असहिष्णुता लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक : मद्रास हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

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18 March 2019 3:58 PM GMT

  • असहिष्णुता लोकतंत्र के लिए ख़तरनाक : मद्रास हाईकोर्ट [आर्डर पढ़े]

    मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि वर्ल्ड तमिल संगम जैसी संस्था को उन लोगों का साथ नहीं देना चाहिए जो पुस्तक का विरोध करते हैं और इस पुस्तक के विमोचन के लिए हॉल देने से माना कर देते हैं।

    टी लाजपति रॉय जो कि पेशे से वक़ील और लेखक हैं, ने उस समय हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया जब उन्हें अपनी नवीनतम पुस्तक "हिस्ट्री ऑफ़ नादर्स - ब्लैक ऑर सैफ़्रॉन?" के विमोचन के लिए वर्ल्ड दतमिल संगम के कॉन्फ़्रेन्स हॉल के प्रयोग की इजाज़त नहीं दी गई। उनको यह कहते हुए इस हॉल के प्रयोग की इजाज़त नहीं दी गई क्योंकि चूँकि मामला धार्मिक समुदाय से जुड़ा है इसलिए इस कार्यक्रम से विवाद उठने का अंदेशा है।

    हॉल के प्रयोग की इस आधार पर अनुमति नहीं देने से असहमत न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा, "याचिकाकर्ता ने एक पुस्तक लिखी है जिसमें उन्होंने नादरों के इतिहास पर प्रकाश डाला है…इस बात की पूरी संभावना है कि नादरों का इतिहास न ही पूरी तरह काला है और न ही भगवा। हो सकता है कि उसका रंग ऐसा है जो किसी भी लेबेल में नहीं आता। ये सारी बातें व्यक्तिगत राय है। याचिकाकर्ता को अपनी राय रखने का अधिकार है। नादरों के इतिहास के बारे में कोई हो सकता है कि उनकी इस राय से सहमत हो या नहीं हो। पर जो लेखक के असहमत हैं तो उन्हें अपने मत को साबित करने वाली बातों को सामने लाना चाहिए और उसे लोगों के समक्ष रखना चाहिए। वे याचिकाकर्ता को अपना विचार व्यक्त करने से नहीं रोक सकते। दूसरा प्रतिवादी, एक सरकारी संस्था है और उसे इस तरह के विवाद में निष्पक्ष रहना चाहिए। वे उन लोगों के साथ नहीं हो सकते जो इस पुस्तक का विरोध कर रहे हैं।"

    कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के एक फ़ैसले का भी ज़िक्र किया जिसमें उसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की याचिका स्वीकार की थी जिन्हें एक सरकारी स्कूल के प्रयोग की अनुमति नहीं दी गई थी। कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट के एक फ़ैसले का भी ज़िक्र किया जिसमें उषा उथुप को एक सरकारी भवन मेने कार्यक्रम करने की इजाज़त नहीं दी गई थी।

    कोर्ट ने कहा: "सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों की आलोचना अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध लगाने का आधार नहीं हो सकता है। हमें दूसरों के विचारों के प्रति अवश्य ही सहिष्णुता बरतनी चाहिए। असहिष्णुता लोकतंत्र के लिए उतना ही ख़तरनाक है जितना यह किसी व्यक्ति के लिए ख़ुद।"

    कोर्ट ने संगम को निर्देश दिया कि वह लेखक को अपने कॉन्फ़्रेन्स हॉल में पुस्तक के विमोचन की इजाज़त दे और अंत में यह कहा, "विगत भले ही काला या भगवा रहा हो, भविष्य को गुलाबी रहने दीजिए।"


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