हाईकोर्ट निचली अदालतों या अधिकरणों के फ़ैसलों में सिर्फ़ ग़लतियों को सुधार के लिए हस्तक्षेप नहीं कर सकता : झारखंड हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

19 March 2019 11:04 AM IST

  • हाईकोर्ट निचली अदालतों या अधिकरणों के फ़ैसलों में सिर्फ़ ग़लतियों को सुधार के लिए हस्तक्षेप नहीं कर सकता : झारखंड हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

    झारखंड हाईकोर्ट की एक एकलपीठ ने अनुच्छेद 227 के तहत एक रिट याचिका पर ग़ौर करते हुए कहा कि हाईकोर्ट अनुच्छेद 227 के तहत निचली अदालतों या अधिकरणों के फ़ैसले में सिर्फ़ कुछ ग़लतियों को ठीक करने के लिए हस्तक्षेप नहीं कर सकता।

    Panpati Devi v. Ram Barat Ram मामले में याचिकाकर्ता ने अपीली अदालत के फ़ैसले को चुनौती दी। याचिकाकर्ता ने निचली अदालत के फ़ैसले के ख़िलाफ़ ज़िला अदालत में एक टाइटिल सूट दायर किया कि बिक्री का क़रार फ़र्ज़ी तरीक़े से किया गया।

    इसके बाद याचिकाकर्ता ने सीपीसी के आदेश VI और नियम 17 के तहत लिखित बयान में संशोधन के लिए एक आवेदन दिया। प्रतिवादी ने संशोधन का प्रतिवाद किया और अपीली अदालत ने यह अर्ज़ी ख़ारिज कर दी और यह कहा कि संशोधन अपील पर ग़ौर करने के उद्देश्य के बाहर का मामला है।

    याचिकाकर्ता ने अपीली अदालत के फ़ैसले को चुनौती दी और हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप करने की माँग की।

    झारखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सुजित नारायण प्रसाद ने सुप्रीम कोर्ट के ऐसे कई मामलों में आए फ़ैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि हाईकोर्ट अनुच्छेद 227 के तहत असीमित विशेषाधिकार नहीं प्राप्त कर सकता ताकि वह हर तरह की ग़लतियों को ठीक करे।कोर्ट ने आगे कहा कि अनुच्छेद 227 के तहत अधिकारों का तब तक प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए जब तक कि यह न लगे कि न्यायिक क्षेत्राधिकार का गंभीर उल्लंघन हुआ है या कोर्ट या अधिकरण ने अपने क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने से मना कर दिया है

    कोर्ट ने अनुच्छेद 226 और 227 के तहत मिले अधिकारों में अंतर स्पष्ट किया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट अमूमन किसी फ़ैसले या प्रक्रिया को निरस्त कर देता है पर अनुच्छेद 227 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग करते हुए हाईकोर्ट प्रक्रिया को निरस्त करने के अलावा संबंधित आदेश के बदले ऐसा आदेश भी दे सकता है जो निचली अदालत या अधिकरण को देना चाहिए था।

    हाईकोर्ट ने अपीली अदालत के फ़ैसले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया और याचिका को ख़ारिज कर दिया और कहा कि यह ऐसा मामला नहीं है जिसकी अनुच्छेद 227 के तहत सुनवाई हो सके।


    Next Story