालत ने कहा कि भरत सिंह और अन्य बनाम हरियाणा राज्य और अन्य में औद्योगिक विकास और उपयोग के लिए भूमि का अधिग्रहण किया गया था।

पीठ ने कहा:

"उक्त निर्णय के पैराग्राफ नंबर -8 में, किसी भी तरह से, इसका अर्थ यह नहीं निकाला जा सकता कि रेलवे द्वारा निष्पादित की जाने वाली परियोजना के संबंध में वैकल्पिक आवास स्थल के आवंटन की कोई नीति लागू नहीं है, फिर भी परियोजना से प्रभावित भूमि मालिकों को एक वैकल्पिक आवास स्थल प्रदान किया जाना चाहिए वो भी राज्य द्वारा। दूसरी ओर यह टिप्पणी केवल यह निर्देश देने के लिए है कि भूमि के मालिक जो अपनी भूमि के अधिग्रहण से भूमिहीन हो गए हैं, उन्हें वैकल्पिक भूमि के आवंटन के लिए आवेदन करना चाहिए और उन्हें आवंटन के मामले में प्राथमिकता दी जा सकती है, बशर्ते कि वे ऐसे आवंटन के लिए शर्तों को पूरा करें और जमीन उपलब्ध यदि उपलब्ध है।"


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