सूचना देनेवाले और जाँच करने वाले के एक ही होने पर रिहाई का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मोहनलाल मामले में आए फ़ैसले का लाभ इससे पहले के लंबित मामले पर लागू नहीं होंगे
Live Law Hindi
14 Feb 2019 11:58 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्त्वपूर्ण फ़ैसले में कहा है कि मोहनलाल मामले में आए फ़ैसले के आधार पर बने क़ानून से पहले जितने भी मामले लंबित हैं उन मामलों पर कार्रवाई उसके तथ्यों के आधार पर होगा। मोहनलाल का मामला एक ही व्यक्ति के सूचना देनेवाला और जाँच अधिकारी दोनों होने से संबंधित है।
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई,न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा और न्यायमूर्ति केएम जोसफ़ की पीठ ने एनडीपीएस मामले में मिली सज़ा के ख़िलाफ़ एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। इस मामले में मोहनलाल मामले में आए फ़ैसले पर काफ़ी ज़्यादा भरोसा किया गया और यह कहा गया कि इससे अभियोजन को नुक़सान पहुँचाहै क्योंकि इसमें सूचना देने वाला और इस मामले की जाँच करने वाला दोनों ही एक ही व्यक्ति है।
मोहनलाल मामले का फ़ैसला
पिछले साल अगस्त में तीन जजों की पीठ जिसमें न्यायमूर्ति रंजन गोगोई, आर बनुमती और नवीन सिन्हा शामिल थे, ने मोहनलाल मामले में फ़ैसला सुनाया था। पीठ ने विरोधाभासी विचारों पर ग़ौर करते हुए अंततः कहा, "…इसीलिए कहा जाता है कि निष्पक्ष जाँच मुक़दमें की बुनियाद होती है और इसमें यह आवश्यक रूप सेज़रूरी है कि सूचना देने वाला और मामले की जाँच करने वाला अधिकारी अवश्य ही एक ही ना हो। मामले में किसी भी तरह के पक्षपात की आशंका को दूर करना ज़रूरी होता है। और जिस क़ानून में आरोप लगाने वाले को ही आरोप भी साबित करना है तो उस तरह की व्यवस्था में यह और आवश्यक हो जाता है।"
सामाजिक हित भी उतना ही महत्त्वपूर्ण
कोर्ट ने कहा कि आरोपी के व्यक्तिगत अधिकार की तरह ही सामाजिक हित भी महत्त्वपूर्ण है। कोर्ट ने कहा, "निस्संदेह आरोपी के व्यक्तिगत अधिकार महत्त्वपूर्ण हैं। लेकिन अपराधी को क़ानून के हवाले कर व्यवस्था और समाज को सही संदेश देना भी उतना ही ज़रूरी है - भले ही वह क़ानून को मानने वाला नागरिक हो याफिर अपराध करने वाला संभावित अपराधी। 'मानव अधिकार' सिर्फ़ आरोपी के ही नहीं होते हैं, बल्कि इसके हदों को छोड़ दें तो पीड़ितों के भी होते हैं…"
कोर्ट ने आगे कहा कि इसलिए मोहनलाल मामले में जो फ़ैसला आया उसका किसी आरोपी को अनर्गल उपयोग करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती कि वह छूट जाए। न्यायमूर्ति सिन्हा ने कहा -"आपराधिक न्यायप्रणाली में आरोपी और पीड़ित दोनों के अधिकारों में संतुलन की बात कही गई है। अगर मोहनलाल मामले में तथ्य अभियोजन के पक्ष में था तो इस मामले में तथ्य उसी तरह आरोपी के पक्ष में खड़ा दिख रहा है। अपीलकर्ता को पहले भी सज़ा दिए जाने के तथ्य उपलब्ध हैं। हम इस बात को नज़रअन्दाज़ नहींकर सकते कि क़ानून अस्पष्ट है, चार्ज शीट दाख़िल किया जा चुका है, सुनवाई चल रही है या पूरी हो चुकी है और अपील लंबित है और इन सब पर इसका असर पड़ेगा"।
अंत में कोर्ट ने कहा कि मोहनलाल मामले में आए फ़ैसले से पहले इस तरह के जितने भी लंबित मामले हैं उन पर उन मामलों के तथ्यों के आधार पर ग़ौर किया जाएगा।