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वकीलों के क्लर्क भी न्याय वितरण प्रणाली का हिस्सा, दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा

Live Law Hindi
10 Jun 2019 5:36 AM GMT
वकीलों के क्लर्क भी न्याय वितरण प्रणाली का हिस्सा, दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि वकीलों के क्लर्क भी न्याय के वितरण में शामिल हैं और वे भी इसी व्यवस्था का हिस्सा हैं इसलिए चिकित्सा और कैंटीन सुविधाओं को उन तक बढ़ाया जाना चाहिए।

दिल्ली HC बार क्लर्क एसोसिएशन की याचिका पर आया फैसला

अदालत ने दिल्ली हाईकोर्ट बार क्लर्क एसोसिएशन की एक याचिका पर यह कहा जिसमें भविष्य निधि, पेंशन और समूह बीमा पॉलिसियों सहित कई कल्याणकारी उपायों को लागू करने की मांग की गई है।

"हमारा विचार है कि कम से कम दिल्ली हाईकोर्ट डिस्पेंसरी में उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं और रजिस्ट्री के कर्मचारियों के लिए उपलब्ध कैंटीन की सुविधा को याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सदस्यों तक विस्तारित करने की आवश्यकता है क्योंकि वे भी उसी सिस्टम के भाग हैं जो वादियों को न्याय दिलाने में शामिल है, " पीठ ने यह कहा।

पीठ ने हाल ही में दिए एक आदेश में यह कहा, "यह अदालत याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सदस्यों द्वारा चिकित्सा सुविधा और कैंटीन सुविधा की आवश्यकता के संबंध में कठिनाइयों का अंदाजा लगा सकती है जो कोर्ट परिसर में सुबह से देर रात तक अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं।"

तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की पीठ ने यह आदेश जारी करते हुए कहा कि इन दोनों सुविधाओं को प्रदान करने के लिए कुछ बुनियादी औपचारिकताओं और दिशानिर्देशों की आवश्यकता है। अनुशासन बनाए रखने के लिए उनका पालन करना जरूरी है।

पीठ ने इस संबंध में वरिष्ठ वकील अरविंद निगम, कीर्ति उप्पल, इंद्रबीर सिंह अलग, मोहित माथुर और अभिजात (दिल्ली हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और सचिव) और याचिकाकर्ता एसोसिएशन के अध्यक्ष रक्षपाल ठाकुर की एक समिति का गठन किया है।

"रजिस्ट्रार जनरल के अलावा रजिस्ट्रार जनरल द्वारा नामित 2 अधिकारी भी इस समिति का हिस्सा बनेंगे। समिति कैंटीन सुविधा व डिस्पेंसरी सुविधा का उपयोग प्रदान करने और औपचारिकताओं का पालन करने को लेकर सभी मुद्दों पर विचार-विमर्श कर करेगी और अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।"

पीठ ने यह कहा कि इन सुविधाओं को प्रदान करने के लिए जिन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना है वो याचिकाकर्ता एसोसिएशन के सदस्यों को दिए जाएंगे।

अदालत ने समिति को 6 सप्ताह के भीतर विचार-विमर्श करने के लिए कहा और मामले को 25 जुलाई को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने यह दावा किया है कि आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश जैसे कई राज्यों ने पहले से ही क्लर्कों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए कानून बनाया है, जिन्हें फिलहाल रोजगार देने वाले वकीलों के दान और दया पर निर्भर रहना पड़ता है।

राष्ट्रीय राजधानी की विभिन्न अदालतों में काम कर रहे 20,000 से अधिक वकीलों के क्लर्कों का प्रतिनिधित्व करने वाली एसोसिएशन ने यह दावा किया है कि उसके सदस्यों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित किया गया है जिसमें श्रमिक को चिकित्सा लाभ का अधिकार भी शामिल है।

इस एसोसिएशन ने अदालत से अधिकारियों को सामाजिक सुरक्षा और कल्याणकारी उपायों के लिए क्लर्कों के मौलिक अधिकारों को बढ़ावा देने, सुरक्षित रखने और लागू करने का निर्देश देने का आग्रह किया है।

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