अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण देने के कर्नाटक के 2018 के क़ानून को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एससी-एसटी आरक्षण उस संरचनात्मक स्थितियों में समानता लाने का सच्चा उपाय हैजिसमें लोग जन्म लेते हैं।
इस मामले में फ़ैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि प्रशासनिक सक्षमता और एससी-एसटी के केंद्र और राज्यों की सेवाओं में नियुक्ति के दावे के बीच कोई विरोध नहीं है।
पीठ ने कहा, "आरक्षण अवसरों की समानता के नियम का अपवाद नहीं है…।"
पीठ ने इस आलोचना का जवाब दिया कि प्रशासनिक 'सक्षमता' (अनुच्छेद 335 में प्रयुक्त एक शब्द) सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीक़ा है 'योग्यता' का सहारा लेना जिसमें जो उम्मीदवार जितना योग्य है उसे सरकार की सेवा में अवसर मिलेगा।
अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के दावे पर प्रशासन में सक्षमता को ध्यान में रखते हुए ग़ौर किया जाएगा। इस प्रावधान में शामिल हैं (i) परीक्षा में न्यूनतम अंक की आवश्यकता में ढील देना; (ii) मूल्याँकन का स्तर को नीचा करना; या (iii) पदोन्नति के मामले में आरक्षण देना।
कोर्ट ने कहा,
"सामंतवादी और जातिवादी सामाजिक संरचना में एससी और एसटी के साथ जो सदियों से भेदभाव होता आया है और उनके ख़िलाफ़ जो पूर्वाग्रह है वह उनके लिए अवसरों के मार्ग को अवरुद्ध कर देता है।इन प्रावधानों में इस बात को वास्तविकता के तौर पर स्वीकार किया गया है कि जब तक एससी, एसटी कि लिए विशेष क़दम नहीं उठाए जाते तब तक नियुक्ति में उनके दावों पर ग़ौर करने की बातमृगमरीचिका बनी रहेगी। दूसरे शब्दों में, ये प्रावधान एससी, एसटी को वास्तविक रूप में समानता का अधिकार दिलाने के लिए सहायक हैं। यह संघ और राज्य सरकारों की अथॉरिटी को संरक्षित करता हैताकि वे इनमें से कोई भी विशेष तरीक़ा अपना सकें और संघ और राज्यों की सेवाओं में नियुक्ति में उनके दावे को वास्तविक तौर पर लागू कर सकें…"। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 335 की व्याख्या करतेसमय यह ज़रूरी है कि सक्षमता की परिकल्पना को एकपक्षीय उस सोच से मुक्त करना पड़ेगा जो सक्षम प्रशासन के लिए समाज के विभिन्न तबक़ों के समावेश को नज़रंदाज़ करता है।
कोर्ट ने कहा,
"संघ या किसी राज्य में प्रशासन की सक्षमता को समावेशी के अर्थ में परिभाषित किया जाना चाहिए यह ज़रूरी है ताकि समाज के विभिन्न वर्ग को प्रतिनिधित्व मिल सके और प्रशासन सही अर्थों में लोगों द्वारा और लोगों का होसके…हम अपने लिए क्या मानदंड तय करते हैं वही यह निर्णय करेगा कि परिणाम क्या होंगे। अगर सक्षमता का यह मानदंड बहिष्करण में आकंठ डूबा है तो यह एक ऐसे प्रशासन को जन्म देगा जो हाशिए पर मौजूद लोगों के ख़िलाफ़ होगा।अगर यह सक्षमता का यह मानदंड समानता पर आधारित है तो जो परिणाम मिलेगा वह संविधान में हमारी प्रतिबद्धता के अनुरूप होगा कि हम एक न्यायपूर्ण समाज की रचना करेंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हमारा भूतकाल हमारे समाज की विफलता का पीछा करेगा कि वह स्वतंत्रता और बंधुत्व पर आधारित समाज गढ़ने की तुलना में गंभीर असमानता वाले समाज से अपना पिंड नहीं छुड़ा सका।"
अदालत ने कहा, एससी, एसटी को आरक्षण देना योग्यता के सिद्धांत के ख़िलाफ़ नहीं है। योग्यता को किसी परीक्षा में कोई किस स्थान पर रहता है इस तुच्छ बात तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि यह पुरस्कृत करने के समाज की इच्छापर आधारित होना चाहिए और यह समाज में समानता को बढ़ावा देने और लोक प्रशासन में विविधता लाने की इच्छा से निकलनी चाहिए।