दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पक्षकार ना चाहें तो अदालत का यह विशेषाधिकार चला जाता है, उसने पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया [आर्डर पढ़े]

Live Law Hindi

3 March 2019 10:34 PM IST

  • दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि अगर पक्षकार ना चाहें तो अदालत का यह विशेषाधिकार चला जाता है, उसने पूर्व मुख्य न्यायाधीश को एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया [आर्डर पढ़े]

    दिल्ली हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (BHEL -भेल) और उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (UPRVUNL) के बीच हरदुआगंज ताप बिजली संयंत्र को लेकर उठे विवाद को सुलझाने के लिए एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया है।

    न्यायमूर्ति नवीन चावला ने उनकी नियुक्ति का आदेश जारी किया जो कि दोनों के बीच ठेका कार्य को लेकर हुए विवाद का निपटारा करेंगे। भेल का आरोप है कि उसने जो सेवाएँ दी हैं उसके बदले उसको समय पर भुगतान नहीं मिला है और इसमें काफ़ी विलम्ब हुआ है।

    कोर्ट ने अपने क्षेत्राधिकार को लेकर UPRVUNL के मौखिक आपत्तियों को दरकिनार कर एकमात्र मध्य्स्थ की नियुक्ति की।

    इस मामले में ठेका देने संबंधी पत्र में दोनों पक्षों के बीच मध्यस्थता संबंधी समझौते के बारे में भी प्रावधान है। यद्यपि UPRVUNL ने किसी भी तरह की आपत्ति दर्ज नहीं कराई, उसके वक़ील ने मध्यस्थ नियुक्त करने के दिल्ली हाईकोर्ट के अधिकार को मौखिक रूप से चुनौती दी। वक़ील ने कहा कि UPRVUNL के Form 'A' को भेल के ठेके के General Conditions पर वरीयता हासिल है और इस बारे में समझौते के अनुरूप मध्यस्थ की नियुक्ति सिर्फ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट ही कर सकता है।

    इस पर भेल के वकीलों ने कहा कि भेल ने इससे पहले अधिनियम की धारा 9 के तहत दिल्ली हाईकोर्ट के समक्ष चार याचिका दायर कर चुका है जिसमें उसने कहा है कि इस मामले में विशेष क्षेत्राधिकार सिर्फ़ इलाहाबाद हाईकोर्ट के पास होने के क्लाउज को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि फिर इलाहाबाद/लखनऊ की अदालतों के क्षेत्राधिकार में विवाद नहीं आएँगे और इसलिए पक्ष भी उन अदालतों पर कोई अधिकार नहीं थोप सकता।

    चूँकि पहले भेल के उन चार याचिकाओं का विरोध UPRVUNL ने नहीं किया था, कोर्ट ने कहा, "…इस कोर्ट के समक्ष पहले दायर की गई याचिकाओं का विरोध नहीं किया गया। इन याचिकाओं को सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के पक्ष में फ़ैसला सुनाया जा चुका है। प्रतिवादी ने इन फ़ैसलों का कोई विरोध नहीं किया। यहाँ तक कि वर्तमान याचिका में भी, इसके बावजूद कि मौक़ा दिया गया था, प्रतिवादी ने जवाब दाख़िल नहीं किया और क्षेत्राधिकार को लेकर सिर्फ़ मौखिक चुनौती दी गई है।"

    कोर्ट ने इस मामले में AAA Landmark Pvt. Ltd. vs. AKME Projects Ltd. & Ors., मामले में आए फ़ैसले का भी हवाला दिया। अगर प्रतिवादी को कोर्ट के क्षेत्राधिकार पर कोई आपत्ति उठानी थी, तो उसे ऐसा याचिकाकर्ता की पहले की याचिकाओं पर करना चाहिए था।


    Next Story