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अपील पर आरोपी की सज़ा को नोटिस जारी करने के बाद ही बढ़ाया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
25 April 2019 5:20 AM GMT
अपील पर आरोपी की सज़ा को नोटिस जारी करने के बाद ही बढ़ाया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट किसी आरोपी की सज़ा को बढ़ाने का अधिकार रखता है पर ऐसा वह आरोपी को सज़ा बढ़ाने का नोटिस जारी करने के बाद ही कर सकता है।

कुमार घिमिरे को निचली अदालत ने 7 साल की एक लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोप में सात साल की सज़ा सुनाई थी। इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील पर ग़ौर करते हुए सिक्किम हाईकोर्ट ने इसको बढ़ाकर 10 साल कर दिया।

आरोपी ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और कहा कि सीआरपीसी की धारा 386 के तहत सज़ा बढ़ाने के लिए हाईकोर्ट ने उपयुक्त प्रावधानों का पालन नहीं किया।आरोपी ने कहा कि उसे सज़ा बढ़ाने के बारे में कोई नोटिस नहीं मिला। वक़ील ने भी इस दलील का खंडन नहीं किया।

पीठ ने कहा, "…सज़ा बढ़ाने को लेकर हाईकोर्ट के अधिकार के बारे में कोई संदेह नहीं है…उचित मामलों में हाईकोर्ट सीआरपीसी की धारा 401 के तहत भी अपने अधिकारों का प्रयोग कर सकता है। इसके तहत हाईकोर्ट अपीली अदालत को मिले अधिकारों का प्रयोग कर सकता है…हाईकोर्ट सज़ा बढ़ा सकता है लेकिन ऐसा वह सज़ा बढ़ाने का नोटिस जारी करने के बाद ही कर सकता है।"

पीठ ने इस बारे में Sahab Singh vs. State of Haryana मामले में आए फ़ैसले का भी ज़िक्र किया जिसमें कहा गया कि अगर राज्य सज़ा बढ़ाने की कोई अपील दायर नहीं करती है तो भी हाईकोर्ट स्वतः संज्ञान लेते हुए सीआरपीसी की धारा 397 के तहत सज़ा बाधा सकता है पर ऐसा करने से पहले यह ज़रूरी है कि हाईकोर्ट आरोपी को इस बारे में पूर्व नोटिस जारी करे।

पीठ ने हालाँकि आरोपी की इस दलील को ख़ारिज कर दिया कि धारा 10 के तहत पाँच साल की सज़ा सुनाई जा सकती है। पर कोर्ट ने कहा,

"विशेष जज का मत है कि सात साल की छोटी लड़की के ख़िलाफ़ हुए अपराध को हल्के में नहीं लिया जा सकता है और हम विशेष जज के मत से सहमति जताते हैं और इस मामले में सात साल के सश्रम कारावास की सज़ा में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।"


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