अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक सहवास के आरोपी पति का डीएनए टेस्ट कराने के आदेश के ख़िलाफ़ याचिका को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ख़ारिज किया [आर्डर पढ़े]

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30 March 2019 4:29 PM GMT

  • अपनी पत्नी के साथ अप्राकृतिक सहवास के आरोपी पति का डीएनए टेस्ट कराने के आदेश के ख़िलाफ़ याचिका को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ख़ारिज किया [आर्डर पढ़े]

    मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने जाँच अधिकारी के उस आदेश को सही ठहराया है जिसमें एक आरोपी व्यक्ति के डीएनए टेस्ट का आदेश दिया गया है।

    इस व्यक्ति की पत्नी ने उस पर उसके साथ अप्राकृतिक सहवास का आरोप लगाया था। इस व्यक्ति ने अदालत में अग्रिम ज़मानत के लिए आवेदन दिया जिसे हाईकोर्ट ने ख़ारिज कर दिया। इसके बाद यह व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट पहुँचा जहाँ से वह गिरफ़्तारी नहीं होने का आदेश प्राप्त करने में सफल रहा पर इसके साथ शर्त यह थी कि वह मामले की जाँच में सहयोग करेगा।

    इस मामले की जाँच के तहत उसे जाँच अधिकारी के समक्ष पेश होने को कहा गया ताकि डीएनए टेस्ट के बाबत प्रक्रिया पूरी की जा सके। इससे नाराज़ इस व्यक्ति ने दुबारा हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया।

    अभियोजन ने अदालत में कहा कि पत्नी की डीएनए टेस्ट का स्लाइड तैयार कर लिया गया है और उसे फ़ोरेंसिक प्रयोगशाला में भेज दिया गया है। इसकी रिपोर्ट मिल गई है जिसमें स्लाइड में वीर्य (स्पर्म) पाया गया। अब यह मानव वीर्य इस आरोपी पति का है या नहीं इसकी जाँच डीएनए टेस्ट से ही हो सकता है।

    कोर्ट ने कहा कि चूँकि डीएनए टेस्ट का स्रोत यानी कि पत्नी के गुदा स्लाइड (Anal slide) पर वीर्य का होना उपलब्ध है, उस वीर्य से डीएनए निकालकर उसे याचिकाकर्ता के डीएनए प्रोफ़ायल से मिलाया जा सकता है। अभियोजन ने डीएनए टेस्ट का जो सुझाव दिया है उसका फ़ायदा याचिकाकर्ता को भी होगा। अगर डीएनए अलग पाया जाता है तो यह सबूत याचिकाकर्ता के हित में जाएगा।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि वैवाहिक विवाद में और बलात्कार के मामले में डीएनए टेस्ट का आदेश दिया जा सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि जाँच अधिकारी को सीआरपीसी की धारा 53-A के तहत यह आदेश देने का अधिकार है।

    याचिकाकर्ता की अपील को ख़ारिज करते हुए अदालत ने कहा :

    "यद्यपि सीआरपीसी की धारा 53- A बलात्कार से संबंधित है लेकिन वर्तमान मामले में भी अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने का अपराध हुआ है और पत्नी के Anal slide में वीर्य पाया गया है। इस स्थिति में, इस अदालत का मानना है कि चूँकि सुप्रीम कोर्ट ने भी आरोपी को इस मामले की जाँच में सहयोग करने को कहा है, तो फिर वह जाँच अधिकारी के जाँच के तरीक़ों पर आपत्ति नहीं कर सकता"।


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