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चिकित्सा पेशेवरों को सभी मरीज़ों के साथ समान आदर और संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
![चिकित्सा पेशेवरों को सभी मरीज़ों के साथ समान आदर और संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े] चिकित्सा पेशेवरों को सभी मरीज़ों के साथ समान आदर और संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/03/12358834-supreme-court-of-india-2jpg.jpg)
चिकित्सा में लापरवाही के एक मामले में एक महिला को ऊँची मुआवज़ा राशि चुकाए जाने का आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों को अपने सभी उपभोक्ताओं के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।
यह मामला 45 साल की जिस महिला से संबंधित है वह बहुत ही ग़रीब घर और ग्रामीण परिवेश की है और इलाज में लापरवाही के कारण उसकी दाहिनी बाँह काटनी पड़ी। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पाया कि यह मामला चिकित्सा में लापरवाही का है और इसके लिए सिर्फ़ दो लाख रुपए का मुआवज़ा ही देने का आदेश दिया। इस आदेश के ख़िलाफ़ यह महिला सुप्रीम कोर्ट पहुँची और ज़्यादा मुआवज़े की माँग की।
न्यायमूर्ति एएम सप्रे और न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय आयोग ने यह जानने के बाद भी इस महिला को किन हालात से गुज़रने पड़े और उसकी बाँह तक काटनी पड़ी, उसको मुआवज़ा दिलवाने में काफ़ी तंगदिली का परिचय दिया है। पीठ ने कहा कि यह देखते हुए कि पीडिता एक बहुत ही ग़रीब और ग्रामीण परिवेश से आती है, उसको मिलने वाला मुआवज़ा कम नहीं हो सकता।
कोर्ट ने कहा, "सामान्यतया …जब पीडिता ग़रीब और ग्रामीण परिवेश से आती है तो उस स्थिति में मुआवज़े की राशि का निर्धारण कम नहीं हो सकता; उलटे, इस तरह की स्थिति में जैसी कि इस अपीलकर्ता महिला की है, इस तरह की पृष्ठभूमि की महिला की स्थिति में निर्णायकर्ता को (सभी परिस्थितियों पर ग़ौर करने के बाद) और ज़्यादा मुआवज़ा दिलाने का आदेश देना चाहिए था।"
पीठ ने कहा कि इस मामले में ज़्यादा मुआवज़ा दिलाने के दोहरे फ़ायदे हो सकते हैं। पीठ ने बताया -
"पहला, अपीलकर्ता को उसकी हालत और उसकी बाँह काटे जाने को देखते हुए इससे थोड़ा राहत और मदद मिलेगी; और दूसरा, पेशेवरों को यह संदेश देने के लिए कि उनका दायित्व और उनका प्रत्युत्तर उनके सभी उपभोक्ताओं के लिए बराबर होना चाहिए और हर आदमी के साथ बराबरी और एक तरह की संवेदनशीलता के साथ पेश आना चाहिए। हम विचलित कर देने वाले तथ्यों के आलोक में इस तरह की राय व्यक्त करने के लिए बाध्य हुए हैं क्योंकि जो तथ्य पेश किए गए हैं उसके हिसाब से जब अपीलकर्ता बेहद तकलीफ़ में थी, उसका तुरंत उपचार नहीं हुआ और उलटे उसे यह कहकर चुप करा दिया गया कि 'पहाड़ी क्षेत्र से आने वाले लोग अनावश्यक शोर मचाते हैं'। इस तरह का प्रत्युत्तर जले पर नामक छिड़कने जैसा था और सरकारी नौकरी पर तैनात पेशेवरों से इस तरह की उम्मीद नहीं की जाती।"
पीठ ने कहा कि उस महिला की पृष्ठभूमि को देखते हुए उसको मिलने वाली मुआवज़े की राशि उस स्तर की होनी चाहिए कि उसको और उसके परिवार को एक ठीकठाक मदद मिल सके। इसके बाद कोर्ट ने राज्य और राष्ट्रीय आयोग को इस महिला को 10 लाख रुपए का मुआवज़ा देने का आदेश दिया।