क्या जांच अधिकारी ट्रांसजेंडर का जैविक तरीके से लिंग निर्धारण कर सकता है ? उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य से पूछा

Live Law Hindi

15 May 2019 10:11 AM IST

  • क्या जांच अधिकारी ट्रांसजेंडर का जैविक तरीके से लिंग निर्धारण कर सकता है ? उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य से पूछा

    Uttarakhand High Court

    क्या कोई जांच अधिकारी डीएनए परीक्षण करके लिंग परिवर्तन करने वाले ट्रांसजेंडर व्यक्ति के लिंग का निर्धारण कर सकता है और बदले हुए लिंग को स्वीकार करने से मना कर सकता है? उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने इसी मुद्दे पर राज्य सरकार से अपना जवाब देने के लिए कहा है।

    क्या है यह मामला?
    दरअसल इस मामले में याचिकाकर्ता ने यह शिकायत दर्ज कराई थी कि उसके साथ बलात्कार किया गया था। उसने खुद को एक महिला के रूप में बताया और उसने बताया कि लिंग परिवर्तन के लिए वह सर्जिकल प्रक्रिया से गुजरी थी।

    यह कहते हुए पीड़िता ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया कि उसकी कोई गलती नहीं है लेकिन फिर भी जांच एजेंसियों द्वारा उसे परेशान किया जा रहा है। अदालत के संज्ञान में यह भी लाया गया कि जब उसने पुलिस से शिकायत की तो उसने आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) के तहत FIR दर्ज करने से इनकार कर दिया और इसके बजाय धारा 377 (अप्राकृतिक यौनाचार ) के तहत शिकायत दर्ज की।

    अपनी रिपोर्ट में जांच अधिकारी ने जैविक रूप से (डीएनए परीक्षण करके) घोषित किया कि याचिकाकर्ता महिला नहीं बल्कि पुरुष है। उच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर विचार व्यक्त किया कि क्या याचिकाकर्ता के लिंग की पहचान करने के लिए जांच अधिकारी को विवेक दिया जा सकता है।

    कॉर्बेट सिद्धांत का हुआ जिक्र
    न्यायमूर्ति रवींद्र मैथानी ने यह उल्लेख किया कि राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने "जैविक परीक्षण" के कॉर्बेट सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया था बल्कि लिंग निर्धारण में व्यक्ति के मनोविज्ञान का पालन करना पसंद किया था।

    क्या था कॉर्बेट बनाम कॉर्बेट का मामला
    दरअसल कॉर्बेट बनाम कॉर्बेट के मामले में यह माना गया था कि किसी भी हस्तक्षेप को अनदेखा किया जाना चाहिए और किसी व्यक्ति के जैविक यौन संविधान को जन्म के समय, नवीनतम पर निर्धारित किया जाता है और इसे विपरीत लिंग के अंगों के प्राकृतिक विकास या चिकित्सा या शल्य चिकित्सा द्वारा नहीं बदला जा सकता।

    अदालत ने तब राज्य को इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए एक हलफनामा दायर करने के लिए कहा:-

    • मामले के जांच अधिकारी को याचिकाकर्ता के लिंग निर्धारण का अधिकार कैसे दिया जा सकता है?

    • मामले का जांच अधिकारी कुछ डीएनए विश्लेषण और "जैविक परीक्षण" के आधार पर याचिकाकर्ता के लिंग का निर्धारण कैसे कर सकता है?

    • जांच अधिकारी कॉर्बेट सिद्धांत को लागू कैसे कर सकते हैं जो माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था?


    Tags
    Next Story