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जाँच रिपोर्ट पर आपत्ति की सुनवाई किए बिना हटाए गए मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट से राहत [निर्णय पढ़े]
![जाँच रिपोर्ट पर आपत्ति की सुनवाई किए बिना हटाए गए मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट से राहत [निर्णय पढ़े] जाँच रिपोर्ट पर आपत्ति की सुनवाई किए बिना हटाए गए मजिस्ट्रेट को सुप्रीम कोर्ट से राहत [निर्णय पढ़े]](https://hindi.livelaw.in/h-upload/2019/02/26358158-justices-a-k-sikri-abdul-nazeer-and-m-r-shahjpg.jpg)
सुप्रीम कोर्ट ने अभी हाल ही में एक मजिस्ट्रेट को नौकरी से बर्ख़ास्तगी को इस आधार पर निरस्त कर दिया कि उसे जाँच अधिकारी के निष्कर्षों को चुनौती देने का मौक़ा नहीं दिया गया।
न्यायमूर्ति एके सीकरी, एसए नज़ीर और एमआर शाह की पीठ ने उसकी बर्ख़ास्तगी को जायज़ ठहराने वाले मद्रास हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ आर ऐलेग्ज़ैंडर की याचिका स्वीकार कर ली।
एक वक़ील ने आर ऐलेग्ज़ैंडर के ख़िलाफ़ उस समय शिकायत की थी जब वे कट्टूमन्नारकोईल में मुंसिफ़-सह-न्यायिक मजिस्ट्रेट था। हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने उसके ख़िलाफ़ छह अभियोग लगाए उसने जो जाँच अधिकारी नियुक्ति की थी उसने अपनी रिपोर्ट में यह बताया कि उसके ख़िलाफ़ ये आरोप सही पाए गए।
उसके ख़िलाफ़ एक सही पाया गया आरोप यह था कि वह वक़ील एमएस सेंथिल कुमार, एक अन्य वक़ील जो कि ख़ुद शिकायतकर्ता था, तिरुज्ञानम और एक अन्य व्यक्ति गोपाल के साथ टैक्सी से कोयंबत्तूर गया एक सत्र मामले में साक्ष्य देने और उन लोगों के ख़र्च पर होटल में रूका। उसके ख़िलाफ़ दूसरा आरोप यह था कि उसने मणिचकम जवेलरी, कट्टूमन्नारकोईल में एमएस सेंथिल कुमार के माध्यम से डॉलर देकर ₹7,300/- का सोने का चेन ख़रीदा जबकि उसे सिर्फ़ ₹5,000/-ही दिया और शेष राशि सेंथिल कुमार ने चुकाई।
पहले आरोप के जवाब में ऐलेग्ज़ैंडर ने कहा कि वह कोयंबत्तूर बस से गया था; कोयंबत्तूर में वह अपनी बहन के घर ठहरा था वापस भी बस से आया था। इसे साबित करने के लिए उसने अपने टीए बिल पर ग़ौर करने का आग्रह जाँच अधिकारी से किया था। जाँच अधिकारी ने प्रबंधन को टीए बिल देने को कहा था पर ऐसा नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट की पीठ कहा कि वह हाईकोर्ट की इस दलील से सहमत नहीं है कि अगर वह रेकर्ड नहीं पेश किया गया तो इससे उसके ख़िलाफ़ कोई दुर्भावना का मामला नहीं बनता है।
कोर्ट ने इस बात पर भी ग़ौर किया कि जाँच रिपोर्ट की प्रति ऐलेग्ज़ैंडर को नहीं दी गई और उसे जाँच रिपोर्ट के आलोक में अपना पक्ष रखने का मौक़ा नहीं दिया गया। उलटे, प्रशासनिक समिति ने रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया और इसके बाद हाई इस रिपोर्ट की कॉपी कारण बताओ नोटिस के साथ उसे भेजा आया। उससे पूछा गया कि जाँच रिपोर्ट के आधार पर उसे सेवा से क्यों नहीं बर्खास्त कर दिया जाए। उसके पक्ष पर ग़ौर करते हुए पीठ ने कहा,
"शिकायतकर्ता ने अपने पक्ष में जो बात रखी है उस पर ग़ौर करने से यह पता चलता है कि अपीलकर्ता ने इस बात का विशेष रूप से उल्लेख किया है कि कैसे शिकायतकर्ता को उसके ख़िलाफ़ दुर्भावना पैदा हो गई और कई मामलों में शिकायतकर्ता अपीलकर्ता के समक्ष पेश हुआ है। उन मामलों में अपीलकर्ता ने जो कुछ आदेश दिए वे शिकायतकर्ता को ख़ुश करनेवाले नहीं थे और इस वजह से अपीलकर्ता के ख़िलाफ़ उसने शिकायत की। अपीलकर्ता ने यह बात भी कही कि उपरोक्त वक़ील/शिकायतकर्ता जो कि इस तरह की शिकायत करने का आदी रहा है, के इस व्यवहार की निंदा पिछले कई मौक़ों पर हाईकोर्ट ने भी की है। अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि अन्य गवाह इस शिकायतकर्ता के निकट संबंधी थे और इसलिए ये लोग हितैषी गवाह थे। ज़ाहिर है कि अपीलकर्ता के इस बचाव पर प्रशासनिक समिति ने ग़ौर नहीं किया खोंकि इस समिति ने अपीलकर्ता को अपना पक्ष रखने का मौक़ा दिए बिना पहले ही जाँच समिति की रिपोर्ट को स्वीकार करलेने का निर्णय कर लिया था।"
इसलिए पीठ ने उसको बर्खास्त करने के सरकार के आदेश को निरस्त कर दिया।