हमें जाति व्यवस्था को त्याग देना चाहिए : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस से एफआईआर, मेमो आदि में जाति का उल्लेख नहीं करने को कहा [निर्णय पढ़े]

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2 April 2019 6:09 AM GMT

  • हमें जाति व्यवस्था को त्याग देना चाहिए : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने पुलिस से एफआईआर, मेमो आदि में जाति का उल्लेख नहीं करने को कहा [निर्णय पढ़े]

    आपराधिक प्रक्रिया में जाति का उल्लेख करने के औपनिवेशिक परिपाटी पर विराम लागाते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि जाति व्यवस्था बेतुकी है और यह संविधान के ख़िलाफ़ भी है।

    न्यायमूर्ति राजीव शर्मा और न्यायमूर्ति कुलदीप सिंह की खंडपीठ ने पंजाब, हरियाणा और केंद्र शासित प्रदेश को निर्देश दिया है कि वे सभी जाँच अधिकारियों को निर्देश जारी करें कि वे सीआरपीसी की प्रक्रिया और पंजाब पुलिस नियमों के तहत आरोपियों, पीड़ितों या गवाहियों की जाति का उल्लेख नहीं करें।

    कोर्ट ने यह निर्देश उस समय दिया जब हत्या के एक मामले में आपराधिक अपील पर ग़ौर करते हुए उसने पाया कि पुलिस ने आरोपी/गवाहियों और पीड़ित की जाति का इसमें उल्लेख किया है।

    कोर्ट ने कहा, "इसकी इजाज़त नहीं दी जा सकती। आपराधिक प्रक्रिया में जाति का उल्लेख करना औपनिवेशिक विरासत है और इस पर तत्काल रोक लगाने की ज़रूरत है…"

    कोर्ट ने कहा कि राज्य का यह न केवल कर्तव्य है कि वह लोगों की मानवीय गरिमा का संरक्षण करे बल्कि उसको इस बारे में सकारात्मक क़दम उठाने की भी ज़रूरत है। जजों ने जर्मनी के संविधान का भी उल्लेख किया जिसमें कहा गया है कि अनुच्छेद 1 के तहत मानवीय गरिमा अनुल्लंघनीय है। कोर्ट ने कहा,

    "भारतीय संविधान के निर्माताओं का यह विश्वास था कि समय के साथ-साथ जाति व्यवस्था भी समाप्त हो जाएगी। हालाँकि, दुर्भाग्यवश जाति व्यवस्था आज भी क़ायम है…जाति व्यवस्था पूरी तरह अतार्किक है और यह संविधान के आदर्शों के ख़िलाफ़ भी है।"

    कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह सभी न्यायिक अधिकारियों को मामलों की सुनवाई के दौरान इन निर्देशों का पालन करने की जानकारी दें।


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