क़ानून और तथ्यों के मिश्रित सवाल पर वकीलों की छूट से कोई पक्ष बंधा रहे यह ज़रूरी नहीं है : सुप्रीम कोर्ट [आर्डर पढ़े]
Live Law Hindi
15 Jun 2019 5:21 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि क़ानून और तथ्यों के आधार पर अगर वक़ील कोई छूट देता है तो ज़रूरी नहीं है कि कोई पक्ष उससे बंधा रहे।
न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन और न्यायमूर्ति विनीत सरन की पीठ ने हाईकोर्ट के एक फ़ैसले के ख़िलाफ़ भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड की अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। हाईकोर्ट ने श्रम अदालत के उस फ़ैसले को निरस्त करने से मना कर दिया था जिसमें उसने कुछ ऐसे कर्मचारियों को दुबारा नौकरी पर रखने को कहा था जिसे हटा दिया गया था।
बीएचईएल की दलील थी कि ये कर्मचारी ठेके के कर्मचारी थे और यूपी औद्योगिक विवाद अधिनियम के तहत 'कामगार' नहीं थे।
श्रम अदालत ने बीएचईएल के एक प्रतिनिधि द्वारा दिए गए छूट के तहत अपने फ़ैसले में इन्हें 'कामगार' माना। इस प्रतिनिधि ने कहा था कि उसको इन लोगों पर नियंत्रण और निगरानी करने का अधिकार है। हालाँकि बीएचईएल ने एक पुनरीक्षण याचिका दायर की और इस बात से इंकार किया कि इस तरह की कोई छूट दी गई थी पर अदालत ने इसे नहीं माना।
बीएचईएल की अपील पर गुर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'तथ्य और क़ानून के मिश्रित सवाल पर दिया गया छूट मामले के फ़ैसले का आधार नहीं बन सकता क्योंकि साक्ष्य को संपूर्ण रूप में इसके आधार पर तौला जाता है और इसके आधार पर मत बनाए जाते हैं।
पीठ ने इस संदर्भ में स्वामी कृष्णानंद गोविन्दानंद बनाम प्रबंध निदेशक, ओसवाल होज़री (रेजिस्टर्ड) (2002) 3 SCC 39 मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि अगर कोई वक़ील किसी तथ्य के बारे में कोई छूट देता है जिसे लिखित बयान में नकारा गया है तो यह प्रतिवादी के लिए बाध्यकारी नहीं हो सकता।
इस संदर्भ में सीएम अरमुगम बनाम एस रजगोपाल (1976) 1 SCC 863 का हवाला भी दिया गया।
इस आधार पर अदालत ने कहा, "सिर्फ़ छूट के आधार पर निर्णय करना ग़लत होगा…कि नियोक्ता और कामगार के बीच एक प्रत्यक्ष संबंध मौजूद होता है"।
भारत हेवी एलेक्ट्रिकलस लि. बनाम महेंद्र प्रसाद जखमोला मामले में आए फ़ैसले में इस बात पर भी बहस हुई कि ठेके के श्रमिकों को प्रत्यक्ष कर्मचारी समझा जाए या नहीं।