आपराधिक मामले के बारे में तथ्यों को छिपाने के कारण पंजीकरण से हाथ धोने वाले वक़ील को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं [निर्णय पढ़े]

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9 March 2019 1:21 PM GMT

  • आपराधिक मामले के बारे में तथ्यों को छिपाने के कारण पंजीकरण से हाथ धोने वाले वक़ील को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने उस वक़ील की याचिका ख़ारिज कर दी है जिसका पंजीकरण इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि उसने एक आपराधिक मामले से जुड़े तथ्यों को छिपाया था।

    आनंद कुमार शर्मा को हिमाचल प्रदेश के बार काउन्सिल में जुलाई 1988 में एडवोकेट के रूप में पंजीकरण मिला। पर उनका पंजीकरण बाद में इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि एक तो वे हिमाचल प्रदेश सरकार की सेवा में थे और दूसरा यह कि वे एक आपराधिक मामले में भी फँसे थे। यद्यपि शर्मा हिमाचल बार काउन्सिल में पंजीकृत थे, पर बाद में बीसीआई ने उनका पंजीकरण राजस्थान में ट्रान्स्फ़र कर दिया। पर बाद में बीसीआई ने 1995 में उपरोक्त आधार पर उनका पंजीकरण रद्द कर दिया। बीसीआई के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही माना।

    इसके बाद शर्मा ने दुबारा पंजीकरण के लिए आवेदन दिया। उनकी अपील पर राजस्थान हाईकोर्ट ने राजस्थान बार काउन्सिल को विचार करने को कहा पर बार काउन्सिल ने उसके आवेदन को रद्द कर दिया और बीसीआई ने भी उसके इस फ़ैसले को सही ठहराया। यह बात है वर्ष 2000 की।

    वर्ष 2003 में राजस्थान बार काउन्सिल ने उसका आवेदन एक बार फिर रद्द कर दिया।

    पर वह इतने पर ही नहीं रूका। एक बार फिर उसने इसके लिए आवेदन किया और इस बार इसे यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया गया कि इसके लिए उसकी उम्र निर्धारित सीमा से काफ़ी अधिक है। पर राजस्थान हाईकोर्ट ने एडवोकेट अधिनियम के इस नियम को ग़लत बताया पर उसके आवेदन को राज्य बार काउन्सिल ने फिर भी स्वीकार नहीं किया। बीसीआई ने भी 2012 में इसे सही ठहराया।

    पर इस बार उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। पर कोर्ट ने उसके ख़िलाफ़ एक आपराधिक मामले से संबंधित तथ्यों को छिपाने और अन्य बातों पर ग़ौर करते हुए कहा, "यह कि उसको बरी कर दिया गया, पर्याप्त नहीं है। अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 26 के तहत, बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया को ऐसे व्यक्ति का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार है जिसने फ़र्ज़ी तरीक़े से पंजीकरण कराया हो…"

    उसकी अपील को ख़ारिज करते हुए पीठ ने कहा, "बार काउन्सिल ऑफ़ इंडिया ने जो पहला आदेश पास किया था उसे शीर्ष अदालत ने सही ठहराया था। इसके बाद अपीलकर्ता ने बार बार जो अपील किया है वह क़ानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अपीलकर्ता को यह सलाह दी जाती है कि व इस वक़ील के रूप में अपने पंजीकरण की अपील के इस मामले को आगे न बढ़ाए"।


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