सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरवन भवन के भारत और विदेशों में होटलों की श्रृंखला के मालिक पी. राजगोपाल की आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा। राजगोपाल को अपने कर्मचारी संतकुमार की हत्या करने का दोषी ठहराया गया है क्योंकि वह संतकुमार की पत्नी जीवज्योति से शादी करना चाहता था। इस मामले में 7 अन्य की भी सजा की पुष्टि की गई है।
जस्टिस एन. वी. रमना, जस्टिस एम. एम. शांतनागौदर और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की 3 जजों की बेंच ने मद्रास हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा है जिसने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई सजा को 10 साल से उम्रकैद तक बढ़ा दिया था। बेंच ने आरोपियों को आत्मसमर्पण करने के लिए 7 जुलाई तक का समय दिया है। सभी आरोपी इस वक्त जमानत पर हैं।
अतिरिक्त महाधिवक्ता बालाजी श्रीनिवासन द्वारा दलील के रूप में अभियोजन का मामला यह था कि एक ज्योतिषी की सलाह पर मुख्य आरोपी ने अपनी तीसरी पत्नी के रूप में जीवज्योति से शादी करने की गहरी इच्छा व्यक्त की थी हालांकि जीवज्योति की पहले से ही संतकुमार (मृतक) से शादी हो चुकी थी। 26 अक्टूबर, 2001 को मृतक का अपहरण कर लिया गया और बाद में उनकी हत्या कर दी गई थी। उसके शव को कोडईकनाल के जंगल में पेरुमलमालई में दफनाया गया था। मौत का कारण दम घुटना बताया गया था।
राजगोपाल और अन्य लोगों द्वारा दायर की गई अपील को खारिज करते हुए बेंच ने कहा कि दोनों अपराध (अपहरण और हत्या) करने का मकसद एक ही है, क्योंकि जीवज्योति से शादी करने के लिए अभियुक्त नंबर 1 यह अपराध करने में सक्षम था।
न्यायमूर्ति शांतनागौदर ने फैसला सुनाते हुए कहा कि पहला अपराध (अपहरण) केवल धमकी देने और दबाव डालने के इरादे से किया गया था। दूसरे अपराध के पीछे का मकसद संतकुमार की हत्या करना था ताकि स्थायी रूप से उससे छुटकारा पाया जा सके और अभियुक्त द्वारा मृतक की पत्नी से शादी की जा सके।
अदालत ने कहा "हम इस विचार से हैं कि वैज्ञानिक साक्ष्य को ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने भी सही माना और शरीर की पहचान के बारे में गवाहों के साक्ष्य मजबूत करता है। गवाहों के साक्ष्य से यह स्पष्ट है कि टाइगरकोला से बरामद शव की पहचान उस संतकुमार के रूप में की गई थी और उसी शव को बाहर निकाला गया था।
यह बात याद रखने योग्य है कि यह आवश्यक है कि सभी आपराधिक मामलों में उचित संदेह से परे सबूतों को जोड़ा जाना चाहिए। यह आवश्यक नहीं है कि इस तरह का सबूत एकदम सही होना चाहिए और जो कोई दोषी है वह केवल इसलिए बच जाए क्योंकि मानव प्रक्रियाओं के माध्यम से सच्चाई विकसित करने में कुछ कमियां रह जाएं।
एक आपराधिक मुकदमे में न्याय को संचालित करने के लिए पारंपरिक हठधर्मी दृष्टिकोण को तर्कसंगत, यथार्थवादी और वास्तविक दृष्टिकोण से बदलना होगा। पीठ ने कहा कि न्याय को प्रमाण के नियम से अतिरंजित करके निष्फल नहीं बनाया जा सकता क्योंकि संदेह का लाभ हमेशा उचित होना चाहिए और यह कभी भी काल्पनिक नहीं होना चाहिए। अभियोजन पक्ष के सबूतों को स्वीकार करते हुए पीठ ने आठों आरोपियों की उम्रकैद की सजा की पुष्टि की है।