Begin typing your search above and press return to search.
मुख्य सुर्खियां

सुप्रीम कोर्ट ने दो नाबालिग़ सहित छह लोगों के हत्या के आरोपी की मौत की सज़ा बरक़रार रखी [निर्णय पढ़े]

Live Law Hindi
14 March 2019 1:48 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने दो नाबालिग़ सहित छह लोगों के हत्या के आरोपी की मौत की सज़ा बरक़रार रखी [निर्णय पढ़े]
x

सुप्रीम कोर्ट ने एक फ़ैसले में दो नाबालिग़ सहित एक ही परिवार के छह लोगों की हत्या के एक आरोपी की मौत की सज़ा की पुष्टि कर दी।

न्यायमूर्ति एके सीकरी, एस अब्दुल नज़ीर और एमआर शाह की पीठ ने एक ही परिवार के छह लोगों की हत्या के आरोपी ख़ुशविंदर सिंह की मौत की सज़ा को सही ठहराया। मारे गए लोगों में दो नाबालिग़ थे।

सत्र अदालत ने सिंह को आईपीसी की धारा 364, 302, 307, 201 और 380 के तहत दोषी माना। बाद में हाईकोर्ट ने भी आरोपियों की अपील ठुकरा दी और उनकी सज़ा बरक़रार रखी।

न्यायमूर्ति शाह ने यह फ़ैसला सुनाया। मौत की सज़ा के औचित्य पर कुल 27 पृष्ठ वाले इस फ़ैसले के सिर्फ़ दो पृष्ठ में यह बताया गया है कि इस मामले में मौत की सज़ा क्यों उचित है।

कोर्ट ने कहा कि आरोपी के वक़ील आरोपियों की सज़ा को काम किए जाने के बारे में कोई इस तरह की परिस्थिति का ज़िक्र नहीं कर पाए जिसकी वजह से मौत की सज़ा को आजीवन कारावास की सज़ा में बदल दिया जाए।

"आरोपी ने छह निर्दोष लोगों का पूर्व नियोजित तरीक़े से क़त्ल किया है।उसने बहुत ही सावधानी से उपयुक्त समय का चुनाव किया।उसने धोखे से पहले तीन लोगों को अगवा किया और उन्हें एक नहर के पास ले जाकर उन्हें नींद आने वाली गोलियाँ दे दी और फिर उन्हें आधी रात को नहर में धक्का दे दिया ताकि उसके अपराध का पता नहीं चल पाए।इसके बाद उसने अन्य तीन लोगों की हत्या कर दी…।"

इसके बाद अपने फ़ैसले में पीठ ने मुकेश बनाम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली राज्य मामले में आए फ़ैसले का हवाला दिया और कहा कि यह मामला 'विरलों में विरल' श्रेणी में है। कोर्ट ने मौत की सज़ा को जायज़ ठहराते हुए कहा,

"(सज़ा को) गंभीर बनाने वाली स्थिति अभियोजन के पक्ष में है और आरोपी के ख़िलाफ़। इसलिए गंभीर और सज़ा को कम करने वाली स्थितियों के बीच संतुलन बनाने के क्रम में हमारा मानना है कि मामला जिस तरह से गंभीर है उससे इस मामले का संतुलन इस बात से पैदा होता है कि आरोपी को मौत की सज़ा दी जाए। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हमें लगता है कि इस मामले में मौत की सज़ा के अलावा कोई भी वैकल्पिक सज़ा उपयुक्त नहीं होगी। अपराध को बहुत ही नृशंस तरीक़े से अंजाम दिया गया है और इसने समाज की सामूहिक चेतना को झकझोर दिया है।"


Next Story