पाॅवर डिस्ट्रिब्यूशन लाइसेंसी नहीं मांग सकता है दो साल से ज्यादा अवधि का बिजली बिल,बशर्ते दो साल के बिल में एरियर के तौर पर न दिखाई गई हो वह राशि [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

24 March 2019 11:34 AM GMT

  • पाॅवर डिस्ट्रिब्यूशन लाइसेंसी नहीं मांग सकता है दो साल से ज्यादा अवधि का बिजली बिल,बशर्ते दो साल के बिल में एरियर के तौर पर न दिखाई गई हो वह राशि [निर्णय पढ़े]

    बाॅम्बे हाईकोर्ट की फुल बेंच ने अपने एक फैसले में कहा है कि पाॅवर डिस्ट्रिब्यूशन लाइसेंसी दो साल से ज्यादा की अवधि में प्रयोग की गई बिजली का बिल नहीं मांग सकता है,बशर्ते वह राशि दो साल की अवधि के दौरान बिल में एरियर के तौर पर दिखाई गई हो।

    जस्टिस एस.सी.धर्माधिकारी,जस्टिस भारती डांगरे व जस्टिस ए.एम बदर की बेंच ने यह फैसला दिया है। यह बेंच हाईकोर्ट के एक सिंगल जज द्वारा बड़ी बेंच को रेफर किए गए मामले की सुनवाई कर रही थी। सिंगल जज महाराष्ट्रा स्टेट इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई कर रहा था,जिस दौरान पाया कि हाईकोर्ट की दो सदस्यीय बेंच के द्वारा आपसी विरोधाभासी फैसले दिए गए हैं।

    पहला फैसला जस्टिस एफ.आई रिबेल्लो व जस्टिस अनूप मोहता की बेंच द्वारा अवदेश एस पांडेय बनाम टाटा पाॅवर के मामले में दिया गया था जबकि दूसरा फैसला जस्टिस रंजना देसाई व जस्टिस ए.ए सईद की बेंच ने रोटोटैक्स पाॅलिस्टर एंड एएनआर बनाम एडमिनेस्ट्रर, एडमिनेस्ट्रन आॅफ दादर एंड नागर हवेली, इलैक्ट्रिसिटी डिपार्टमेंट,सिलवास्सा एंड अदर के मामले में दिया गया था।

    केस का बैकग्राउंड

    याचिकाकर्ता महाराष्ट्रा स्टेट इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड के अनुसार एक उपभोक्ता वर्ष 2003 से थ्री फेज वाला इंडिस्ट्रयल कनेक्शन प्रयोग कर रहा था और नियमित तौर पर अपना बिल भर रहा था। हालांकि जब दिसम्बर 2010 में इस उपभोक्ता के परिसर में लगे मीटर को चेक किया गया तो उसमें कई तरह की कमियां पाई गई। जिसमें बाद याचिकाकर्ता ने आठ फरवरी 2011 को इस उपभोक्ता को 17 लाख 91 हजार 410 रुपए का मासिक बिल भेजा। इसके बाद दस मई 2011 को एक पत्र भेजा गया,जिसके साथ फाइनल बिल था,जो 28 लाख 37 हजार 845 रुपए 25 पैसे का था,यह बिल उपभोक्ता द्वारा पहले से दिए गए बिल की राशि काटने के बाद बची हुई राशि का था। यह बिल सितम्बर 2003 से दिसम्बर 2010 की बीच की अवधि का था।

    इस बिल पर अंसतोष जताते हुए उपभोक्ता ने इलैक्ट्रिसिटी आॅम्बुडसमैन के समक्ष अर्जी दायर कर दी। हालांकि आॅम्बुडसमैन ने महाराष्ट्रा स्टेट इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड के पक्ष में फैसला देते हुए कहा कि उपभोक्ता को बिल का बाकी बचा पैसा देना होगा। बिल की यह राशि वैध है।

    जिसके बाद उपभोक्ता ने इस आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए एक अर्जी दायर कर दी,जिसे स्वीकार कर लिया गया।

    मल्टीपल फैक्टर

    एडवोकेट जनरल ए.ए कुभकोनी इस मामले में महाराष्ट्रा स्टेट इलैक्ट्रिसिटी डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी लिमिटेड की तरफ से पेश हुए थे। उन्होंने दलील दी कि हाई टेंशन क्ंज्यूमर को हाईवोल्टेड के साथ इलैक्ट्रिक एनर्जी की सप्लाई की जाती है,जो 11000/22000/33000/ईवीएच वोल्टस होती है। अगर इस तरह की हाईवोल्टेज सप्लाई किसी को इलैक्ट्रिक सप्लाई को नापने के लिए लगाए गए मीटर में से सीधे तौर पर प्रयोग करने की अनुमति दे दी जाए तो इससे जलने या विस्फोटक होने की संभावना रहती है। इसलिए यह जरूरी है कि जो इलैक्ट्रिसिटी सप्लाई की जाती है उसको करंट ट्रांसफार्मर एंड वोल्टेज पोटेंशल ट्रांसफार्मर यूनिट द्वारा ट्रांसर्फार्मेशन आॅफ करंट एंड वोल्टेज में कवंर्ट किया जाए। इस तरह के मामलों में असल इलैक्ट्रिसिटी इलैक्ट्रिक मीटर से सप्लाई की जाती है,जिसकी वोल्टेज व करंट कम होता है। यह असल में सप्लाई की जाने वाली इलैक्ट्रिक एनर्जी का एक छोटा सा हिस्सा होता है। इसलिए इस तरह के मामलों में मीटर रीडिंग असल में उपयोग की गई बिजली की मात्रा को नहीं बात पाते है। इसलिए मीटर द्वारा दिखाई गई रीडिंग मल्टीप्लाइंग फैक्टर अप्लाई किए जाते है ताकि असल में उपयोग की गई बिजली की रीडिंग का पता लग सके।

    कोर्ट का फैसला

    कोर्ट ने इस मामले में इलैक्ट्रिसिटी सप्लाई एक्ट को देखने के बाद कहा-एक्ट की धारा 56 के अनुसार अगर कोई बिल का भुगतान नहीं करता है तो उसका कनेक्शन काटा जा सकता है। इस मामले में ऐसा कुछ नहीं है बिजली कंपनी या लाइसेंसी द्वारा मांगे गए सभी भुगतान उपभोक्ता ने किए है। इसलिए उपभोक्ता का कनेक्शन नहीं काटा जा सकता है। इस मामले में उपभोक्ता सब-सेक्शन 2 के तहत आता है। सेक्शन 56 को एक छोटी सी हेडिंग दी गई है,जिसके तहत कहा गया है कि अगर कोई बिल का भुगतान नहीं करता है तो उसका कनेक्शन काटा जा सकता है। परंतु इस मामले में सेक्शन 56 के तहत कोई भी भुगतान उस तरीख के दो साल बाद नहीं मांगा जा सकता है,जिस तारीख को वह पहली बार मांगा गया था। बशर्ते इस तरह की राशि को बार-बार बिल में एरियर के तौर पर दर्शाया गया हो। सिर्फ यही शर्त पूरी होने के बाद ही लाइसेंसी बिजली का कनेक्शन काट सकता है,अन्यथा ऐसा नहीं कर सकता है।

    कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पूर्व में दिए गए दोनों फैसलों में कोई विरोधाभास नहीं है। कोर्ट ने कहा-कि हमने ऐसा कुछ नहीं देखा,जिसके आधार पर कहा जा सके कि दोनों फैसलों में कोई विरोधाभास है। अवदेश पांडेय केस में सिर्फ इस आधार पर बिजली का कनेक्शन काटने की धमकी दी गई थी क्योंकि बिल का भुगतान नहीं किया गया था। इस मामले में इसके लिए नोटिस भेजा गया था जिसमें लंबित एरियर का जिक्र था। इसी कनेक्शन काटने वाले नोटिस को अवदेश पांडेय केस के तहत चुनौती दी गई थी। इस भुगतान की मांग इलैक्ट्रिसिटी ओमबुडसमैन के आदेश के तहत की गई थी। दो सदस्यीय खंडपीठ ने जब देखा कि इलैक्ट्रिसिटी ओमबुडसमैन के आदेश का उल्लेख नहीं किया गया है तो इस बात का ध्यान में रखते अवदेश पांडेय की याचिका को खारिज कर दिया गया। इसका कारण साफ है क्योंकि बिल के भुगतान की मांग इलैक्ट्रिसिटी ओमबुडसमैन के आदेश के आधार पर की गई थी। हालांकि अवदेश पांडेय को आंशिक राहत दे दी गई थी। इस मामले में तथ्य साफ थे क्योंकि बिल के भुगतान की मांग दो साल के अंदर की गई थी। सच तो यह है कि जब इस भुगतान की पहली बार मांग की गई तो उसको लेकर कोई विवाद भी नहीं हुआ था। इसलिए पूरे आदर के साथ यह कहा जा रहा है कि हमे दो-दो सदस्यीय बेंच के अलग-अलग फैसलों में कोई विरोधाभास नहीं मिला है।

    कोई भी डिस्ट्रिब्यूशन लाइसेंसी बिजली उपयोग करने के लिए उस बिल की मांग नहीं कर सकता है,जो दो साल से ज्यादा की अवधि का है। यह अवधि उस तरीख से शुरू होती है,जब पहली बार उस बिल की मांग की गई थी। दूसरे शब्दों में डिस्ट्रिब्यूशन लाइसेंसी इस अवधि से ज्यादा के लिए बिल की मांग तभी कर सकता है जब वह सेक्शन 56 के सब-सेक्शन 2 के तहत लगाई गई शर्तो को पूरा करता हो। इसके लिए उसे सेक्शन के नियमों के लंबित राशि को बिल में एरियर के तौर पर दिखाया जाना जरूरी है।


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