बलात्कार का प्रयास न केवल शारीरिक रूप से बल्कि नैतिक रूप से भी पीड़ित के लिए समान रूप से हानिकारक है : बॉम्बे हाई कोर्ट [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
11 Jun 2019 4:09 PM GMT
बॉम्बे हाई कोर्ट ने हाल ही में माना है कि बलात्कार का प्रयास न केवल शारीरिक रूप से बल्कि नैतिक रूप से भी पीड़ित के लिए समान रूप से हानिकारक है। दरअसल अदालत आरोपी विशाल भालेराव द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी जिसमें पुणे के 24 वर्षीय व्यक्ति को 12 वर्षीय लड़की से बलात्कार का दोषी ठहराया गया था।
विशाल भालेराव की अपील पर आया निर्णय
न्यायमूर्ति साधना एस. जाधव ने भालेराव को राहत देने से इनकार कर दिया और उसके द्वारा दाखिल अपील को खारिज कर दिया। भालेराव को भारतीय दंड संहिता की धारा 366 (अपहरण या महिला को शादी के लिए मजबूर करने के लिए अगवा करना) और 376 (बलात्कार) के तहत दोषी ठहराया गया था और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पुणे द्वारा क्रमशः 4 साल और 7 साल की सजा सुनाई गई थी।
केस की पृष्ठभूमि
पीड़ित लड़की अपने पिता की मृत्यु के बाद अपनी छोटी बहन के साथ अपनी दादी के साथ रहती थी क्योंकि उनकी माँ ने उन्हें छोड़ दिया था। अपीलकर्ता अभियुक्त को पीड़िता के चाचा का करीबी दोस्त बताया गया है और वह अक्सर घर आया करता था। इस प्रकार पीड़िता उसके साथ उचित रूप से परिचित थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार 9 नवंबर, 2011 को, पीड़िता की दादी अपनी बकरियों को चराने के लिए जंगल गई थी और पीड़िता घर पर अकेली थी। शाम 4 बजे के आसपास आरोपी विशाल भालेराव घर पर आया। उसने पीड़िता को बताया कि वह भी जंगल की ओर जा रहा है जहां उसकी दादी बकरियां चराने गई है और फिर उससे पूछा कि क्या वह अपनी दादी से मिलना चाहेगी१
पीड़िता इसके लिए मान गई और आरोपी उसे एक ऑटोरिक्शा में बैठाकर ले गया। फिर आरोपी जंगल के सामने एक कूड़ाघर पर रुक गया। वहां उसने नाबालिग लड़की का यौन उत्पीड़न किया। पीड़िता रोई लेकिन सुनसान जगह होने की वजह से किसी ने उसके रोने की आवाज़ नहीं सुनी। इसके बाद भालेराव ने पीड़िता को ऑटो रिक्शा से वापस घर जाने के लिए पैसे दिए।
पीड़िता घर वापस आ गई और उसने अपनी दादी और चाची को घटना के बारे में बताया। फिर वे पुलिस के पास गए और वहां पूरी घटना सुनाई। आईपीसी की धारा 366 और 376 के तहत दंडनीय अपराध के लिए चिंचवाड़ पुलिस स्टेशन में FIR दर्ज की गई। आरोपी को 19 नवंबर, 2011 को गिरफ्तार किया गया और 31 जनवरी 2012 को आरोप-पत्र दायर किया गया।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, पुणे ने दोनों आरोपों पर अपीलकर्ता को दोषी ठहराया। तत्पश्चात यह अपील दायर की गई।
निर्णय
डॉ विपुल गुरव ने 10 नवंबर, 2011 को पीड़िता की जांच की थी। उन्होंने पीड़िता के निजी अंगों पर चोट देखी लेकिन वो पुरानी थी और ठीक हो चुकी थी।
कोर्ट ने पीड़िता के बयान का जिक्र उसकी मेडिकल जांच के समय किया -
इस दौरान अपीलकर्ता के वकील स्वप्निल ओवरलेकर ने यह प्रस्तुत किया कि पीड़िता की डॉक्टरों द्वारा 10 नवंबर, 2011 को जांच की गई जबकि पीड़िता के अनुसार घटना 10 नवंबर, 2011 को लगभग 4 बजे हुई थी। ओवरलेकर के अनुसार इस पहलू की जड़ तक जाना चाहिए क्योंकि पीड़िता के अनुसार घटना 10 नवंबर को हुई थी, ना कि 9 नवंबर 2011 को।
कोर्ट ने इस तर्क को मानने से इनकार कर दिया और नोट किया-
"यह सुझाव क्रॉस-परीक्षण में दिया गया था और नाबालिग इस उलझन में थी कि घटना 9 नवंबर को हुई थी या 10 नवंबर 2011 को। घटना के समय पीड़िता मुश्किल से 12 साल की थी और वो जिरह की कसौटी पर खरी उतरी। उसे मामूली विसंगति पर गलत नहीं ठहराया जा सकता।"
ओवरलेकर ने आगे तर्क दिया कि यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपी ने पीड़ित के साथ वास्तविक संभोग किया था। जैसा कि निजी अंगों पर चोट पुरानी थी और डॉक्टर से पीड़िता ने खुद कहा कि आरोपी ने संभोग करने का प्रयास किया था। चूंकि, यह केवल एक प्रयास है, इसलिए अभियुक्त पर भारतीय दंड संहिता की धारा 511 के तहत ट्रायल चलेगा और वो अपराध के लिए दिए गए कारावास के आधे हिस्से से गुजरने के लिए उत्तरदायी होगा।
दंड संहिता की धारा 511 एक सामान्य प्रावधान है जो एक विशेष खंड के तहत दंडनीय नहीं है बल्कि किसी विशेष अपराध से निपटता है।
कोर्ट ने कोप्पुला वेंकट राव बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2004) के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने कहा था:
"किसी प्रयास को दंडनीय बनाया गया है क्योंकि हर प्रयास, हालांकि ये सफलता से कम होता है, शोर मचाना चाहिए और यह अपने आप में एक चोट है और इसमें अपराधी का नैतिक अपराध वैसा ही होता है जैसे कि वह सफल हुआ हो। सजा को सही ठहराने के लिए नैतिक अपराध को एकजुट होना चाहिए।"
इस प्रकार अदालत ने यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान मामले में किया गया प्रयास न केवल शारीरिक रूप से बल्कि नैतिक रूप से भी पीड़ित के लिए समान रूप से हानिकारक है।
"इसके अलावा उसे जीवन भर इस आघात के साथ रहना होगा। वह घटना के समय नाबालिग थी और उसने इस मंच पर आरोपी पर विश्वास को दोहराया था जब वह अपनी दादी से मिलने के लिए उसके साथ जाने को तैयार हो गई थी।"