सुप्रीम कोर्ट ने हत्या के आरोपी दो लोगों की मौत की सज़ा माफ़ की [निर्णय पढ़े]
Live Law Hindi
17 March 2019 6:39 PM IST
मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उन दो लोगों की मौत की सज़ा माफ़ कर दी जिनकी मौत की सज़ा की छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने पुष्टि की थी।
न्यायमूर्ति एके सीकरी,न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने दिगम्बर वैष्णव और गिरधारी वैष्णव की सज़ा माफ़ कर दी जिस पर डकैती डालने और पाँच महिलाओं की हत्या का आरोप है।
पेश साक्ष्य पर ग़ौर करते हुए पीठ ने कहा कि अभियोजन का मामला मुख्य रूप से एक एक बच्चे की गवाही पर आधारित है। कोर्ट ने कहा कि इस बाल-गवाह की गवाही से स्पष्ट है कि वह प्रत्यक्षदर्शी नहीं थी और सुने जो बयान दिए हैं उसमें कई सारी ख़ामियाँ हैं।
कोर्ट ने कहा,"इस अदालत की यह हमेशा ही राय रही है कि एक बाल-गवाह की गवाही पर सावधानीपूर्वक ग़ौर किए जाने की ज़रूरत होती है क्योंकि बच्चों के आसानी से बड़ों की बातों में आने की आशंका होती है। इसलिए बच्चों की गवाही पर विश्वास करने से पहले उनकी अन्य स्रोतों से पुष्टि की जाने की ज़रूरत होती है। यह क़ानून से ज़्यादा व्यावहारिक ज्ञान की बात है।"
कोर्ट ने यह भी कहा कि अपराध के बारे में मामला दर्ज कराने में भी अनाम कारणों से देरी हुई। विशेषज्ञों की राय भी महत्त्वपूर्ण है विशेषकर अगर आरोपी के धोशों को सिद्ध करने के लिए उँगलियों के निशान पर भरोसा किया जाना है। कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति ने उँगलियों के निशान लिए, अभियोजन ने उससे कोई पूछताछ नहीं की।
कोर्ट ने कहा कि यहाँ तक कि एफआईआर में भी, इस बात का कोई ज़िक्र नहीं है कि किसी वस्तु या पैसे की चोरी हुई है। इसलिए जब पैसे की कथित रूप से बरामदगी हुई तो यह मानना कि उसे मृतक के घर से चुराया गया था, ग़लत है क्योंकि अपराध की जगह से किसी भी वस्तु की चोरी या डकैती की बात नहीं कही गई है।
इस बात पर की वे दोनों अंतिम बार साथ देखे गए थे, पीठ ने कहा कि दोनों के साथ होने को एक फँसाने वाली परिस्थिति बताने के लिए यह जरूरी है कि दोनों के बीच मृतकों की लाश को देखे जाने और लाशों की बरामदगी के समय आपस में नज़दीकी साबित होनी चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि इन परिस्थितियों में यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि आरोपियों ने हत्या का अपराध किया है और इसलिए उन्हें इन आरोपों से मुक्त कर दिया।