क्या एक वक़ील अनुचित बात का समर्थन करने के लिए बाध्य है? पटना हाईकोर्ट ने एक आलेख को पढ़ने का सुझाव दिया [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

23 March 2019 4:06 PM GMT

  • क्या एक वक़ील अनुचित बात का समर्थन करने के लिए बाध्य है? पटना हाईकोर्ट ने एक आलेख को पढ़ने का सुझाव दिया [आर्डर पढ़े]

    क्या कोई वक़ील किसी अनुचित बात का समर्थन करने के लिए बाध्य है? इस बारे में पटना हाईकोर्ट ने एएस कटलर का लिखा एक आलेख पढ़ने का सुझाव दिया है।

    मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अमरेश्वर प्रताप साही और न्यायमूर्ति राजीव रंजन प्रसाद की पीठ ने सभी के हित में उपरोक्त आलेख को दुबारा पेश किया और इसके माध्यम से वकीलों को मामले के संचालन के दौरान उनके कर्तव्यों और नैतिक आचरणों की याद दिलाई।

    कोर्ट ने एक पुनरीक्षण याचिका पर ग़ौर कर रहा था जिसमें उसने पाया कि एक नौकरी के लिए दिए गए आवेदन में जो दस्तावेज़ पेश किए गए थे वे फ़र्ज़ी थे। बाद में जब कोर्ट ने इसके लिए दंडात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी तो इस पुनरीक्षण याचिका को वक़ील ने वापस ले लिया गया।

    जिस आलेख का ज़िक्र किया गया है वह अमेरिकन बार एसोसीएशन के अप्रैल 1952 के संस्करण में छपा था और इस आलेख में उन कुछ कठिन प्रश्नों का उत्तर देने की कोशिश की गई है जिसका सामना वह एक सामान्य आदमी की ओर से करता है। ये प्रश्न थे -

    जिस आदमी के बारे में आप जानते हैं कि वह दोषी है उसका वह कितनी ईमानदारी से बचाव कर सकता है?

    उस स्थिति में आप अपने केस का बचाव कैसे करें जब आपको पता है कि आपका मुवक्किल ग़लत है और उसे वे पैसे लौटा देने चाहिए?

    कटलर ने अपने आलेख में कहा है कि वक़ील को ऐसे केस की पैरवी नहीं करनी चाहिए जिसमें उसको अपने मुवक्किल की बातों पर विश्वास ना हो। वे यहाँ तक कहते हैं कि उसका मुवक्किल निर्दोष है इस बारे में आश्वस्त हो जाने के बाद ही उसे उसके बचाव का मामला अपने हाथ में लेना चाहिए। आलेख में कहा गया है :

    "अगर एक वक़ील यह जानता है कि उसका मुवक्किल दोषी है, तो यह उसका दायित्व है कि वह इस मामले से संबंधित … तथ्यों का उल्लेख करे और क्षमा की याचना करे जिसमें वक़ील विश्वास करता है। ऐसे मामले में जहाँ मुवक्किल के दोषी होने के बारे में संदेह है और वक़ील को विश्वास है कि उसका मुवक्किल निर्दोष है, तो उसे अपनी पूरी योग्यता से अपने मुवक्किल का बचाव करना चाहिए।"

    कटलर का विचार था कि वक़ील को एक ऐसे यंत्र की तरह नहीं होना चाहिए जो अपने मुवक्किल के शब्दों को आवाज़ दे भले ही वह कितना ही झूठ और बेमानी भरा क्यों ना हो। उन्होंने कहा -

    "वक़ील को चाहिए कि वह अपने मुवक्किल का भोंपू ना बने …ढोंग, टाल मटोल और निष्ठाहीनता भले ही शब्दकोश में पाए जाते हैं पर एक वक़ील के दिल में इन बातों के लिए कोई जगह नहीं होना चाहिए।"

    अपने मुवक्किल और कोर्ट के प्रति उसके कर्तव्यों के बारे में कटलर ने कहा - "सिर्फ़ अपने मुवक्किल के प्रति ही उसका कर्तव्य नहीं है। अदालत और समाज के प्रति भी वक़ील की ज़िम्मेदारी उतनी ही है। अपने मुवक्किल के प्रति उसकी ज़िम्मेदारी बड़ा है पर अदालत के अधिकारी के रूप में उसकी ज़िम्मेदारी उससे भी बड़ी है। वह नैतिक रूप से और वरीयता के रूप में भी, वह कोर्ट को ऐसी बात नहीं कहेगा जो कि ग़लत है।"

    इस पूरे आलेख को हाईकोर्ट के आदेश में उद्धृत किया गया है।


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