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कोई सरकारी कर्मचारी लंबे समय से निलंबित है सिर्फ़ इस आधार पर उसका निलंबन आदेश समाप्त नहीं किया जा सकता : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
26 Jun 2019 5:24 AM GMT
कोई सरकारी कर्मचारी लंबे समय से निलंबित है सिर्फ़ इस आधार पर उसका निलंबन आदेश समाप्त नहीं किया जा सकता : उत्तराखंड हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
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Uttarakhand High Court

उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले को मानने से इंकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फ़ैसले में कहा था कि अगर क़सूरवार कर्मचारी के ख़िलाफ़ उसके निलंबन के दिन से तीन महीने के भीतर चार्ज शीट दाख़िल नहीं होता है तो उसे उसके पद पर पुनर्बहाली का हक़ होगा।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथ और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के फ़ैसले को उद्धृत किया और कहा कि अगर किसी कर्मचारी के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई या आपराधिक मामलों को पूरा करने में लंबा समय लगता है तो सिर्फ़ इस वजह से कर्मचारी के निलंबन का आदेश अमान्य नहीं हो जाता है।

पीठ एक अपील की सुनवाई कर रही थी जिसमें अजय कुमार चौधरी बनाम भारत संघ मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया गया है और कहा गया कि चूँकि उसके निलंबन के तीन महीने के भीतर चार्ज शीट दाख़िल नहीं किया जा सका उसे सेवा में दुबारा बहाल कर दिया जाना चाहिए। यह भी कहा गया कि उसका निलंबन तीन माह से ज़्यादा समय तक नहीं चल सकता बशर्ते कि उसके ख़िलाफ़ चार्ज शीट दाख़िल किया गया हो। यह कहा गया कि कर्मचारी को निलंबित किए जाने की घटना को एक साल से अधिक हो गया है और अभी तक उसके ख़िलाफ़ कोई चार्ज शीट दाख़िल नहीं किया जा सका है।

हालाँकि पीठ ने कहा कि उक्त फ़ैसला इस मामले में कर्मचारी के पक्ष में है उसने इस बात पर ग़ौर किया कि क्या हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले को मानने के लिए बाध्य है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की एक संविधान पीठ ने एक अन्य फ़ैसले में इसके उलट फ़ैसला दिया था।

पीठ ने कहा कि छोटी पीठ की तुलना में सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ ने जो फ़ैसला दिया है उसे माना जाना चाहिए। जब सुप्रीम कोर्ट की कोई छोटी पीठ जब किसी बड़ी पीठ के फ़ैसले के उलट फ़ैसला देती है और यह नहीं जानती है कि वह फ़ैसला किस अनुपात में आया है तो वह निर्णय सुप्रीम कोर्ट द्वारा घोषित कोई क़ानून नहीं बन जाता है कि संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत उसका पालन देश के सभी अदालतों में बाध्यकारी हो जाता है।

कोर्ट ने कहा,

"अजय कुमार चौधरी के मामले में अदालत का ध्यान इससे पहले अशोक कुमार अग्रवाल, संजीव रंजन, एल श्रीनिवासन और दीपक कुमार भोला मामलों में आए फ़ैसलों की ओर नहीं खींचा गया था जिसमें कहा गया था कि सिर्फ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई या आपराधिक मामलों की सुनवाई के पूरा होने में समय लगने या लंबी अवधि तक निलंबन के कारण निलंबन का आदेश अमान्य नहीं हो जाता है। इसलिए यह अदालत निलंबन के आदेश को निरस्त नहीं करेगा क्योंकि अजय कुमार चौधरी के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का फ़ैसला दिया है क्योंकि ऐसा करने में केम चंद; आरपी कपूर और वीपी गिरद्रोनिया के साथ-साथ अशोक कुमार अग्रवाल; संजीव रंजन; एल श्रीनिवासन और दीपक कुमार भोला के मामले में आए सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले को नज़रंदाज़ करना होगा"।


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