शेयरधारकों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज,कंपनी के कागजात चुराकर कंपनी लाॅ बोर्ड के समक्ष इस्तेमाल करने का था आरोप [निर्णय पढ़े]

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18 May 2019 3:10 PM GMT

  • शेयरधारकों के खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही को सुप्रीम कोर्ट ने किया खारिज,कंपनी के कागजात चुराकर कंपनी लाॅ बोर्ड के समक्ष इस्तेमाल करने का था आरोप [निर्णय पढ़े]

    बिड़ला काॅर्पोरेशन लिमिटेड बनाम एडवेंट्ज इंवेस्टमेंट्स एंड होल्डिंग्स लिमटेड में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उसके राफेल आदेश के साथ कुछ समानतांए रखता है।

    राफेल में, मुद्दा मंत्रालय से कथित रूप से 'चुराए' गए दस्तावेजों की स्वीकार्यता के बारे में था। यहां जस्टिस आर.भानूमथि व जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी की पीठ के समक्ष यह मुद्दा था कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा कंपनी से चुराए गए दस्तावेजों को कंपनी लाॅ बोर्ड व अन्य न्यायिक फोरम के समक्ष पेश करना भारतीय दंड संहिता के तहत 'चोरी और गड़बड़ी या धोखाधड़ी' माना जाएगा।

    आरोपियों के खिलाफ शिकायत यह थी कि उन्होंने उन दस्तावेजों तक अनाधिकृत पहुंच प्राप्त की ,जो कि अत्यधिक गोपनीय थे और कंपनी के केवल मनोनित और निर्दिष्ट किए हुए व्यक्तियों के उपयोग के लिए थे। उन पर आरोप थाकि उन्होंने इन कागजातों को सीएलबी के समक्ष दायर कंपनी की याचिका में सीएलबी और उनके द्वारा दायर सिविल केस में इस्तेमाल किया। आरोपियों के खिलाफ जारी किए गए समन को मद्रास हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी गई,जिसने केस को खारिज करने से इंकार कर दिया था।

    अपील में,हालांकि जस्टिस आर.भानुमथि और जस्टिस आर.सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि एक दस्तावेज में निहित जानकारी,यदि दोहराई गई हो,तो चोरी का विषय हो सकती है और इसके परिणाम स्वरूप गलत नुकसान हो सकता है,हालांकि मूल दस्तावेज केवल अस्थायी रूप से इसलिए वैध हिरासत से हटाया गया था ताकि उसमें से जानकारी निकाली जा सके। पीठ ने इस मामले में शिकायत व आरोपियों के खिलाफ जारी समन के आदेश को रद्द कर दिया है।

    "सीएलबी की कार्यवाही में दस्तावेजों को दाखिल करना सिर्फ उनके उस दावे को मजबूती देना था,जिसमें कंपनी के उत्पीड़न और कुप्रबंधन की बात कही गई थी। प्रतिवादियों के अनुसार,उत्पीड़न और कुप्रबंधन एक वास्तविक विवाद है और दस्तावेज नंबर 1 से 54 तक केवल उनके मामले की पुष्टि करने के लिए दायर किए गए थे। जब दोनों पक्षों के बीच एक बोना-फाइड/वास्तविक मौजूद हो कि मामला उत्पीड़न और कुप्रबंधन का है या नहीं, तो प्रतिवादियों को 'अनुचित लाभ'या अपीलकर्ता को 'अनुचित नुकसान' का कोई सवाल नहीं उठता है।जब दस्तावेजों को उपयोग करते समय, शिकायतकर्ता को 'अनुचित नुकसान' और प्रतिवादियों को 'अनुचित लाभ' पहुंचाने का कोई 'बेईमान या धूर्त' इरादा नहीं था,तो यह नहीं कहा जा सकता है कि चोरी का मामला बनता है।''

    अदालत ने यह भी कहा कि केवल इसलिए कि आरोपियों ने प्रावधानों के अनुसार दस्तावेजों को नहीं मंगवाया है,यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने 'चोरी' की है। पीठ ने कहा कि-

    ''यह संभवतःउचित समय पर उठाया जाने वाला बिंदु हो सकता है कि साक्ष्य विधि के तहत इन दस्तावेजों का क्या मूल्य है. पर यह कहना उचित नहीं होगा कि प्रतिवादियों ने बेईमानी से दस्तावेजों को हटाया था और चोरी की वारदात को अंजाम दिया था और उन्हें दस्तावेजों की चोरी के लिए आपराधिक मुकद्मे का सामना करना होगा। ऐसा कहना, प्रतिवादियों को प्रासंगिक सबूत व सामग्री के साथ अपना बचाव करने से रोकने के लिए चली जाने वाली एक सोची समझी रणनीति के समान होगा।''

    आरोपियों के खिलाफ चल रहे आपराधिक कार्यवाही व समन को रद्द करते हुए पीठ ने कहा कि-

    ''यह कहना एक बात है कि दस्तावेजों को कानून के अनुसार प्राप्त नहीं किया और इसलिए उनका साक्ष्य के तौर पर कोई मूल्य नहीं है। लेकिन केवल इसलिए कि दस्तावेजों को एक स्रोत या अन्य द्वारा पेश किया गया है,यह नहीं कहा जा सकता है कि प्रतिवादियों को 'अनुचित लाभ' पहुंचाने और याचिकाकर्ता को 'अनुचित नुकसान' पहुंचाने के लिए उनको गलत इरादे से प्राप्त किया गया था। यहां ऐसा प्रतीत होता है कि आपराधिक शिकायत सिर्फ इसलिए दायर की गई है ताकि प्रतिवादियों पर दबाव बनाया जा सकेI इसलिए शिकायत को रद्द किया जाता है।''


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