शादी ख़त्म करने के लिए अर्ज़ी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi

17 March 2019 11:44 AM GMT

  • शादी ख़त्म करने के लिए अर्ज़ी कभी भी दी जा सकती है : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विशेष शादी अधिनियम की धारा 24 के तहत शादी को टूटा घोषित किए जाने के लिए अर्ज़ी देने की कोई अवधि निर्धारित नहीं है।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि एक बार जब कोई शादी टूट जाती है तो इसको किसी भी समय ऐसा घोषित किया जा सकता है।

    वर्तमान मामले में 'पत्नी' ने ज़िला अदालत, पुणे में विशेष शादी अधिनियम, 1954 की धारा 25 के तहत अर्ज़ी डाली थी कि उसकी शादी को इस आधार पर टूटा हुआ घोषित किया जाए कि उसके पति ने सक्षम अदालत से तलाक़ का आदेश लिए बिना उससे शादी की थी और शादी के समय उसकी पत्नी जीवित थे और उसने अपनी पहली शादी के बारे में उससे झूठ बोला था।

    निचली अदालत ने उसकी अर्ज़ी यह कहते हुए खारिज कर दी कि विशेष शादी अधिनयम, 1954 ई धारा 25 के तहत यह शादी को टूटा घोषित करने के लिए काफ़ी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि उत्पीड़न या धोखाधड़ी के सामने आने के एक साल के भीतर दायर की जानी चाहिए।

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने उसकी अपील ख़ारिज कर दी और निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया जिसके बाद उसने शीर्ष अदालत का रुख किया।

    सुप्रीम कोर्ट ने उसकी याचिका स्वीकार कर ली। पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 4 के मुताबिक़ किसी भी दो व्यक्ति के बीच विशेष शादी अधिनियम के तहत शादी हो सकती है बशर्ते दोनों में से किसी के भी पति या पत्नी जीवित नहीं हों।

    पीठ ने आगे कहा कि शादी को टूटा घोषित करने के लिए अर्ज़ी दायर करने की कोई भी सीमा निर्धारित नहीं है और अगर शादी ग़ैरक़ानूनी है तो उसे कभी भी टूटा घोषित किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि निचली अदालत और हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता की अर्ज़ी को ख़ारिज कर ग़लती की है।

    पीठ ने हाईकोर्ट के इस फ़ैसले में भी दोष पाया कि पति और पहली पत्नी के बीच में रस्मी तौर पर तलाक़ हो गया है क्योंकि हाईकोर्ट ने इस बारे में कोई विशेष मुद्दा नहीं बनाया है। कोर्ट ने कहा,

    "…वर्तमान मामले में न तो इसका कोई मुद्दा बनाया गया है और न ही प्रतिवादी पति ने इस बात का कोई सबूत पेश किया है कि उसके और उसकी पहली पत्नी के बीच रस्मी तौर पर तलाक़ हो गया है। प्रतिवादी पति को यह साबित करना ज़रूरी है कि इस तरह का रस्मी तलाक़ उसकी जाति या समुदाय में मान्य है। इस तरह के किसी साक्ष्य की अनुपस्थिति में नीचे की सभी अदालतों ने यह कहकर कि दोनों के बीच रस्मी तलाक़ हुआ था, ग़लती की है। इसलिए उपरोक्त बात की अनुपस्थिति में, यह कहा जा सकता है कि अपीलकर्ता और प्रतिवादकर्ता के बीच शादी के समय, प्रतिवादकर्ता की पत्नी जीवित थी और इसलिए अधिनियम की धारा 24 और 4 के तहत दोनों के बीच शादी ग़ैरक़ानूनी है और इसलिए अपीलकर्ता को यह अधिकार है कि वह इसे टूटा क़रार दिए जाने के आदेश की माँग करे।"


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