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वकालत की पढ़ाई कर लेने व रजिस्ट्रेशन करवा लेने का मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति बतौर वकील कर रहा है प्रैक्टिस-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
9 April 2019 1:03 PM GMT
वकालत की पढ़ाई कर लेने व रजिस्ट्रेशन करवा लेने का मतलब यह नहीं है कि वह व्यक्ति बतौर वकील कर रहा है प्रैक्टिस-दिल्ली हाईकोर्ट [निर्णय पढ़े]
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दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही कहा है कि सिर्फ एक व्यक्ति ने वकालत की पढ़ाई कर ली है और अपना वकील के तौर पर रजिस्ट्रेशन करवा लिया है,इस आधार पर यह नहीं माना जा सकता है कि वह व्यक्ति बतौर वकील प्रैक्टिस कर रहा है और पैसे कमा रहा है।

जस्टिस संजीव सचदेवा की खंडपीठ ने कहा कि-प्रतिवादी पढ़ी-लिखी है और उसने वकील के तौर पर अपना रजिस्ट्रेशन करवा रखा है,सिर्फ इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि वह बतौर वकील प्रैक्टिस कर रही है और पैसा कमा रही है।

इस मामले में कोर्ट एक पुनविचार याचिका पर सुनवाई कर रही थी,जो महिला के पति ने दायर की थी। इस याचिका में निचली अदालत के उस आदेश को चुनौती दी गई थी,जिसमें महिला के पति को निर्देश दिया गया था कि वह अपनी पत्नी को अंतरिम गुजारे भत्ते के तौर पर प्रतिमाह 15 हजार रुपए दे।

हाईकोर्ट में दायर याचिका में महिला के पति ने दावा किया था कि उसकी पत्नी निचली अदालत के समक्ष गलत सूचना दी है िकवह कुछ काम नहीं करती है। उसने बताया कि उसकी पत्नी ने उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पास बतौर वकील अपना रजिस्ट्रेशन करवा रखा है।

हालांकि कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की पत्नी नौकरी करती है या नहीं,इसका निर्णय सिर्फ उसकी योग्यता के आधार पर नहीं किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि दंपत्ति कुछ दिन के लिए आजमगढ़ में रहा था। जिसके बाद वह पूना शिफट हो गए थे। जिससे साफ जाहिर है कि उसकी पत्नी ऐसी स्थिति में प्रैक्टिस नहीं कर पाई होगी।

कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कोई ऐसे तथ्य पेश नहीं किए है,जिससे यह जाहिर हो सके कि उसकी पत्नी बतौर वकील प्रैक्टिस कर रही है। इसके लिए याचिकाकर्ता को मौका भी दिया गया था ताकि वह अपना दावा साबित कर सके।

कोर्ट ने कहा कि पेश तथ्यों से पाया गया है कि याचिकाकर्ता प्रतिमाह साठ हजार रुपए कमा रहा है। ऐसे में निचली अदालत के आदेश में हस्तक्षेप करने को कोई कारण नहीं बनता है। हालांकि यह भी साफ कर दिया है कि अगर याचिकाकर्ता यह साबित कर देता है कि उसकी पत्नी के पास आय का अन्य साधन है तो वह निचली अदालत के आदेश में संशोधन करवा सकता है।


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