राज्य क़ानूनी रूप से निकाले गए बालू को अपनी सीमा से बाहर भेजे जाने से नहीं रोक सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

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8 March 2019 8:52 AM GMT

  • राज्य क़ानूनी रूप से निकाले गए बालू को अपनी सीमा से बाहर भेजे जाने से नहीं रोक सकता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर क़ानूनी रूप से बालू की खुदाई की गई है तो कोई राज्य सरकार संवैधानिक रूप से इसे अपनी सीमा से बाहर भेजने पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता।

    न्यायमूर्ति एके सीकरी, एस अब्दुल नज़ीर और एमआर शाह की पीठ ने गुजरात से से बालू को बाहर नहीं भेजने के राज्य के नियम को रद्द कर दिया। गुजरात ने एक नियम बनाकर बालू को गुजरात की सीमा के बाहर भेजने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

    गुजरात हाईकोर्ट में गुजरात गौण खनिज नियम, 1966 को चुनौती दी गई थी जिसमें गुजरात राज्य के बाहर बालू को भेजने पर प्रतिबंध लगाया गया है। हाईकोर्ट ने इस नियम को ग़ैर क़ानूनी घोषित कर दिया और याचिका को स्वीकार कर लिया और कहा कि राज्य को इस तरह का अधिकार नहीं है और यह संविधान के अनुच्छेद 301 के तहत प्रदत्त अधिकारों का उल्लंघन है। हाईकोर्ट ने इस बारे में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने C. Narayana Reddy and etc. v. Commissioner of Panchayat Raj and Rural Employment, A.P., Hyderabad और मद्रास हाईकोर्ट द्वारा D. Sivakumar v. Government of Tamil Nadu में दिए फ़ैसले से अलग मत प्रकट पर भी अपनी असहमति जताई।

    इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ गुजरात राज्य ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में देखना या था कि यह संबंधित नियम गुजरात सरकार को एमएमआरडी अधिनियम के तहत मिले अधिकारों के क्या बाहर है और दूसरा, क्या यह नियम संविधान के भाग XIII के तहत प्रावधानों का उल्लंघन करता है?

    पीठ ने अधिनियम की धारा 23C का ज़िक्र करते हुए कहा कि ग़ैर क़ानूनी ढंग से खुदाई किए गए खनिजों पर प्रतिबंध है पर जिन्हें क़ानूनी ढंग से निकला गया है उन्हें बाहर जाने से नहीं रोका जा सकता। ये प्रावधान ऐसा कोई अधिकार नहीं देते जिसके तहत क़ानूनी रूप से निकाले गए खनिजों को बाहर जाने से रोका जा सके।

    पीठ ने कहा कि गुजरात सरकार का यह संशोधित निया संविधान के भाग XIII का उल्लंघन करता है क्योंकि इसके तहत अनुच्छेद 301 में मुक्त व्यापार और वाणिज्य का अधिकार मिला हुआ है।

    पीठ ने कहा, "अपीलकर्ता को यह निर्धारित करने से कोई नहीं रोकता है कि कितना बालू का खनन होना चाहिए। पर जब एक बार जब अपीलकर्ता बालू के खनन की अनुमति दे देता है, तो ना तो वह भारत के अंदर इसके आवागमन पर प्रतिबंध लगा सकता है और ना ही संविधान के तहत इसकी अनुमति है। इसी तरह राज्य में किसी अन्य राज्य से बालू मंगाने पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है…"

    पहले दिए गए कुछ फ़ैसलों का ज़िक्र करते हुए पीठ ने कहा कि प्रक्रियात्मक ख़ामियों और अनियमितताओं …को अधिकारों को सीमित करने की अनुमति और अन्याय किए जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

    पीठ ने आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि चूँकि यह शिकायत में एक चाहे अनचाहे ख़ामी की वजह से है, निचली अदालत को चाहिए था कि वह इसको ठीक किए जाने की अनुमति देता और ताकि प्राइवेट लिमिटेड कंपनी वादी के रूप में इसको चुनौती दे पाती क्योंकि मूल वादी ने निजी कंपनी के निदेशक के रूप में मामला दायर किया है।


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