प्रामाणिक अंग्रेजी अनुवाद के साथ हिंदी में दायर की जा सकती हैं रिट याचिकाएं : पटना हाई कोर्ट (पूर्ण बेंच) [निर्णय पढ़ें]

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1 May 2019 1:21 PM GMT

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    पटना उच्च न्यायालय की एक पूर्ण पीठ ने यह माना है कि रिट याचिकाएँ या कर संदर्भ (Tax Reference) हिंदी भाषा में दायर की जा सकती हैं, लेकिन इसके लिए याचिका के साथ एक प्रामाणिक अंग्रेजी संस्करण भी आवश्यक होगा।

    1972 की अधिसूचना

    वर्ष 1972 में सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना ने पटना उच्च न्यायालय के समक्ष (1) दीवानी और आपराधिक मामलों में बहस के लिए उच्च न्यायालय (2) में हिंदी भाषा के वैकल्पिक उपयोग और शपथ पत्र के साथ आवेदन प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत किया था। अधिसूचना में एक बंधन यह रखा गया था कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत प्रस्तुत की गई एप्लिकेशन के लिए एक अपवाद के रूप में अंग्रेजी का उपयोग जारी रहेगा। इसी तरह, कर संदर्भ से जुड़ा आवेदन भी अंग्रेजी में प्रस्तुत किया जाना जारी रहेगा।

    संदर्भ (Reference)

    हिंदी भाषा में दायर एक रिट याचिका पर विचार करते हुए, जिसमे डिटेंशन आदेश को चुनौती देने हेतु बंदी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी करने की मांग की गई थी, डिवीजन बेंच एक समन्वय पीठ (coordinate bench) द्वारा सुनाए गए एक निर्णय तक पहुँचा।

    बिनय कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य विद्युत बोर्ड में, एक खंड पीठ ने इस अधिसूचना की व्याख्या करते हुए कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 और 227 के तहत दायर एक आवेदन की भाषा के हिंदी में होने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

    डिवीजन बेंच ने इस फैसले के औचित्य पर संदेह किया और यह माना कि वर्ष 1972 की अधिसूचना में रिट याचिकाओं के संबंध में विशेष रूप से एक अपवाद बनाया गया था। इसके बाद इस मामले को पूर्ण पीठ के पास भेज दिया गया।

    फुल बेंच

    मुख्य न्यायाधीश अमरेश्वर प्रताप साही, न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद (पूर्ण पीठ में न्यायाधीश) ने तीन अलग-अलग निर्णय सुनाए।

    मुख्य न्यायाधीश साही ने कहा कि जब तक वर्ष 1972 की अधिसूचना अपरिवर्तित रहती है, रिट याचिकाएं या कर संदर्भ हिंदी में दायर किए जा सकते हैं, लेकिन इसके लिए याचिका का एक प्रामाणिक अंग्रेजी संस्करण मौजूद होना चाहिए।

    जबकि न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि जबतक यह अधिसूचना जारी रहती है, एक रिट याचिका केवल अंग्रेजी भाषा में ही दायर की जा सकती है, न्यायमूर्ति कुमार ने यह विचार व्यक्त किया कि उन्हें हिंदी भाषा में भी दायर किया जा सकता है। हालांकि, न्यायमूर्ति प्रसाद और न्यायमूर्ति कुमार ने संयुक्त रूप से एक 'पोस्ट-स्क्रिप्ट' लिखा, जिसमे मुख्य न्यायाधीश की इस संबंध में राय का समर्थन किया गया।

    कानून अंग्रेजी में सिखाया जाता है, वकीलों के लिए अंग्रेजी सुविधाजनक है, कानून पत्रिकाओं/जर्नल्स अंग्रेज़ी में

    मुख्य न्यायाधीश ने दो कारण बताकर अपने विचार को सही ठहराया। उन्होंने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स में लॉ स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रमों के संबंध में अंग्रेजी को माध्यम के रूप में अनिवार्य किया गया है।

    "इसलिए यह स्पष्ट रूप से यह आधार देता है कि अंग्रेजी भाषा का उपयोग प्राथमिक रूप से न केवल अपने ऐतिहासिक अतीत के कारण, बल्कि आज के संदर्भ में अंग्रेजी भाषा के वैश्विक प्रभाव के कारण भी किया जा रहा है, जहां दुनिया भर के कानूनों को, अंतरराष्ट्रीय कानून, वाणिज्यिक कानून जैसे कोर्सेज हेतु संदर्भित किया जा रहा है और हिंदी देवनागरी लिपि में इस विशाल वैश्विक पाठ्यक्रम का अनुवाद न ही निकट भविष्य में संभव हो सकता है और न ही इस तरह के प्रभावी अनुवाद उस हद तक मौजूदा समय में उपलब्ध हैं, जितना कानून की शिक्षा लेने वालों को प्रशिक्षित करने के लिए आवश्यक है। अंग्रेजी में विधानों का अस्तित्व, अनुबंध के दस्तावेज, सेवा नियम, व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कानून, स्वतंत्रता और रोजगार, पर्यावरण से संबंधित कानून और इसी तरह और पाठ्यक्रम के एक बड़े हिस्से का रातों रात अनुवाद नहीं किया जा सकता जिससे ये शिक्षण संस्थानों में या यहां तक ​​कि न्यायालयों में उपयोगी साबित हो सकें। इसलिए इसका सीधा असर प्लीडिंग की ड्राफ्टिंग, मुख्य तौर पर रिट याचिकाओं पर पड़ेगा जिनका सभी उच्च न्यायालयों में विशेष रूप से उपयोग किया जाता है। हिंदी (अंग्रेज़ी?) में शिक्षा के माध्यम के इस निर्देश को बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के नियमों में सावधानीपूर्वक पेश किया गया है, जिसे हिंदी के उपयोग को बढ़ावा देने के तमाम प्रयासों के बीच, जो निश्चित रूप से पूरी हमारी संवैधानिक आकांक्षाओं में से एक है, नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। "

    मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिए गए अन्य कारण:

    "दूसरा कारण यह है कि हमारे देश में विविध भाषाएं हैं और आज के समय में वकील दूर-दूर से न्यायालयों को संबोधित करने के लिए आते हैं और वे सही निष्कर्ष पर पहुंचने में न्यायालय की सहायता करते हैं जिसमे अंग्रेजी भाषा को आम तौर पर अभिव्यक्ति के प्रदर्शन के लिए उपयोग किया जाता है। इसलिए वे, याचिकाकर्ताओं के मामले को व्यक्त करने के लिए अंग्रेजी भाषा में याचिकाएं और अधिक आसानी से प्रस्तुत कर पाते हैं। वादियों द्वारा एक ऐसी परिस्थिति में खुदको पाने की संभावना जहां भाषा पूरी तरह से अलग है, न केवल ऐसे वादी गण के लिए बल्कि अदालतों एवं वकीलों के लिए मुश्किलें पैदा करेगा। ऐसी स्थिति में, याचिकाओं को ट्रांसक्रिप्ट करते समय हिंदी भाषा के उपयोग पर अधिक जोर देना होगा, लेकिन साथ ही अगर हिंदी देवनागरी लिपि में याचिकाएं दायर की जाती हैं और उन्हें अदालत द्वारा निपटाया जा सकता है, जिसके लिए अनुवाद की आवश्यकता हो सकती है तो उस सीमा तक एक प्रावधान सुनिश्चित किया जा सकता है कि यदि कोई याचिका या कर संदर्भ हिंदी में प्रस्तुत किया जाता है, तो यह अंग्रेजी भाषा में उसी की आधिकारिक कॉपी के साथ हो सकती है, क्योंकि 9th मई, 1972 की अधीसूचना के अनुसार आधिकारिक तौर पर यह मान्यता प्राप्त भाषा होगी। "

    अदालत ने यह भी नोट किया कि कानून की सभी शाखाओं में कानून पत्रिकाएं एवं आधिकारिक ग्रंथ अंग्रेजी में उपलब्ध हैं।

    "भारत में सबसे अच्छी कानून पत्रिकाएं जो अतीत और वर्तमान में प्रकाशित हुई हैं, वे सभी अंग्रेजी भाषा में हैं। न्यायशास्त्र के विद्वानों द्वारा कानून की लगभग हर शाखा पर तैयार किये गए आधिकारिक पाठ सभी अंग्रेजी भाषा में हैं। न्यायालय के लिए यह अनुमान लगाना असंभव है कि इस पूरी सामग्री को कब और कैसे हिंदी देवनागरी लिपि में अनुवादित किया जाएगा जिससे इसका उपयोग, प्लीडिंग की ड्राफ्टिंग में, जिसे ज्यादातर मामलों में वकीलों एवं कानूनी जानकारों द्वारा किया जाता है न कि किसी आम इंसान द्वारा, हिंदी भाषा के इस्तेमाल की वकालत करने वाले इसका उपयोग कर सकें। फिलहाल, मिसाल के तौर पर कानून का विशाल स्रोत भी चिंता के क्षेत्रों में से एक है क्योंकि यह कानूनी शिक्षा और सतत कानूनी शिक्षा दोनों का पर्याप्त आधार है। "


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